जीवन का गीत
विलंबित से द्रुत में बढ़ता हुआ
जब-जब तेरे ख़याल पर आकर रुका
तो रुक गयी हर वो शै
जिसके बढ़ते रहने से
बढ़ रही थी तेरी तलाश
रुक गयी सूरज की किरण
पृथ्वी तक आने के अपने आधे सफ़र में ही
और रुक गयी महासागर सी उठती वो लहर
जो तुम्हारी खुली पीठ से गुज़रती हुई
मेरी गर्दन की नसों तक उतर जाती थी
उसी रुके हुए पल में
जब तुमने थामा था हाथ
तो धरती तक पहुँचने से पहले ही वो किरण
समा गयी थी मेरी आँखों में
आज भी रोशनी की वह किरण
उस ऊंची लहर से टकराती है
तो समूचे ब्रह्माण्ड में इन्द्रधनुष की
सात किरणें खिंच जाती है
उन सात किरणों में सात गाँठ लगाकर
सात जन्मों तक तेरे घर के सात फेरे लगाती हूँ
तब जाकर तेरे दुनियावी घर से सात घर दूर डेरा जमा पाती हूँ
इस जन्म का ये कैसा फेरा था
कि सातवीं बार में मेरी मांग पर आकर
सूरज ने दम तोड़ दिया
और सारी रोशनी मेरे माथे पर फ़ैल गई
कोई कहता है ये किस्मत का सूरज है
कोई कहता है ये इश्क़ का सूरज है .
मैं कहती हूँ ये उस धरती का सूरज है
जो उसकी एक किरण को पाने के लिए
दिन रात अपनी ही धुरी पर घूमती रही
और मुझे सिखाती रही घूमना
तेरी तलाश में…
– माँ जीवन शैफाली
गीतकार : मजरुह सुलतानपुरी,
गायिका : लता मंगेशकर,
संगीतकार : सचिन देव बर्मन,
फिल्म : तलाश (1969)