भाई, मैं न तो दारु के परनाले बहाने का शौक़ीन हूँ… न ही मुँह से चिमनी भर धुंआ निकाल पाने की सामर्थ्य रखता हूँ.
बिना ये दो सुकर्म किए हमने जैसे-तैसे डिग्री तो हथिया ली, पर जब तक डिग्री का शुद्धिकरण सोमरस द्वारा न हुआ हो उसे सम्पूर्ण माना ही नहीं जाता. इस तर्क के आगे नतमस्तक होकर मेरी डिग्री आज तक अपूर्ण ही है…
अपूर्ण डिग्री से भला किसी को नौकरी मिली है क्या? खैर, जैसे–तैसे नौकरी का जुगाड़ तो हमने कर लिया… पर हमारी अन-प्रोफेशनल आदतों माने बिना सोमरस सेवन और फेफड़ा दहन की क्रिया बगैर, नौकरी की हालत वैसे ही है जैसे बंगाल में हिदुत्व.
ऊपर से तुर्रा यह कि हम कभी–कभार भारतीय परिधान में कार्यालय पहुँच जाते हैं. उस दिन बड़े साहब वार्निंग देकर हमारी दिहाड़ी से सौ रुपया काट लिया करते हैं…
हमें सर पर शिखा माने चुटिया रखने और कंधे पर यज्ञोपवीत माने जनेऊ पहनने की भी मानसिक बीमारी है.
चूँकि इस प्रकार की वेश–भूषा को सांप्रदायिक माना जाता है, इसलिए हर दिन सुबह–सुबह दफ्तर का गार्ड हमारी चुटिया की फोटो खींच कर बड़े साहब को भेज देता है और दिहाड़ी से सौ रुपया अलग से और कट जाता है…
एक बार बड़े साहब ने लघुशंका करते हुए कान पर चढ़ा हुआ जनेऊ देख लिया था… उस दिन इस सांप्रदायिक सूत्र विशेष के कारण साल का बोनस घट कर शून्य हो गया था और प्रोमोशन कैन्सल…
इस प्रकार के सांप्रदायिक गलीच जीव के जीवन में भला ‘हैप्पी’ जैसा क्या होगा… इसलिए हैप्पी न्यू ईयर या ऐसा कुछ बोल कर शर्मिंदा न करें…
अरे गलत ना समझें भाई… हम ‘हैप्पी’ लाने खातिर, बीबी–बच्चा समेत ‘न्यू ईयर’ वाले बाबा के पास गए थे.
एकदम भक्ति भाव से हाथ जोड़कर बोले भी, ‘दुहाई हो… न्यू ईयर बाबा की… पायलागूं… बाबा हमरा भी नवका साल हप्पी कइ देव.’
बाबा गुस्सा के बोले, ‘चिरकुट चुटिया धारी, निरे गंवार हो क्या?… जब तक चार–छह सुराही दारु गटक के, उसको उल्टी कर के चाट ना लो और बीबी दस–बीस मर्दों के बीच नाच न ले… तब न्यू ईयर बाबा हैप्पी कैसे हो सकते हैं?’
बाबा गुस्से में भुनभुनाते रहे, ‘मूर्ख, शाकाहारी, पाखण्डी, धूर्त… शर्म नहीं आती… हैप्पी न्यू ईयर मांगते हुए… जाओ तंदूरी मुर्गी खाओ… खा नहीं सकते तो कम से कम ‘तंदूरी मुर्गी गुलाम’ वाले गाने पर नाचो–नचाओ ही सही.’
भइया, हम ठहरे देशी गंवार जीव, हमसे बाबा की शर्त मंजूर न हो पाई.
सो तबसे हम चुपचाप फागुन के इन्तजार में बैठे हैं… जब फागुन आएगा… तब ढोल–मजीरा लेके महीना भर खूब झूम–झूम के फगुआ गाएंगे… होली के दिन रंग–अबीर खेलेंगे, गुझिया बाँटेंगे…
… और उसके पूरे पन्द्रह दिन बाद, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा वाले दिन बीबी–बच्चा समेत हैप्पी न्यू ईयर मनाएंगे… नव वर्ष मंगलमय करेंगे… सम्पूर्ण सृष्टि के लिए मंगल कामना करेंगे… तब तक के लिए हैप्पी न्यू ईयर पोस्टपोंड!