और हिमालय की गुफाओं में बरसों से तपस्या कर रहे एक योगी को श्राप मिलता है एक मुस्लिम परिवार में जन्म लेने का क्योंकि उसने एक मुस्लिम फ़कीर को इसलिए तिरस्कृत कर दिया था क्योंकि वो एक मांसाहारी, दरिद्र था और भावावेश में आकर योगी को गले लगाकर उसका ध्यान भग्न कर दिया था… और उस मुस्लिम भिक्षु को नदी में कूदकर अपने प्राण ख़त्म करने का आदेश दे देता है…
योगी के गुरू को जब ये सब पता चलता है तो उसे उसी समय प्रायश्चित स्वरूप खेचरी मुद्रा लगाकर आज्ञा चक्र से प्राण निकाल देने का आदेश मिलता है और अगले जन्म में एक मुस्लिम परिवार में जन्म लेने का दुर्भाग्य भी…
उस योगी का नाम था “मधु”…..
मधु के गुरु कहते हैं- क्या मैंने हमेशा तुम्हें नहीं बताया कि बात करते समय ध्यान रखों कि तुम जो कुछ कहने जा रहे हो वह किससे कह रहे हो और किस परिस्थिति में? तुम्हें थोड़ा और धैर्य दिखाना चाहिए था और वह मुस्लिम वृद्ध जो कहना चाह रहा था उसे ध्यान से सुन लेना चाहिए था. क्या एक पवित्र व्यक्ति की पहचान उसके बाहरी रंग-रूप से की जा सकती है?
जैसा कि मेरे महान शिष्य कबीर ने कहा है- क्या तुम तलवार से ज्यादा म्यान को महत्त्व दोगे? तुमने भगवान के महान भक्त को दुःख पहुँचाया है. एक क्षण में तुमने इतनी सालों के अपने तप के पुण्यों को गँवा दिया. करुणा का एक क्षण, सौ साल की कठिन तपस्या से अधिक कीमती है. तुम्हें इसकी भरपाई करनी होगी……
योगी मधु कहते हैं – आपकी इच्छा सदैव मेरे लिए आज्ञा रही है बाबाजी और मैं तुरंत आपका कहा करता हूँ. पर मेरी एक अंतिम इच्छा है कि आप मुझे वचन दीजिये कि आप मुझे छोड़ नहीं देंगे, कि आप मेरा पता रखेंगे और मुझे सांसारिक विचारों और सरोकारों के भंवर में डूब नहीं जाने देंगे…..
“मैं यह वचन देता हूँ”, महान गुरू ने कहा, उनकी चमकती आँखों से मानों कोमल करुणा मूर्त रूप से बह रही थी, “मेरा पट्ट शिष्य महेश्वर नाथ अगले जन्म में तुम्हारा पथ प्रदर्शक होगा.
और इस प्रकार मधु ने खेचरी मुद्रा लगाकर प्राण को आज्ञाचक्र से निकल जाने दिया और अगले जन्म में एक मुस्लिम परिवार में जन्म पाया मुमताज़ अली बनकर….
मैं जानती हूँ श्री एम का मेरे जीवन में होना भी मेरे लिए किसी रहस्यात्मक द्वार में प्रवेश करने जैसा ही है…. उनका सपनों में सन्देश देना….. उनकी पुस्तक का पढ़ना और पुस्तक द्वारा अपनी यात्रा में अन्य लोगों को शामिल करने के पीछे भी कोई अदृश्य शक्ति की योजना है… कोई है जिसने जीवन के किसी भी मोड़ पर मुझे अकेला नहीं छोड़ा, मेरा पता हमेशा रखा और मुझे सांसारिक विचारों और सरोकारों में डूब नहीं जाने दिया…..
मैं अपने पिछले जन्म की कहानी भी आपसे ही सुनूंगी श्री…..
– माँ जीवन शैफाली
(खेचरी योगसाधना की एक मुद्रा है. इस मुद्रा में चित्त एवं जिह्वा दोनों ही आकाश की ओर केंद्रित किए जाते हैं जिसके कारण इसका नाम ‘खेचरी’ पड़ा है (ख = आकाश, चरी = चरना, ले जाना, विचरण करना). इस मुद्रा की साधना के लिए पद्मासन में बैठकर दृष्टि को दोनों भौहों के बीच स्थिर करके फिर जिह्वा को उलटकर तालु से सटाते हुए पीछे रंध्र में डालने का प्रयास किया जाता है इसके लिये जिह्वा को बढ़ाना आवश्यक होता है. जिह्वा को लोहे की शलाका से दबाकर बढ़ाने का विधान पाया जाता है. कौल मार्ग में खेचरी मुद्रा को प्रतीकात्मक रूप में ‘गोमांस भक्षण’ कहते हैं. ‘गौ’ का अर्थ इंद्रिय अथवा जिह्वा और उसे उलटकर तालू से लगाने को ‘भक्षण’ कहते हैं.)
नोट : खेचरी मुद्रा और गोमांस भक्षण को यहाँ उद्दृत करने के पीछे मेरी मंशा यही है कि यदि कोई गोमांस भक्षण को वेदों से जोड़कर गाय के मांस के भक्षण की बात कहे तो आपको कम से कम इस बात की जानकारी हो और आप तर्कपूर्वक गोमांस भक्षण का अर्थ समझा सके.