वो एक पूरा संवाद था
जब तुमने कहा था
ऐसा कुछ विशेष नहीं हमारे बीच
जो रहे सदियों तक
और हम उस सदी को
हर पल जीते रहें।
वो पूरा संवाद था
जिसे मैं उठाकर लाई थी
अपनी पलकों के किनारे पर रखकर
बावजूद इसके कि
वह ऊपर से छलक रहा था
वो पूरा संवाद था
जिसे मैं नाराज़गी बनाकर
निकाल सकती थी कुछ बरस और
यूँ ही तन्हाइयों में छुपाकर
लेकिन जब उसे दोबारा देखा
तो लगा कुछ रह गया मुझसे वहीं पर
जहाँ तुम खड़े थे
और मैं गुज़र गई थी तुमसे होकर
मैं शायद भूल आई हूँ
अपनी साँसे तुम्हारे लबों पर
कुछ पल खामोश ही रहना
मैं उठा लूँ अपनी साँसे
इससे पहले कि तुम
फिर कहो कि
ऐसा कुछ विशेष नहीं हमारे बीच….
– माँ जीवन शैफाली
विरह की मारी प्रेम दीवानी…..
तन मन प्यासा अंखियों में पानी….
निंदिया न आये….
रैना बीती जाए…..