कल मोदी सरकार ने सिंगापुर के साथ हुई 2006 में टैक्स संधि (ट्रीटी) संशोधित करके भारत में काला धन लाने का एक और रास्ता बंद कर दिया. विमुद्रीकरण के साथ-साथ सरकार काले धन से हर मोर्चे पर लड़ रही है.
[पहले की सरकारों ने काट रखे थे अपने ही देश के हाथ पांव]
विपक्ष और विरोधी सिर्फ विमुद्रीकरण पर सरकार को घेर रहे हैं. सरकार की बुराई कर रहे हैं और बहाना गरीबों को हो रही मुश्किलो का बना रहे हैं. लेकिन जानबूझकर वो इन सब संधियों पर खामोश रहते हैं.
सरकार से पूछते हैं कि वो बाकी मोर्चों पर क्या कर रही है. खाली 6% काला धन कैश के रूप में है. वो इस बात को गोल कर जाते हैं कि इन धन कुबेरों को कितनी परेशानी हो रही होगी, इन टैक्स संधियों के रद्द हो जाने से.
ये सच है कि विमुद्रीकरण काले धन पर तात्कालिक रोक लगा सकता है. लेकिन भविष्य में फिर काले धन के संग्रह पर रोक नहीं लगा सकता, न ही करप्शन को रोक सकता है.
जब तक विमुद्रीकरण के साथ-साथ, और सरकारी नीतियां लागू न हों, विमुद्रीकरण का फायदा नहीं मिलता.
पुरानी सरकारें ऐसी नीतियां बना रही थीं जिससे काले धन को और बढ़ावा मिलता था. जब मोदी जी कहते हैं कि हमारा संघर्ष 70 सालों में बने करप्शन और लूट के सिस्टम से है, तो सबसे बड़ी जरूरत उस सिस्टम को समझने की है.
अब देखिये, मॉरीशस के साथ हुई टैक्स ट्रीटी से काले धन को भारत में वापस लाने का रास्ता खोला गया था और हमारी सरकारें 1996 से इन टैक्स ट्रीटी को रद्द करने की कोशिश कर रही थी और साथ में नयी टैक्स ट्रीटी भी करती जा रही थीं.
लेकिन इन तमाम टैक्स संधियों को रद्द सिर्फ मोदी सरकार ही कर पायी, अब सोचिये क्यों?
जैसा इस बार मोदी जी ने पिछले रविवार को मन की बात प्रोग्राम में कहा और मैं लगातार कहता आ रहा हूँ कि कानून तो सभी सरकारे बनाती हैं, लेकिन अंतर उन कानूनों को लागू करने का है.
मोदी जी ने 1988 में बने बेनामी प्रॉपर्टी के कानून का उल्लेख किया था जो आज तक इम्प्लीमेंट नहीं हुआ और अब मोदी सरकार उसे लागू करने जा रही है.
यही अंतर है कांग्रेस और मोदी सरकार में… और इसीलिए मैं मोदी सरकार के साथ हूँ.