विज्ञान भैरव तंत्र : या कुछ चूसो और चूसना बन जाओ

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यह अंतिम विधि शारीरिक है. और प्रयोग में सुगम है. क्‍योंकि चूसना पहला काम है, जो कि कोई बच्‍चा करता है. चूसना जीवन का पहला कृत्‍य है. बच्‍चा जब पैदा होता है, तब वह पहले रोता है. तुमने यह जानने की कोशिश नहीं की होगी कि बच्‍चा क्‍यों रोता है. सच में वह रोता नहीं है. वह रोता हुआ मालूम होता है. वह सिर्फ हवा को पी रहा है. चूस रहा है.

अगर वह नहीं रोए तो मिनटों के भीतर मर जाए. क्‍योंकि रोना हवा लेने का पहला प्रयत्‍न है. जब वह पेट में था, बच्‍चा स्‍वास नहीं लेता है.

बिना स्‍वास लिए वह जीता था. वह वही प्रक्रिया कर रहा था. जो भूमिगत समाधि लेने पर योगी जन करते है. वह बिना श्‍वास लिए प्राण को ग्रहण कर रहा था—मां से शुद्ध प्राण ही ग्रहण कर रहा था.

यही कारण है कि मां और बच्‍चे के बीच जो प्रेम है, वह और प्रेम से सर्वथा भिन्‍न होता है. क्‍योंकि शुद्धतम प्राण दोनों को जोड़ता है. अब ऐसा फिर कभी नहीं होगा. उनके बीच एक सूक्ष्‍म प्राणमय संबंध था. मां बच्‍चे को प्राण देती थी. बच्‍चा श्‍वास तक नहीं लेता था.

लेकिन जब वह जन्‍म लेता है, तब वह मां के गर्भ से उठाकर एक बिलकुल अनजानी दुनिया में फेंक दिया जाता है. अब उसे प्राण या ऊर्जा उस आसानी से उपलब्‍ध नहीं होगी. उसे स्‍वयं ही श्‍वास लेनी होगी. उसकी पहली चीख चूसने का पहला प्रयत्‍न है. उसके बाद वह मां के स्‍तन से दूध चूसता है. ये बुनियादी कृत्‍य है जो  तुम करते हो. बाकी सब काम बाद में आते है. जीवन के वे बुनियादी कृत्‍य है, और प्रथम कृत्‍य उसका अभ्‍यास भी किया जा सकता है.

यह सूत्र कहता है: ‘’या कुछ चूसो और चूसना बन जाओ.‘’

किसी भी चीज को चूसो, हवा को ही चूसो, लेकिन तब हवा को भूल जाओ और चूसना ही बन जाओ. इसका अर्थ क्‍या हुआ? तुम कुछ चूस रहे हो, इसमें तुम चूसने वाले हो, चोषण नहीं. तुम चोषण के पीछे खड़े हो. यह सूत्र कहता है कि पीछे मत खड़े रहो, कृत्‍य में भी सम्‍मिलित हो जाओ और चोषण बने जाओ.

किसी भी चीज से तुम प्रयोग कर सकते हो, अगर तुम दौड़ रहे हो तो दौड़ना ही बन जाओ और दौड़ने वाले न रहो. दौड़ना बन जाओ. दौड़ बन जाओ और दौड़ने वाले को भूल जाओ. अनुभव करो कि भीतर कोई दौड़ने वाला नहीं है.

मात्र दौड़ने की प्रक्रिया है. वह प्रक्रिया तुम हो—सरिता जैसी प्रक्रिया. भीतर कोई नहीं है. भीतर सब शांत है. और केवल यह प्रक्रिया है.

चूसना, चोषण अच्‍छा है. लेकिन तुमको यह कठिन मालूम पड़ेगा. क्‍योंकि हम इसे बिलकुल भूल गए हैं. यह कहना भी ठीक नहीं है कि बिलकुल भूल गए हैं. क्‍योंकि उसका विकल्‍प तो निकालते ही रहते है.

मां के स्‍तन की जगह सिगरेट ले लेती है. और तुम उसे चूसते रहते हो. यह स्‍तन ही है, मां का स्‍तन, मां का चूचुक.  और गर्म धुआँ निकलता है, वह मां का दूध.

इसलिए छुटपन में जिनको मां के स्‍तन के पास उतना नहीं रहने दिया गया, जितना वे चाहते थे, वे पीछे चलकर धूम्रपान करने लगते हैं. यह बिलकुल भूल गए है, और विकल्‍प से भी काम चल जाएगा.

इसलिए अगर तुम सिगरेट पीते हो तो धुम्रपान ही बन जाओ. सिगरेट को भूल जाओ, पीने वाले को भूल जाओ और धूम्रपान ही बने रहो.

एक विषय है जिसे तुम चूसते हो, एक विषयी है जो चूसता है. और उनके बीच चूसने की, चोषण की प्रक्रिया है. तुम चोषण बन जाओ प्रक्रिया बन जाओ. इसे प्रयोग करो. पहले कई चीजों से प्रयोग करना होगा और तब तुम जानोगे कि तुम्‍हारे लिए क्‍या चीज सही है.

तुम पानी पी रहे हो. ठंडा पानी भीतर जा रहा है. तुम पानी बन जाओ. पानी न पीओ. पानी को भूल जाओ.

अपने को भूल जाओ, अपनी प्‍यास को भी, और मात्र पानी बन जाओ. प्रक्रिया में ठंडक है, स्‍पर्श है, प्रवेश है, और पानी है— वही सब बने रहो.

क्‍यों नहीं? क्‍या होगा?  यदि तुम चोषण बन जाओ तो क्‍या होगा?

यदि तुम चोषण बन जाओ तो तुम निर्दोष हो जाओगे—ठीक वैसे जैसे प्रथम दिन जन्‍मा हुआ शिशु होता है. क्‍योंकि वह प्रथम प्रक्रिया है. एक तरह से आप पीछे की और यात्रा करेंगे. लेकिन उसकी ललक, लालसा भी तो है. आदमी का पूरा अस्‍तित्‍व उस स्तन पान के लिए तड़पता है. उसके लिए वह कई प्रयोग करता है, लेकिन कुछ भी काम नहीं आता. क्‍योंकि वह बिंदु ही खो गया है. जब तक तुम चूसना नहीं बन जाते, तब तक कुछ भी काम नहीं आएगा. इसलिए इसे प्रयोग में लाओ.

एक आदमी को मैंने यह विधि दी थी. उसने कई विधियां प्रयोग की थी. तब वह मेरे पास आया. उससे मैंने कहा, यदि मैं समूचे संसार से केवल एक चीज ही तुम्‍हें चुनने को दूँ तो तुम क्‍या चुनोगे? और मैंने तुरंत उसे यह भी कहा कि आँख बंद करो और इस पर तुम कुछ भी सोचे बिना मुझे बताओ. वह डरने लगा, झिझकने लगा. तो मैंने कहा, न डरों और न झिझको. मुझे स्‍पष्‍ट बताओ. उसने कहा, यह तो बेहूदा मालूम पड़ता है. लेकिन मेरे सामने एक स्‍तन उभर रहा है. और यह कहकर वह अपराध भाव अनुभव करने लगा. तो मैंने कहा, मत अपराध भाव अनुभव करो. स्‍तन में गलत क्‍या है ? सर्वाधिक सुंदर चीजों में स्‍तन एक है, फिर अपराध भाव क्‍यों?

लेकिन उस आदमी ने कहा, यह चीज तो मेरे लिए ग्रस्‍तता बन गई है. इसलिए अपनी विधि बताने के पहले आप कृपा कर यह बताएं कि मैं क्‍यों स्‍त्रियों के स्‍तनों में इतना उत्‍सुक हूं? जब भी मैं किसी स्त्री को देखता हूँ, पहले उसका स्‍तन ही मुझे दिखाई देता है. शेष शरीर उतने महत्‍व का नहीं रहता.

और यह बात केवल उसके साथ ही लागू नहीं है. प्रत्‍येक के साथ, प्राय: प्रत्‍येक के साथ लागू है. और यह बिलकुल स्‍वाभाविक है. क्‍योंकि मां का स्‍तन की जगत के साथ आदमी का पहला परिचय बनता है. यह बुनियादी है. जगत के साथ पहला संपर्क मां के स्‍तन बनता है. यही कारण है कि स्‍तन में इतना आकर्षण है, स्‍तन इतना सुंदर लगता है. उसमें एक चुंबकीय शक्‍ति है.

इसलिए मैंने उस व्‍यक्‍ति से कहा कि अब मैं तुमको विधि दूँगा. और यही विधि थी जो मैंने उसे दी. किसी चीज को चूसो और चूसना बन जाओ. मैंने बताया कि आंखें बंद कर लो और अपनी मां का स्‍तन याद करो या और कोई स्‍तन जो तुम्‍हें पंसद हो, कल्‍पना करो और ऐसे चूसना शुरू करो कि यह असली स्‍तन है. शुरू करो.

उसने चूसना शुरू किया. तीन दिन के अंदर वह इतनी तेजी से, पागलपन के साथ चूसने लगा. और वह इसके साथ इतना मंत्र मुग्ध हो गया कि उसने एक दिन आकर मुझसे कहा, यह तो समस्‍या बन गई है.

सात दिन में चूसता ही रहा हूं. और यह इतना सुंदर है और इसमे ऐसी गहरी शांति पैदा होती है.‘’ और तीन महीने के अंदर उसका चोषण एक मौन मुद्रा बन गया. तुम होंठों से समझ नहीं सकते कि वह कुछ कर रहा है. लेकिन अंदर से चूसना जारी था. सारा समय वह चूसता रहता. यह जब बन गया.

तीन महीने बाद उसके मुझसे कहा, ‘’कुछ अनूठा मेरे साथ घटित हो रहा है. निरंतर कुछ मीठी द्रव सिर से मेरी जीभ पर बरसता है. और यह इतना मीठा और शक्‍तिदायक है. कि मुझे किसी और भोजन की जरूरत नहीं रही. भूख समाप्‍त हो गई है. और भोजन मात्र औपचारित हो गया. परिवार में समस्‍या न बने, इसलिए मैं दूध लेता हूं. लेकिन कुछ मुझे मिल रहा है जो बहुत मीठा है. बहुत जीवनदायी है.‘’

मैंने उसे यह विधि जारी रखने को कहा.

तीन महीने और. और वह एक दिन नाचता हुआ, पागल सा मेरे पास आया. और बोला, चूसना तो चला गया, लेकिन अब मैं दूसरा ही आदमी हो गया हूं. अब मैं वही नहीं रहा हूं. जो पहले था. मेरे लिए कोई द्वार खुल गया है. कुछ टूट गया है. और कोई आकांक्षा शेष नहीं रही. अब मैं कुछ भी नहीं चाहता हूं, न परमात्‍मा. न मोक्ष, अब जो है, जैसा है, ठीक है. मैं उसे स्‍वीकारता हूं और आनंदित हूं.‘’

इसे प्रयोग में लाओ. किसी चीज को चूसो और चूसना बन जाओ. यह बहुतों के लिए उपयोगी होगा. क्‍योंकि यह इतना आधारभूत है.

ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र
(तंत्र-सूत्र—भाग-1)
प्रवचन-5

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