मैंने कुछ क़रार कर लिए हैं मौसमों से
मैं उनके हाथ भेजूंगा कुछ पैगाम तुम्हें
हमारे दरिमयां पसरे फ़ासलों को
मैं अब के धुंधला कर दूंगा..
मैं हवाओं में भर भेजूंगा छुवन अपनी
वो तुम्हे छुएंगी वैसे ही
जैसे मैं छुना चाहता हूँ
और तुम्हे आएगी मेरे जिस्म की भी महक
और तुम महका करना….
मैंने कुछ क़रार कर लिए हैं मौसमों से…
मैं बारिशो के हाथ चुम्बन भेज दूंगा
तुम पर हर टपकती बूँद में
मेरे लबों की ही नमी होगी
वो तुम्हे चूमेंगी और तुम भीगा करना…
मैंने कुछ क़रार कर लिए हैं मौसमों से
मैं धूप में भर दूंगा अपने आगोश की तपिश
सर्द मौसम में तुम खुद से ढूँढा करना
और उस धूप से लिपट जाया करना…
मैंने कुछ क़रार कर लिए हैं मौसमों से
मैं अब के बहार के हाथ भेजूंगा फूल तुम्हें
तुम्हारी पसदं के रंगो से भर कर
तुम उन्हें चुनना और गूंथ लेना गजरा
और उनकी रंगत से रंग जाया करना….
मैंने कुछ क़रार कर लिए हैं मौसमों से…
मैं उस चाँद पर एक आइना लटका दूंगा
तुम उसमें देखा करोगी खुद को
वो आईना घटता बढ़ता रहेगा..
तुम्हारी उदासी और ख़ुशी के साथ
तुम उस से बाते किया करना….
मैंने कुछ क़रार कर लिए हैं मौसमों से
मैं उनके हाथ भेजूंगा कुछ पैगाम तुम्हें…
– कुलदीप वर्मा