बहुत नहीं हो गया??? बच्चे के खतना से लेकर ही तो तुम उसका खून बहाना शुरू कर देते हो. बोलना सीखने से पहले तो अलग अलग मौकों पर वो खून बहाना सीख जाता है… कभी ईद के नाम पर, कभी मुहर्रम के नाम पर….
तुम चिढ़ा लो चाहे तो हमें… हम हनुमान के नाम पर बन्दर की पूजा करते हैं, गणपति के नाम पर हाथी की पूजा करते हैं, गाय को माँ कहते हैं… बैल को नंदी बनाकर शिव का वाहन बना देते हैं, चूहे को गणेश का…
नाग पंचमी पर हम नाग की पूजा करते हैं… तुम्हें तो ये भी नहीं पता होगा कि नेवला नवमी भी होती है हमारे यहाँ, जब हम नेवले की भी पूजा करते हैं…
गरुड़- विष्णु, उल्लू-लक्ष्मी जी, भैंसा-यमराज, हंस-सरस्वती, सिंह-दुर्गा…. हर अवतार के साथ तो कोई न कोई जानवर जुड़ा है… अरे हम तो कछुए की और वराह के रूप में सुअर की भी पूजा करते हैं….
यहाँ तक कि हम तो तुलसी, बरगद, आंवला, पीपल, बैर के पेड़ों को भी पूजते हैं…
हम नदियों को पूजते हैं…
हम सूरज को पूजते हैं…
हम धरती को पूजते हैं…
लेकिन हम कभी किसी त्यौहार पर किसी बच्चे को रक्त के दर्शन नहीं करवाते…
चलो हिन्दू धर्म पसंद नहीं करते तो सिक्खों को देख लो… बच्चे के पास कृपाण और कटार मिल जाएगा… उसे बचपन से सिखा दिया जाता है कि उसकी कौम दूसरों की रक्षा के लिए बनी है… कभी अन्याय को बर्दाश्त मत करना…
इसाईयों को देख लो… उनके भी गम के त्यौहार है, यीशु को सूली पर लटकाया गया था… क्रॉस पर लटके यीशु के हाथों से टपकते खून को उन्होंने चित्रों में देखा है… लेकिन वो अपने बच्चों को बदले की आग में खून बहाना नहीं सिखाते….
वही संस्कृति और सम्प्रदाय ज़िंदा रह पाती है जो समय के साथ परम्पराओं को बदलता रहे… हमने सती प्रथा का उन्मूलन कर दिया… बाल विवाह, बहु विवाह, घूँघट, अस्पृश्यता… सब कुछ त्याग दिया…
तुम क्यों नहीं मान लेते? क्यों ज़िद पर अड़े हो? इन परम्पराओं के बोझ से एक दिन तुम खुद दब जाओगे… अब भी समय है…. लौट आओ मानवता की ओर वरना हम सब मिलकर भी तुम को नहीं बचा पाएंगे…