न्यू टेस्टामेंट (यानि बाईबिल का उत्तर भाग) खोल कर देखिये कि वहां मसीह ने अपने शिष्यों को क्या प्रार्थना सिखाई थी. मैथ्यू ( 6:9-13) में मसीह कहते हैं :
“अत: तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो: ‘हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में हैं, तेरा नाम पवित्र माना जाए. तेरा राज्य आए, तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो, हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे.”
इसके विपरीत हमारे पूर्वज क्या प्रार्थना करते थे ‘श्रीदुर्गा सप्तशती’ खोल के पढ़ लीजिये. वहां हमारे ऋषि कहतें हैं :
विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
यानि, माँ! तुम मुझे विद्वान्, यशस्वी और लक्ष्मीवान करो. मुझे रूप (यानि आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय दो, यश दो और मेरे काम, क्रोध आदि व्याधियों का (शत्रुओं का) नाश करो.
मुंह उठाकर हम लोगों में ज्ञान की अलख जगाने आये हे मूर्ख मिशनरियों! जिस वक़्त तुम सिर्फ दिन की रोटी मिलने को ही जीवन का ध्येय मानने थे और केवल उसी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते थे, उससे सदियों पहले से हम ईश्वर से विद्या, यश, लक्ष्मी और जय मांगते थे. रोटी हमें हमारा पुरुषार्थ देता था.
कहते हैं कि भगवान बुद्ध के पास एक दिन एक बुढ़िया आई जिसका इकलौता जवान बेटा अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया था. बुढ़िया बुद्ध से बस यही कहकर रोये जा रही थी कि भगवन आप किसी तरह मेरे बेटे को जीवित कर दो.
बुद्ध ने शांत स्वर में उस बुढ़िया से कहा, माँ ! मैं अभी तेरे बेटे को जीवित कर देता हूँ पर तुझे एक काम करना होगा. तू पास के किसी गाँव से उस घर से एक मुट्ठी चावल मांग कर ले आ जिसके घर में आज तक कोई मरा न हो.
पुत्र शोक में डूबी वो बुढ़िया तुरंत पास के गाँव में गई. जिस भी दरवाजे पर जाकर चावल मांगती तो लोग तुरंत चावल लाकर उसे देने आ जाते पर बुढ़िया कहती, ठहरो, पहले ये बताओ कि आज तक तुम्हारे घर में कोई मरा तो नहीं है न?
लोग जबाब में कहते, पागल हो क्या माई, ऐसा भी कहीं होता है क्या? अभी इसी साल तो मेरे पिताजी का निधन हुआ. फिर बुढ़िया दूसरे के दरवाजे पर जाती वहां भी ऐसा ही जबाब मिलता. बुढ़िया एक-एक कर गाँव के हरेक दरवाज़े पर गई पर उसे कोई घर ऐसा न मिला जहाँ कोई मरा न हो.
निराश बुढ़िया भगवान बुद्ध के पास आई तो बुद्ध ने कहा, चावल ले आई माँ? बुढ़िया उनके चरणों में गिर गई और कहा, भगवन् , मुझे समझ आ गया कि जो भी यहाँ आया है उसे एक न एक दिन अवश्य जाना है और मुर्दे पुनर्जीवित नहीं हो सकते.
उधर आपके यहाँ मसीह ये कहकर लोगों को भ्रमित कर रहे थे कि वो मुर्दों को जीवित कर सकते हैं.
यहाँ गौर करने की बात ये है कि असत्य कहकर और चमत्कार का दावा कर लोकप्रिय होने के सहज रास्ते पर जाने की बजाय सत्य समझाने वाले बुद्ध, मसीह से हजारों साल पहले हुए थे. काल में मसीह से बहुत पीछे होकर भी सोच में वो उनसे कहीं अधिक वैज्ञानिक थे. श्रोता का फ़र्क भी हो सकता है.
आज से दो हज़ार साल पहले तक टिड्डी और वनमधु खाकर जीवित रहने वाले हे नराधमों! सनातन और अपने भीतर का फ़र्क अगर अब भी समझ नहीं आ रहा तो ‘द न्यूयॉर्क हेराल्ड’ का वो अंक कहीं से खोज के पढ़ लो जो हमारे स्वामी विवेकानंद के शिकागो उदगार के बाद छपी थी. जिसमें लिखा था :
“Vivekananda is undoubtedly the greatest figure in the Parliament of Religions. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation.”