आपके बाहरी नस्ल के अशरफ आकाओं के बच्चे मदरसे में पढ़ते हैं या कॉन्वेंट में?

एक वाजिब परेशानी है कि भारत में रहनेवाला मुसलमान अभी तक अरब से जुड़ा क्यूँ है. उस से भी बड़ी दिक्कत यह है कि सभी इस्लामी आतंकवादी घटनाओं के नाम अरबी क्यों है तथा ऐसे नामों का महिमा गा रहे हैं जो इस्लाम के प्रसार में हुए बड़े-बड़े नर-संहारों से जुड़े हैं. भारत से क्यूँ नहीं जुड़ रहा भारत में रहने वाला मुसलमान?

यह गुत्थी सुलझाने के लिए ज़रूरी है कि भारत में रहने वाला मुसलमान कुछ मुगालतों से उबरे. क्या इत्तफाक है कि ये दोनों लफ्ज ‘मु’ से ही शुरू होते है, मुसलमान और मुगालता. खैर, मुद्दे पर आते हैं.

सब से पहली और सब से अहम बात ये है कि भारत में रहने वाला मुसलमान ये जान ले कि हिंदुस्तान में मुसलमानों की हुकूमत दुबारा मुमकिन नहीं.

दूसरी बात करते हुए मैं आम अजलफ मुसलमान से मुखातिब हूँ कि मेरे भाई, आप कभी हुक्मरान थे ही नहीं. हुकूमत जिन्होंने की, उन्होंने आप को सिर्फ इस्तेमाल और पायमाल किया, मालामाल खुद ही हुए. यही वजह है कि 1000 साल बाद भी आप खस्ताहाल हैं.

उन हुक्मरानों के लिए आप को बस पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी जान कुर्बान करनी पड़ी है जिन्होंने आप को कभी अपनी बराबरी का न कभी माना है, न मानने की गुंजाइश है. आप इस हक़ीक़त से अच्छी तरह वाकिफ हैं.

उन बाहरी नस्ल के अशरफों के लिए आप महज़ बोझ ढोने वाले खच्चर हैं और सच्चर ने भी यही कारण पाया आपकी खस्ताहाली का.

आप ये भी जानते हैं कि आप का खून इसी मिट्टी से जुड़ा है, अशरफों ने अपनी नस्ल अलग से सँजोई है.

उनकी खिदमत में आप खप गए, तालीम से मरहूम रखे गए. उनकी हुकूमत तो अंग्रेजों ने खत्म कर दी और आप उनके खाकसार थे, खाक ही रह गए.

कभी मांगा भी है अपने, बाहरी नस्ल के अशरफ आकाओं से हिसाब या आज भी उनके उकसाने पर औरों से ही वसूलने की फिराक में हो आप?

भारत में रहने वाले मुसलमान को वे शातिर रहबर मिले हैं जिन्होंने ज़ाती सियासी फायदे के खातिर इन्हें हमेशा गुमराह कर के भारत और भारतीयता के बीच एक खाई ही बना रखी है.

फिर भी इस तरफ से पुल बांधने की कोशिशें जारी रही हैं लेकिन इन कहलाते रहबरों ने हमेशा यही सोच बोई है कि एकमुश्त रहने से सरकार से ज्यादा नोंच-खसोट सकते हैं.

कभी ये न कहा कि पढ़ो, आला तालीम हासिल करो, दो नंबर के ही धंधे छोड़ कर रुतबा भी हासिल करो.

छुटपुट कोशिशों का इजहार न करें, जो पढे हैं, आगे आए हैं – खास कर खवातीन – अच्छी तरह से जानती हैं कि ये सफर आसान नहीं रहा है. सदियों की हुकूमत के बाद भी आप का यही हाल?

अपने बाहरी नस्ल के अशरफ रहबरों की असलियत जान लीजिये और ये भी जान लीजिये कि दहशत से आप जो चाहें, अब करवा नहीं सकते. लद गए वे दिन.

दहशतगर्दी का अंजाम वही होगा जो होता है और होना चाहिए. पुल बांधना आप भी शुरू करें, खाई मिटा दें.

प्रैक्टिकल हो जाएँ और बच्चे उतने ही पैदा करें जिन्हें आप अपनी हैसियत के मुताबिक आला तालीम दे सकते हैं, उन्हें मदरसे में ही पढ़ाना आप की मजबूरी न हो. आप के बाहरी नस्ल के अशरफ आकाओं के बच्चे मदरसे में पढ़ते हैं या कान्वेंट में?

जैसे कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, आप की जड़ें इसी मिट्टी में हैं, इसी मिट्टी से न सिर्फ खुद वफादार रहें बल्कि औरों को भी गद्दारी से रोकें. आज की तारीख में यह सब से अहम काम है.

और एक बड़ी बात – गज़वा ए हिन्द का ख्याल दिल से निकाल दें. आज ये बस एक पाकिस्तानी खयाली पुलाव है. वैसे भी यह कोई सही रिवायत नहीं है जिस से सबाब मिले. और आज करारा और गारद करनेवाला जवाब ही मिलेगा.

क्या यह कोई चाँद तोड़कर मांगा है? बाकी प्रैक्टिकल हम भी हैं. ये जानते हैं कि न बदलेगा कुरान, न बदलेगा इस्लाम. लेकिन यकीन है कि वक़्त का साथ दे तो बदलेगा मुसलमान.

भारत में रहनेवाले मुसलमान से इतनी ही इल्तजा है कि वो भारतीय ही हो कर भारत में रहे. मवेशी के भेड़ न बनें. अब्दुल हमीद पर हमें भी नाज है. नाम और भी हज़ारों हैं, जगह कम है.

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