शकुन शास्त्र – 3 : सबकुछ पूर्व नियोजित और सुनिश्चित है

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शकुनों में हमें असम्भावना इसलिए प्रतीत होती है कि हम परिणामों को निश्चित नहीं मानते. फ्रांस के किसी वैज्ञानिक ने एक समुद्रीय पौधे को बाहर स्थल पर लगाया और उस पर पड़ने वाले सूक्ष्म प्रभाव का गणित करता गया.

सूर्य-ताप का क्रम तथा देशों की स्थिति आदि का हिसाब करके उसने दो सौ वर्ष तक के लिए आंधी, तूफ़ान, वर्षा के संबंध में भविष्यवाणियाँ कीं. वर्त्तमान समय के यन्त्र भी दो-चार दिन पूर्व के संबंध में सूचना देते हैं. यह अन्वेषण-सिद्धांत सिद्ध करता है कि वर्षों के लिए भी भविष्यवाणियाँ करनी शक्य है, परन्तु भय रहता है कि गणित या निरिक्षण में थोड़ी भी भूल होने पर वे भ्रमपूर्ण हो जाएँगी.

इस प्रकार जिन घटनाओं का कार्य-कारण-सम्बन्ध हम जान चुके हैं उनको बहुत पहले से जानना शक्य मानते हैं, क्योंकि यह नियम है कि प्रकृति में अकस्मात कुछ नहीं होता. कारण का क्रमश: विकास होता है. यदि हम समझ लें कि वर्षा, आंधी आदि के समान शरीर और मन भी जड़ है और उसकी क्रियाएं भी निश्चित एवं स्थिर हैं तो हमें उसके कार्य-कारण-सम्बन्ध-ज्ञान से भी आश्चर्य न होगा.

हिन्दू-शास्त्र जड़ को भ्रम मानते हैं. जैसे हमारा शरीर हमारे लिए जड़ है, पर वह है चेतन कीटाणुओं का पुंज, वैसे ही पृथ्वी, वायु आदि के भी अधिदेवता हैं. समस्त दृश्य जगत उसी प्रकार भाव (दिव्य) जगत से संचालित है, जैसे हमारा शरीर हमारी चेतना से.

हमारे शरीर में सब चेतन कीटाणु हैं, परन्तु उनकी क्रिया नियंत्रित है. उनमें विकार कब और क्यों आता है, यह चिकित्सा शास्त्र बतलाता है. शरीर में कुछ भी अनिश्चित नहीं है, जैसे कीटाणुओं की चेतना से शरीर में अनियमितता नहीं आती, वैसे ही प्राणियों की चेतना विश्व में अनियमितता नहीं ला सकती, सबकी क्रिया निश्चित है. विकार भी पूर्व निश्चित है.

जो जड़वादी हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि जब चेतना भी जड़ का ही विकार है तो जैसे जल के या लकड़ी के सड़ने का क्रम परिस्थिति से पूर्व निश्चित है, उसमें कब और कैसे कीड़े पड़ेंगे… यह निश्चित है, वैसे ही चेतन की चेष्टाएं भी निश्चित ही होंगी. चेतना को जड़ का भाग मान लेने पर मन और शरीर की क्रिया भी इंजन की क्रिया सी जड़ हो जाती है.

जड़वादी मानते भी हैं कि स्वभाव, बुद्धि, विचारादि परिस्थिति के प्रभावों से निर्मित होते हैं. जब परिस्थितियों का गणित संभव है तो उसके प्रभावों का असंभव क्यों हो जाएगा? घटनाएं तो व्यक्ति अपनी चेतना से प्रेरित होकर ही करेगा और करेगा मानसिक एवं बाह्य परिस्थिति से बाध्य अथवा प्रेरित होकर.

अत: घटनाओं का पूर्व निश्चय भी परिस्थिति से हो सकता है. जड़वादी के लिए तो सब घटनाएं पूर्व निश्चित हैं, ऐसा मानने में कोई आपत्ति होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि जड़ की क्रिया कभी अनिश्चित होती ही नहीं.

विश्व को मूलत: चेतनात्मक माना जाए या जड़? यह मानना ही पड़ेगा कि हमारी समस्त मानसिक एवं शारीरिक क्रियाएं पूर्व निश्चित हैं. जो क्रिया पूर्व निश्चित है, वह अकस्मात नहीं होती. अकस्मात होने जैसी प्रकृति में कोई बात है ही नहीं. उसके सूक्ष्म कारण बहुत पहले से प्रकट हो जाते हैं. हमें तो बादल एकाएक आए हुए लगते हैं, किन्तु आज के वैज्ञानिक दो-तीन दिन पूर्व जान लेते हैं कि ये कब आएँगे.

इसी प्रकार बहुत से पेड़-पौधे भी उस प्रभाव को व्यक्त करने लगते हैं. जैसे वर्षा पहले सूक्ष्म प्रभाव से जानी जाती है, वैसे ही पशु-पक्षी दूसरी घटनाओं का प्रभाव भी अनुभव करने लगते हैं और उसे व्यक्त करते हैं.

– गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक कल्याण के ज्योतिषतत्त्वांक में प्रकाशित डॉ श्री सुदर्शन सिंह जी “चक्र” के लेख से साभार

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