निरर्थक हो हल्ले का है तर्क क्या?

चाहती सरकार करना अंत भ्रष्टाचार का
पर समझ आता न कारण विपक्षी व्यवहार का।

दिखते जो हंगामे होते रोज नये नये सदन में
ये तो है अनुचित तरीका संसदीय प्रतिकार का।

सदन जुटता रोज फिर भी काम कुछ होता नहीं
ये तो है अपमान जनतंत्र के दिये अधिकार का।

लोकतांत्रिक प्रथा का सम्मान होना चाहिये
सदनों का तो काम ही है गहन सोच विचार का

समय, श्रम, धन देश का बरबाद होता जा रहा
यह तो एक व्यवहार दिखता गैर जिम्मेदार का।

इससे घटती ही प्रतिष्ठा हमारे जनतंत्र की
निरर्थक हो हल्ले का है तर्क क्या? आधार क्या?

सदन में ऐसी गिरावट तो कभी देखी नहीं
स्वस्थ चर्चा, वाद विवाद ही कार्य हैं सही प्रकार का।

सबो को निज मूर्खता पर शर्म आनी चाहिये
कर रहे दुरूपयोग जो निज पद के ही अधिकार का।

जो भी अपने धर्म का निर्वाह कर सकते नहीं
कैसे हो विश्वास उन पर देश के प्रति प्यार का ?

– प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘

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