शकुन शास्त्र -1 : आवश्यक है लक्षण-सूक्तियों की रक्षा

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“जोंक- यह जल कृमि बैरोमीटर का अच्छा काम देता है. शीशे के बड़े पात्र में जल भरकर इसे पाला जा सकता है. वर्षा होने वाली होगी तो यह जल के तल भाग में जा बैठेगा, आंधी आने वाली हो तो यह बेचैनी से तैरता है. यह जल के ऊपर मजे में तैरता हो तो समझना चाहिए कि ऋतु शांत रहेगी.”
यह तो पाश्चात्य जंतु-शास्त्रज्ञों ने नवीन खोज की है. इस शकुन को वे विज्ञान कहते हैं. इसी प्रकार वे भड्डरी के शकुनों को भी अधिकाँश सत्य मानने लगे हैं जैसे –

अंडा ले चिउंटी चलें, चिड़ी नहावै धूर
ऊंचे चील उड़ान लैं, तब वर्षा भरपूर.

तीनों में से एक ही लक्षण हो, तब भी बूंदा-बांदी हो जाती है, किन्तु तीनों हों तो भरपूर वर्षा में कोई संदेह ही नहीं रहता. वैज्ञानिक कहते हैं कि पशु-पक्षी तथा पौधे ऋतु के प्रभाव को पहले से ही अनुभव करने लगते हैं.

जैसे वर्षा होने से कुछ घंटे पूर्व ही मकड़ी अपने जाले  के केंद्र में जा बैठती है. अतएव पशु-पक्षियों तथा पौधों के द्वारा ऋतु का अग्रिम अनुमान किया जा सकता है. अकाल पड़नेवाला हो तो कई महीने पूर्व कुछ विशेष प्रकार के तृण निकल आते हैं. कुछ पौधों में विशेष परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगता है.

यह भी स्वीकार किया जाने लगा है कि भड्डरी को या उसने जहां से अपनी सूक्तियों का आधार लिया हो, ऋतु का सूक्ष्म लाक्षणिक ज्ञान था. आजकल की ऋतुमापक वेधशालाएं बहुत पहले से आंधी, वर्षा, बादल आदि की सूचना प्राप्त कर लेती हैं. इसी आधार पर लोग कहने लगे हैं कि पुराणी सूक्तियां भी ऐसे ही सूक्ष्म प्रकृति निरिक्षण का परिणाम है…

श्रावण शुक्ला सप्तमी, उदित न देखीय भानु
तब लगी देव बर्षिहहिं, जब लगी देव उठान

इस प्रकार की सहस्त्रों सूक्तियां ग्रामों में प्रचलित हैं, उनका बहुत बड़ा भाग सत्य परिणाम व्यक्त करनेवाला है. कोई नहीं जानता कि वे किस प्रकार प्रचलित हुईं. यदि भारतीय वांग्मय के लक्ष-लक्ष ग्रन्थ नष्ट न कर दिए गए होते तो उनका मूल कदाचित मिल जाता. जो हो, इन बची-खुची लक्षण-सूक्तियों की रक्षा आवश्यक है. वर्त्तमान वैज्ञानिक यन्त्र अभी इतने सूक्ष्म लक्षण निश्चित करने में असमर्थ ही हैं.

शकुन और ज्योतिष

लक्षण-ज्ञान सूक्ति ज्ञान से भी सूक्ष्म होता है. जैसे अमुक महीने में पांच शनि या पांच मंगल पड़े हैं इस लक्षण के अनुसार कोई विशेष फल होगा ऐसा ज्योतिष शास्त्र निर्देश करता है. स्पष्ट है कि प्रत्येक दिन अपने ग्रह के प्रभाव से संबंध रखता है. यदि चन्द्रमा के एक पूरे चक्कर में कोई दिन चार से अधिक बार आता है तो इसका अर्थ है कि चन्द्रमा पर इस बार उस ग्रह का प्रभाव अधिक पड़ा है. उस प्रभाव का पृथ्वी पर कब या क्या परिणाम होगा यह फलित ज्योतिष व्यक्त करता है.

शकुन शास्त्र दो भागों में विभक्त किया जा सकता है. एक तो ग्रह नक्षत्र, राशि, दिन आदि पर निर्भर फलित ज्योतिष से सम्बन्ध रखनेवाला शकुन शास्त्र और दूसरा दृश्य पदार्थों के द्वारा परिणाम को प्रकट करनेवाला शकुन शास्त्र.

वैसे दोनों को सर्वथा पृथक रखना शक्य नहीं है क्योंकि दृश्य शकुनों में  भी काल, स्थान, नक्षत्र आदि का अनेक बार विचार होता है. और उससे विभिन्न परिणाम निश्चित होते हैं. इसी प्रकार फलित में भी बाह्य चिन्हों की अपेक्षा होती है. परन्तु एक सीमा तक शकुन और ज्योतिष का पार्थक्य संभव है. तथा यहाँ शकुन का भी विचार अभीष्ट है.

शकुन कई प्रकार के माने गए हैं. पशु एवं पक्षियों के शब्द तथा उनकी चेष्टाएं, स्वप्न, अपने अंगों का फड़कना या शरीर के विभिन्न स्थानों में खुजली होना, आकाश से विभिन्न प्रकार की वर्षा  या ग्रहों की आकृतियों में दृश्य परिवर्तन, वनस्पतियों तथा तृणों में विशेष परिवर्तन, प्रतिमा, पाषाण तथा जल में विशेष लक्षण दर्शित होना. यात्रा आदि में मिलने वाले पदार्थ, छींक ये शकुनों के मुख्य भेद है.

वैज्ञानिक वेधशालाएं अभी प्रकृति के सूक्ष्म प्रभाव का बहुत अल्प विवरण जान सकी है. नील नदी में बाढ़ आने या अबीसीनिया में वर्षा होने का भारत की वर्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह बतलाना बहुत सूक्ष्म विज्ञान नहीं है. मानी हुई बात है कि अरब सागर की वाष्प यदि अफ्रिका में वृष्टि बन गयी तो सागर के दूसरे तट के देश भारत में वर्षा उधर की वायु से कम होगी.

शकुन शास्त्र के ज्ञान के लिए प्रकृति एवं पशुओं की प्रभाव ग्रहण शक्ति एवं उसे सूचित करने का प्रकार बहुत ही सूक्ष्मता से जानना पडेगा. इस ज्ञान का निरंतर ह्रास होता जा रहा है.

पशु पक्षियों के शकुन

प्लेग पड़ने वाला हो तो चूहे पहले मरने लगते हैं यह तो आज का शकुन है किन्तु इससे भी सूक्ष्म शकुन यह है कि कुत्ते प्रात: काल सूर्य की ओर मुख करके रोने लगें तो कोई अमंगल होने वाला है. गधे ग्राम में दौड़ाने और चिल्लाने लगे रात्रियों में बिल्लियाँ या श्रृगाल अकारण रोते हों तो यह भी अमंगल सूचित करते हैं. अकारण बिल्ली, कुत्ता या श्रृगाल के रोने पर समीप ही किसी की मृत्यु की सूचना मानी जाती है. घर के पशु गाय, घोड़े, हाथी अकारण अश्रु बहाएं या चिल्लाएं तो भी अमंगल सूचित होता है.

ऊपर से छिपकली शरीर पर गिर पड़े या गिरगिट दौड़कर शरीर पर चढ़ जाए तो किस अंग पर उसके चढ़ने का क्या परिणाम होता है यह शकुन शास्त्र से सम्बंधित ग्रंथों में विस्तार पूर्वक वर्णित है. इसी प्रकार शरद ऋतु के प्रारम्भ में सूर्य के हस्त नक्षत्र पर अधिष्ठित होने पर खंजन पक्षी के दर्शन का फल भी दिशा भेद से वर्णन किया गया है. कौए के शब्द के अनुसार भविष्य ज्ञान का वर्णन अत्यंत विस्तृत रूप से ग्रंथों में वर्णित है. ऐसे ही अनेक पशु पक्षियों सर्प आदि को और कीड़ों की चेष्टाओं के अनुसार परिणाम जानने की प्रथा है.

यात्रा के समय मार्ग में कौन सा पशु या पक्षी किस दिशा में कैसे मिले तो क्या परिणाम होता है यह शकुन को जानने वाले लोग शास्त्रों में प्राप्त कर लेते हैं. जैसे यात्रा में मृग यूथ का दाहिने आना नेवले और लोमड़ी का दिखाई देना, वृषभ, बछड़े सहित गौ, ब्रह्मचारी हरे फल आदि का दृष्टिगोचर होना ये सब शकुन शुभ सूचक है.

यात्रा में बिल्ली मार्ग काटकर सामने से चली जाए या श्रृगाल बाएँ से दाएं मार्ग काटकर निकल जाए तो लौट आना चाहिए ये शकुन यात्रा में आपत्ति की आशंका सूचित करते हैं.

– गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक कल्याण के ज्योतिषतत्त्वांक में प्रकाशित डॉ श्री सुदर्शन सिंह जी “चक्र” के लेख से साभार

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