अभी तक मैं अखिलेश यादव के पक्ष में खड़ा था, बावजूद इसके कि मैं राष्ट्रवादी हूँ ना कि समाजवादी.
दरअसल मैं अखिलेश के दाँव पेंच पर फ़िदा था. राजनीति में सत्ता हथियाने के लिए उठा पटक कोई नहीं बात नहीं, सदियों का इतिहास है.
अखिलेश को एक बात समझ लेनी चाहिए कि ये भारत है यहाँ परम्पराएं निभाने की विवशता रहती है, अन्यथा समाज आपको खारिज़ कर देता है.
मैं यहाँ श्रीराम का उदाहरण रखना नहीं चाह रहा था पर रख देता हूँ. उनके पिता दशरथ ने तो स्वयं राम से कह दिया था कि प्रजा और सारे मंत्रीगण तुम्हें चाहते हैं, तुम विद्रोह कर दो, राज सिंहासन पर जबरन बैठ जाओ, इसमें मेरी सहमति रहेगी मुझे काल कोठरी में डाल दो…
पर राम ने वनवास चुना. वहीं एक भाई, जो मेरी दृष्टि में कहीं-कहीं श्रीराम की महानता पर भी भारी पड़ता प्रतीत होता है, उसकी अपनी कथा है.
एक पुत्र अपने पिता के वचनों के लिए वनवास चुनता है तो दूजा, भाई होते हुए अकारण ही स्वयं को दोषी मान 14 वर्ष वनवासी सा जीवन बिता देता है, सिंहासन पर खड़ाऊ रख कर राजपाट संभालता है भोग से दूर रहकर.
कल एक वीडियो देखा जिसमें अखिलेश मंच पर अपने पिता मुलायम से बदतमीज़ी कर रहे हैं, उनका माइक छीन रहे हैं और कुछ बड़बड़ा भी रहे हैं…. और बूढ़ा बाप ढंग से विरोध भी नहीं कर पा रहा….
अखिलेश, मुझे तुम्हारे इस चरित्र का पता नहीं था, मुझे तुम एक राजनेता के रूप में ठीक-ठाक लगते थे पर इंसान के रूप में तुम कमतर निकले और पुत्र के रूप में तो बेहद घटिया….
मुलायम ने जीवन भर जो भी पाप किये, समय आज उन्हें इसकी सज़ा दे रहा है, पर जिस तरह तुम निमित्त बन रहे हो, कल समय तुम्हारे साथ भी यही दोहरायेगा चिंता मत करो….
अरे तुमसे अच्छा तो शिवपाल है जिसनें अपने भाई का हर स्थिति में सम्मान किया भले मुलायम ने उसके साथ राजनैतिक दगा ही क्यों ना की हो.
समाज के अपने नियम हैं अखिलेश, ये दुष्ट से दुष्ट व्यक्ति को भी सम्मान देता है यदि वो अनैतिक नहीं है तो….
पांडवों ने अपने बुजुर्गों का ससम्मान वध किया, श्रीराम ने रावण का ससम्मान वध किया, गोडसे तक ने गांधी का ससम्मान ही वध किया….
तुम मुलायम को मार देते तो भी शायद इतना कष्ट ना होता जितना एक पुत्र द्वारा पिता का अपमान देखकर हुआ… मैं तुम्हें लानत देता हूँ अखिलेश… लानत है तुम पर.