1991 का लोकसभा चुनाव और यूपी का विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहा था. चंद्रशेखर जी के PM पद से त्याग पत्र देने के बाद चुनाव हो रहा था. बलिया से चंद्रशेखर जी उम्मीदवार थे, बलिया के दुआबा विधानसभा चुनाव से भरत सिंह (वर्तमान संसद बलिया ) उनके विधान सभा के उम्मीदवार थे.
चंद्रशेखर जी के एक साथी सूरजदेव सिंह थे जो धनबाद के सर्वशक्तिमान दबंग थे, राजनैतिक गलियारे में चर्चा होती थी सूरजदेव सिंह ही चंद्रशेखर की पार्टी का अधिकांश खर्च उठाते थे.
सूरजदेव सिंह जी चंद्रशेखर जी के सबसे खुद्दार और वफादार साथी थे, उनकी इसी नजदीकी की वजह से सूरजदेव सिंह के छोटे भाई विक्रम सिंह ने दुआबा विधानसभा चुनाव से टिकट माँगा लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला, फिर जिद्दी विक्रम सिंह ने कांग्रेस से अपने लिए टिकट ले आये.
सूरज देव सिंह खुद बलिया चुनाव के समय आ गए, अपने भाईयो से कहा मुझे सिर्फ चंद्रशेखर जी के संसद वाली सीट से मतलब है, मैं विधानसभा में ना तो विक्रम का और ना ही भरत का समर्थन करूँगा.
अपने भाई को निर्देश दिया, अपना वोट तुम मांगो लेकिन लोकसभा में चंद्रशेखर जी के वोट से खिलवाड़ मत करना.
वोटिंग के दिन सुबह ही खबर उड़ी विक्रम सिंह बूथ कब्ज़ा करते जा रहे हैं और उनके समर्थक लोकसभा में भी कांग्रेस को वोट मार रहे है, और बूथ लूटने वाला उनके ही सिनेमा हॉल का पहलवान है.
खुद सूरजदेव सिंह बताये गए बूथ पर पहुँच गए, पहलवान को बुलाया क्यों बे चंद्रशेखर जी को वोट क्यों नहीं पड़ रहे है?
उसने बोल दिया आपकी सुने या आपके छोटे भाई की.
इतना सुनते ही कार में बैठे सूरज देव सिंह अपना आपा खो बैठे और मुँह से निकला तेरी हिम्मत मेरे सामने जुबान खोलता है, और वहीँ कार में लुढ़क गए. थोड़ी देर में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.
चंद्रशेखर जी और भरत सिंह दोनों चुनाव जीते.
तो ये था एक खुद्दार, वफादार साथी का कर्तव्य जो अपने साथी के लिए कुर्बान हो गया और अपने प्यारे भाई का साथ नहीं दिया.
इसको संस्कार भी बोलते हैं.
अब आईये समाजवादी परिवार पर, जिस मुलायम ने ना जाने कितनो आवारा गुंडों को विधायक, संसद बना दिया, आज उसके जिन्दा रहते ही उसके सामने उसका कुसंस्कारी बेटा और उसके सामने कभी सर नहीं उठा पाने वाले राम गोपाल, नरेश अग्रवाल जैसे भ्रष्ट सीना तानकर उसको चुनौती दे रहे हैं. निकम्मा लड़का तो उसको लचर और विवश बना दिया है.
कंस को छोड़कर हिन्दुओं के किसी भी दानवी पुत्र ने अपने दानव पिता के साथ गद्दारी नहीं की. माता मंदोदरी के लाख समझाने के बाद भी मेघनाथ ने रावण का साथ नहीं छोड़ा.
लेकिन आजम और आजमी जैसों की संगति में मुलायम का बेटा…………. ये सभी कुसंस्कार के नतीजे हैं….
सूरजदेव सिंह माफिया थे लेकिन धार्मिक आयोजनों में बढ़ चढ़ कर भाग लेते थे, संतो सन्यासियों के कदमो में अपना सर झुकाते थे, कभी अपनी परिवार के किसी भी समारोह में सैफई वालो की तरह किसी को नहीं नचाया. उनका पूरा परिवार उनके चरित्र के सामने नतमस्तक रहता था और उनका अनुसरण करता था, कोई उनके जीते जी चरित्रहीन नहीं बना.
जब सैफई में बाप अपने बेटे के साथ अर्धनग्न तारिकाओं के नाच देखेगा तो बेटा उसको बेइज्जत करेगा ही. जैसी करनी वैसी भरनी.
– जीतेन्द्र कुमार सिंह
(फेसबुक पोस्ट से साभार )