जस्टिस ठाकुर ने सरकार को नहीं खलने दी विपक्ष की कमी

जस्टिस टीएस ठाकुर आज रिटायर हो गए. आज सुबह जब पेपर उठाया तो उनके द्वारा लिए दो अहम फैसलों पर नज़र गई. पहला, बीसीसीआई वाला और दूसरा चुनाव में जाति धर्म के प्रयोग संबंधी कांस्टीट्यूशनल इंटरप्रेटेशन वाला. मेरे मुंह से इन खबरों को देखकर यही निकला कि आज तो ये रिटायर होने वाले हैं! खेहर 4 को सीजेआई बनेंगे ये याद था मुझे इसलिए!

जस्टिस ठाकुर अपने फैसलों के अलावा भी कई कारणों से हमेशा याद किए जाएंगे. वो लगातार न्यायिक सुधारों के लिए प्रयासरत रहें. कम से कम उनके वक्तव्यों से तो ऐसा ही लगा. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान न्यायिक नियुक्तियों और कॉलेजियम सिस्टम सम्बंधित बहसों को, न सिर्फ जिन्दा रखा, बल्कि मुख्य न्यायाधीश के तौर पर अपने पक्ष को भी मजबूती से रखा.

मुझे याद नहीं कि इससे पहले कभी किसी मुख्य न्यायाधीश ने देश में जजों के कमी पर इतने गंभीरता और इतना जोर देकर बात की हो. ठाकुर इस मसले पर भी हमेशा मुखर रहे.

हालाँकि उनके कार्यकाल में विवाद भी खूब हुए. उनके कांग्रेस से नजदीकियों की खबरें भी खूब आईं. उनके पिता पूर्व राज्यपाल और कांग्रेस के नेता भी रहे थे. कई बार उन पर ये आरोप भी लगा कि वो विपक्ष के इशारे पर सरकार को परेशान करने के लिए, सरकार के काम में बाधा डालने की नियत से काम करते रहे. सरकार के कद्दावर मंत्रियों को न्यायपालिका को उसकी हद बताना पड़ी! अरुण जेटली जैसे मंत्रियों को भी कई बार बोलना पड़ा. जजों की बहाली पर कानून मंत्री से उनकी तनातनी की खबरें भी खूब आईं.

मेरे समझ से उनका कार्यकाल मिला-जुला रहा. जिन नए बहसों को उन्होंने जन्म दिया है उनके परिणाम निश्चित ही दूरगामी होंगे. कई मामलो में हालाँकि मैं मानता हूँ कि उन्होंने गैरजरूरी विवादों को भी जन्म दिया. लेकिन इन सब के बीच उन्होंने विपक्ष-विहीन देश को विपक्ष की कमी नहीं खलने दी. एक लोकतान्त्रिक देश में न्यायपालिका से ऐसी अपेक्षाएं भी होती है. इस कारण भी अनजाने ही सही, उनका कार्यकाल ख़ास रहा.

मैं उम्मीद करता हूँ कि आने वाले वर्षों में देश उनके प्रतिभा और अनुभव से लाभान्वित होता रहेगा. भविष्य के लिए कामनाओं सहित !

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