अबे हे पंडितवा! अच्छा हुआ मी लॉर्ड, महामहिम ठाकुर साहेब… टाइम से जाय रहे हैं, इनके जजमेंटी में बहुत लोचा है!
चोप्प कुंदनवा! माइंड अदर्स लैंग्वेज… नॉट योर्स… मी लॉर्ड की अवमानना! कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट!! सॉलिड रीज़न दे…. बी लॉजिकल एंड विद तथ्याज यार.
ठीक पंडी, हैव आधार्स…
धरम-जाति के नाम पे वोट मांगना मना किये बड़के हाकिम, लेकिन :
– शाहबानों के नारी अधिकार के सामने धरम के नाम पर, हाकिमों और फैसले के मंदिर के हुक्म को कूड़े में डाल… संसद से उस फैसले की जात बदलवाने का इतिहास और नाकामी याद न रख सके.
– आप कहते हैं धरम और जाति के नाम पर वोट मत मांगो : आप नौकरियों में जाति के आधार पर जगह तय रखने की संवैधानिक, न्यायिक, प्रशानिक व्यवस्था के धनी हैं.
नौकरियां छोड़िये हाकिम : राजनीति में ही आइये… एक तरफ जाति के आधार पर लोकसभा, विधानसभा सीटों से लेकर आगे तक जाति के आधार पर आरक्षण… और वोट जाति के नाम पर न मांगने का हुक्मनामा!
अब ई सब लोचा नहीं तो का है बे… माई डियर बबवा!
ओके कुंदन, लेकिन एक आध बार भोकार पार के रोने वाले अपने भावुक बड़के हाकिम… पिछले दिनों विदाई समारोह में बोले, मैं करना तो वकालत ही चाहूंगा, हालांकि ये प्रतिबंधित है.
अब बबवा, खरी-खरी बोलूंगा तो तुम फिर डंडा करोगे!
अबे बोल!
देख पंडी, बड़के हाकिम को रिटायरमेंट के बाद राजनीति सबसे सूट करेगी.
उ कइसे?
उ अइसे कि हाकिम के घर-परिवार में कांग्रेस के ओहदेदार रहे हैं अउर हाकिम खुद 1987 का जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव निर्दलीय लड़ और हार चुके हैं.
फुल स्टॉप कुंदन एंड से : हम नागरिक न्यायपालिका का हृदय और कर्म दोनों से सम्मान करते हैं.
पुनश्च: यह भी बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि तीरथ सिंह ठाकुर एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं. उन्होंने चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा था.
जम्मू कश्मीर में 1987 के विधानसभा के चुनावों में उन्होंने रामबन विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आज़माया और उनका मुक़ाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भरत गांधी के साथ था.
तीरथ सिंह ठाकुर ये चुनाव हार गए थे. उन्हें कुल 8597 वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भरत गांधी को 14339.