शकुन शास्त्र – 4 : अनुभव करें प्रकृति के सूक्ष्म प्रभावों को

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अनेक बार हम अनुभव करते हैं कि हमारा मन अकारण खिन्न हो गया है. पीछे कोई दुखद संवाद आता है. अनेक बार हम अनुभव करते हैं कि अमुक कार्य प्रारम्भ करने में मन की कोई शक्ति रोक रही है. कई बार हम किसी प्रियजन को यात्रा में जाने से रोकते हैं. उस अंत: प्रेरणा का अनादर करने पर पीछे हानि उठाकर पश्चाताप करना पड़ता है. ऐसा क्यों होता है.

घटनाएं तो सब पूर्व निश्चित है. जैसे हम वन में हों और दूर से दावाग्नि लगने के लक्षणों का अनुभव करके भयभीत हो जाएं, ऐसे ही दुर्घटना का प्रभाव भी हमारी अन्तश्चेतना पर पड़ता है. उस प्रभाव का स्पष्टीकरण न होने पर भी आशंका होती. इसी प्रकार मन में शुभ की सूचना हर्ष के रूप में व्यक्त होती है.

हमारे मन में बाह्य संसार की इतनी प्रगाढ़ आसक्ति है कि हमारा मानसिक जीवन भी बाह्य जीवन की भाँति नितांत कृत्रिम हो गया है. फलत: हम प्रकृति से सूक्ष्म प्रभावों का अनुभव नहीं कर पाते.  पशु पक्षियों को इन प्रभावों की विशेष अनुभूति होती है. कुछ विशेष प्रकार के पशु या पक्षी ही विशेष-विशेष प्रभाव का अनुभव करते हैं. उन प्रभावों के अनुसार उनकी चेष्टाएं होती हैं. उन चेष्टाओं से क्या प्रकट होता है, यह जानना ही शकुन ज्ञान है.

वृक्षों की भांति लताओं एवं तृणों के भी फूलने-फलने, अनुपयुक्त स्थान पर उगने आदि के शकुन होते हैं. इनके अतिरिक्त यात्रादि कार्यों में पशु-पक्षियों की भाँती विशेष प्रकार के पुष्पों, वृक्षों, तृणों, काष्ठ आदि के मिलने के परिणाम भी बताये जाते हैं. ये परिणाम इन दृश्यों से उसी प्रकार सम्बंधित हैं, जैसे पशुओं  के सम्बन्ध में बताया जा चुका है.

अनेक बार वृक्षों या तृणों में ऐसे अद्भुत परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं, जो स्वाभाविक नहीं है, जैसे जिस जाति के मोटे बांस में फल लगता ही नहीं, उसमें फल लगना अनिष्ट का सूचक है. ऐसे अद्भुत लक्षणों की ओर मनुष्य का ध्यान जाना सहज है. इनकी उपेक्षा तो की नहीं जा सकती है और शकुन-शास्त्र को जो नहीं मानते, वे इनका कोई भी प्राकृतिक कारण अब तक बता नहीं सके हैं.

अद्भुत शकुन

मूर्तियों से पसीने की धारा बहने, मूर्तियों के हंसने या स्वयं उठकर दूसरे स्थान पर चले जाने की घटनाएं आज भी कभी-कभी समाचार पत्रों में आ जाती है. इसी प्रकार आकाश से रक्त, धूलि, चन्दन आदि की वर्षा के समाचार भी द्वितीय महायुद्ध (1939-45 ईके) से पूर्व आए थे. रक्त वृष्टि तो अनेक स्थानों पर हुई और कहीं कहीं व्यापक क्षेत्र में हुई. सरकारी कर्मचारियों ने देखभाल भी की तथा वहां की मिट्टी परीक्षण के लिए भेजी गयी.

वैज्ञानिक यह नहीं बतला सके कि रक्त किस प्राणी का है, किन्तु वह है रक्त ही, यह उन्होंने स्वीकार किया. इसी प्रकार एक स्त्री के गर्भ से अंडे उत्पन्न होने तथा एक स्त्री के ऐसा बच्चा उत्पन्न होने का समाचार आया था, जिस बच्चे को गर्भ से ही जीवित सर्प लिपटा हुआ था. बच्चा और सर्प दोनों पर्याप्त समय तक जीवित रहे.

मूर्तियों में आराधक के भाव से जो लक्षण प्रकट होते हैं, यहाँ उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है. भाव तो दृढ़ होने पर सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि दृश्य संसार भावलोक द्वारा ही संचालित है. इसी प्रकार आसुरी माया या मन के संकल्प जो रक्त्वर्षणादि होते हैं, वे भी सिद्धि के अंतर्गत हैं.
यहाँ तो उन घटनाओं से तात्पर्य है, जो बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के स्वत: होती हैं.

ऊपर जैसी घटनाओं का उल्लेख है, उनके अतिरिक्त इसी कोटि के बहुत से लक्षण ज्योतिष-ग्रंथों में वर्णित हैं. ये सब लक्षण उत्पात के सूचक हैं. मूर्तियों में जड़ पदार्थों में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं, आकाश से किन-किन पदार्थों की वृष्टि होती है, नारी गर्भ से कैसी कैसी अद्भुत आकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, इनका वर्णन परिणाम ग्रंथों में ही देखना चाहिए.

इसी प्रकार की अद्भुत घटनाओं में अकारण भूकंप, उल्कापात, धूमकेतु का उदय होना, गुफाओं में आंधी न चलने पर भी शब्द होना, बिना आंधी और धूलि के दिशाओं तथा आकाश का मलिन हो जाना, अमावस्या और पूर्णिमा के बिना ही ग्रहण लगना आदि है. इन घटनाओं का भी ज्योतिष शास्त्र में विस्तृत एवं सपरिणाम उल्लेख है.

– गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक कल्याण के ज्योतिषतत्त्वांक में प्रकाशित डॉ श्री सुदर्शन सिंह जी “चक्र” के लेख से साभार

एक अंग्रेज़ी वेबसाइट की खबर का हिस्सा-
Bleeding eyes statue of Rosa Mystica in Kerala
The Mother Mary statue purportedly cries tears of blood from her inanimate stone eyes. There was also the appearance of oil, honey and milk in 2006, as well as another picture of Mother Mary weeping blood in 2011. God works in mysterious ways it would seem.

http://www.scoopwhoop.com/inothernews/bring-on-the-shivers/

 

 

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