क्या ट्रम्प अमेरिका के ‘मिखाईल गोर्बाच्योव’ बनेंगे?

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पद छोड़ने के पहले ताबड़तोड़ आदेश जारी कर रूस के विरूद्ध सख्त कार्यवाई करने की घोषणा कर रहे है. 8 नवम्बर के चुनावों में हुई कथित सायबर हैकिंग का बदला लेते हुए 35 रूसी अफसरों को देश से निकालने की घोषणा की, ओबामा ने 2 रूसी दफ्तरों को भी बंद करने के आदेश जारी किए.

नवम्बर में हुए आम चुनाव में संसद के दोनों सदनो में और राष्ट्रपति चुनाव में ओबामा की डेमोक्रेटिक पार्टी की करारी हार हुई. ओबामा ने हिलेरी के पक्ष में जोरदार प्रचार किया था.

अमेरिकी इतिहास में यह पहली बार था कि जब पद छोड़ रहे राष्ट्रपति ने किसी उम्मीदवार के पक्ष में इतना प्रचार किया। जबर्दस्त पराजय के बाद हिलेरी की हार का ठीकरा ‘ई-मेल हेकिंग’ पर फोड़ा, कहा गया कि ट्रम्प को जिताने के लिये पुतिन ने मदद की.

बराक ओबामा आठ साल तक अमेरिकी राष्ट्रपति रहे, इस काल मे ओबामा… बिल, हिलेरी और उदारवादियों के ऐजेंट की तरह काम करते रहे. इन आठ सालो में अमेरिका में जहां तुष्टिकरण, अप्रवासियों की अवैध घुसपैठ हुई, वहीं अमेरिकी नागरिकों की उपेक्षा लगातार जारी रही।

अमेरिका जो अपने सबसे पुराने साथी इज़रायल के साथ हर स्थिति में चट्टान की तरह खड़ा रहा, उससे भी मुंह मोड़ना शुरू कर दिया था.

इसकी चरम स्थिति तब देखने को मिली जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इजरायल के विरूद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किया गया तो अमेरिका ने प्रस्ताव के दौरान गैर हाजिर रहकर उसे पारित होने दिया। इतिहास मे पहली बार अमेरिका इज़रायल के विरूद्ध और फिलीस्तीनियों के पक्ष में खड़ा था।

जबकि अमेरिकी जनमत इजरायल के साथ था, इस घटनाक्रम से क्रोधित होकर ट्रम्प ने तुरंत पलटवार करते हुऐ कहा कि ‘धन और समय की बरबादी है यूएन’।

ओबामा प्रशासन का मानना है कि सायबर हैकिंग के जरिये रूस ने ट्रम्प को जिताकर अमेरिका से उदारवादी विचारधारा को उखाड़ फेंका है। ओबामा, हिलेरी और बिल क्लिंटन इस विचारधारा के वाहक थे।

ओबामा शायद भूल रहे है कि वे उसी अमेरिका के राष्ट्रपति है जिसने ‘शीतयुद्ध’ के काल मे सोवियत संघ को विघटित और बरबाद करने का हरसंभव प्रयास किया था।

हज़ारों रूसी साहित्यकारों, कलाकारों, खिलाड़ियों और असंतुष्टों को भड़काकर और अपने यहां शरण देकर ‘साम्यवाद’ की कब्र खोदी।

जैसे आज ट्रम्प को रूसी एजेंट बताया जा रहा है उसी प्रकार 80 और 90 के दशक में सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति मिखाईल गोर्बाच्योव को अमेरिकी एजेंट बताया गया था.

मिखाईल गोर्बाच्योव ने ग्लास्नोस्त और पेरोस्त्रोइका के मकड़जाल मे सोवियत संघ को उलझा कर साम्यवादी महाशक्ति का अंत कर दिया। अमेरिकी खेमे ने गोर्बाच्योव को 1990 का नोबल शांति पुरस्कार इसीलिये दिया था।

इतिहास अपना चक्र पूरा कर चुका है, अमेरिका ने जिस तरह 1991 में सोवियत संघ से साम्यवाद का अवसान किया तो आज 2017 में अमेरिका से ‘उदारवाद’ खत्म होने की ओर है।

समकालीन इतिहास आज रोचक मोड़ पर खड़ा है। क्या ट्रम्प अमेरिका के ‘मिखाईल गोर्बाच्योव’ बनेंगे?

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