ये मैं बस लिखने के लिए नहीं लिख रहा. मैं जो महसूस कर रहा वही लिख रहा हूँ. यूँ कहें कि मैं जो महसूस कर रहा उसे आप तक पहुंचाने का ये एक माध्यम मात्र है.
भारत सरकार ने बनारस में राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का आयोजन किया था 16 दिसंबर से 24 दिसम्बर, 2016 को. संस्कृति की नगरी काशी में इस यज्ञ को पूर्ण करने की जिम्मेदारी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की थी. अनचाहे ही लेकिन मुझे भी इसका हिस्सा बनना पड़ा. तब मैं नहीं चाहता था कि मैं ऐसे किसी आयोजन का हिस्सा बनूँ. लेकिन आज मुझे ख़ुशी है कि सर ने बिना बताए हमारा नाम भेज दिया, हमारा अनुभव उसके बाद काफी शानदार रहा.
पहले दिन से ही बाहर से आए कलाकारों की सहायता करने में काफी मजा आ रहा था. इसके साथ ही धीरे-धीरे उनसे व्यक्तिगत रिश्ते भी बनते चले गए. चाहे जम्मू के कुड के दादा खेमराज हों, राजस्थान के आशाराम मेघवाल हों, यशवंत हों, मणिपुर के यूनिवर्स हों, गतका टीम के मेंबर्स हों.. बिहार के झिझिया या नारदी वाले हो.. झारखण्ड और बंगाल के पुरुलिया चाव वाले हों.. कर्नाटक के धोलुकनिता टीम की हिंदी जानने वाली मैडम हों.. छत्तीसगढ़ के पंडवानी गायन वाले हों.. या केरल के श्रीकांत हों.. किसका-किसका जिक्र करूँ ? आठ दिन में ही सबसे अजीब सा लगाव हो गया था.
उनके रहने की समस्याएं हों, खाने की बात हो, परफॉरमेंस के लिए व्यवस्था करनी हो या अस्वस्थ होने पर हॉस्पिटल ले जाना हो. सब का ध्यान रखना होता था.
मंत्रालय के अधिकारियों के साथ काम करने में भी ऐसा नहीं लग रहा था कि हम चन्द दिनों से एक दूसरे को जानते हों. हमारा सामंजस्य भी बढ़िया था और आपसी ट्यूनिंग भी.
इस दौरान आउटरीच प्रोग्राम में मुझे कई गाँवों में जाने का मौका भी मिला.. मैं मोदी जी द्वारा गोद लिए गाँव जयापुर भी गया था. गाँव में विकास उतना भी नहीं, जितना मीडिया का एक खेमा बताता है.. वैसे स्थिति उतनी बुरी भी नहीं जितना दूसरा खेमा दिखाता है..
मुझे ख़ुशी थी कि इस दौरान मुझे जितने भी सेलिब्रिटीज के पास जाने का मौका मिला, मैंने सब से दो सवाल भले पूछ लिए, सेल्फी किसी के साथ नहीं लिया..
जब मैं लोगो को बता रहा था कि कल उन्हें मोदीजी से मिलना है तो उनकी खुशी देखने लायक थी ! ऐसा लग रहा था, जैसे कोई सपना सच हो रहा हो, सचमुच जनता दिवानी है उस नेता की. कई पास होने के बावजूद खुद वहां जाना मुझे उचित नहीं लगा.
कई लोग पास होने के बावजूद सुरक्षा कारणों से हॉल में नहीं घुस पाए, उनमें से कई निराश हो गए थे. उनसे बात कर के, उन्हें समझा कर उनके चेहरे पर मुस्कान लाकर खुद के समझदार होने का भ्रम हो रहा था.
कई यादें जुडी हैं पिछले 8 दिनों की.. राजस्थान के कच्ची घोड़ी वालों से फोटो लेने के लिए मैंने साफा माँगा तो वो भावुक हो गए, मुझे देते हुए कहने लगे ये साफा कोई साधारण चीज नहीं, इसे हम अपने उत्तराधिकारी को ही देते हैं.. बड़ी जिम्मेदारी की चीज है माथे पर रखी हुई ये पगड़ी जैसा दिखने वाला साफा. काश मैं कह पाता कि मैं ये जिम्मेदारी लेने को तैयार हूँ!
Unity in Diversity वाले भारत के Diversity से क्या खूबपरिचय हुआ मेरा!
दूसरे दिन उन्हें विदा करते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपना हमेशा के लिए जा रहा हो.. पर यही समय है.. ये चलता जाता है.. सबसे खूब इमोशनल टॉक्स हुए.. कलाकारों से भी अधिकारियों से भी.. मैं ये वादा करना नहीं भूला कि उनके राज्य आऊंगा तो उनसे मिलूंगा जरूर.
अब शायद ये तय हुआ है कि अगले साल से हर साल देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का आयोजन होगा. इन्तजार रहेगा. अगले साल इन लोगों से मिलने का एक और मौका मिले!
धन्यवाद काशी ! धन्यवाद संस्कृति मंत्रालय ! धन्यवाद भारत सरकार !