मीडिया हरमज़दगी कर रहा है, सड़कों पर टमाटर फेंके जाने में नोटबंदी का कोई रोल नहीं

माँ कसम, ये गुज्जू दढ़ियल…. भोत बेकार आदमी है यार…. अगर आप समझते हैं कि इन्होने ये नोटबंदी 8 नवंबर को करी…. अगर आप वाकई ऐसा समझते हैं तो आप हैं बड़े बेवक़ूफ़!

अजी ये तो इस से पहले कई बार कर चुके नोटबंदी….

हमारे एक मित्र हैं… लखनऊ में रहते हैं… जात के कायस्थ हैं… पहले बैंक में थे… वहाँ से VRS ले ली….

लोगों को देशप्रेम, देशभक्ति का कीड़ा होता है… इनको देशभक्ति का अजगर था!

2013 – 14 की बात है… बोले खेती करूंगा…

लोगों ने समझा, भांग के अंटे का असर है… सुबह तक उतर जाएगा…

पर जब सुबह ए अवध हुई तो नशा और चढ़ गया… भाई साब सपरिवार पहुँच गए लखनऊ से बाहर एक गाँव में…

एक किसान से 2 एकड़ जमीन खरीद ली… दो चार एकड़ लीज़ पर ली… और लगे भैया सब्जी की खेती करने…

and यू know ये मोदी कम्बखत… वहीं गुजरात से बैठ के श्रीवास्तवजी की खेती पर नजर रखे हुए था.

इधर श्रीवास्तवजी के खेत में पत्ता गोभी बोले तो Cabbage की फसल लहलहा रही थी… श्रीवास्तवजी सपरिवार कंधे पे हल रखे सपरिवार ग्रुप song गाते थे… मेरे पुत्तर परदेस की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती… उत् परदेस की धरती…

पर मोदी से श्रीवास्तवजी के परिवार की खुशी देखी न गयी… और उन्होंने वहीं गाँधी नगर में ही बैठे बैठे (उस समय CM थे) कम्बखत यहाँ लखनऊ में नोट बंदी कर दी!

और भैया नोटबंदी होते ही जो पत्ता गोभी हज़रत गंज के AC शोरूम्स में 50 रूपए किलो बिक रही थी वो 50 पैसे किलो बिकने लगी.

इस दाम में तो लदाई मने cartage मने खेत से सब्जी मंडी तक लाने का ट्रेक्टर ट्राली का भाड़ा तो छोड़ो खेत में तुड़ाई तक नहीं निकलती…

अब श्रीवास्तवजी के सामने विकट समस्या… इस पत्ता गोभी का करें तो क्या करें?

तय हुआ कि ट्रेक्टर से जुतवा दो खेत में ही… कम से कम सड़ के खाद तो बनेगी.

पर उस से पहले गाँव के पशुओं को न्योत आये… पहले ढोर डंगर चर लें तो फिर जुतवायें.

4 दिन गाँव गिरांव की गाय भैंसों ने दुई एकड़ पत्ता गोभी की दावत उड़ायी. फिर सारी फसल मिट्टी में मिला दी गयी.

मित्रों…. जो श्रीवास्तव जी के साथ हुआ वो कोई नयी बात नहीं, ऐसा हर साल होता है…

आप कितनी भी उन्नत कृषि कर लें, प्रकृति अपना काम करेगी. कभी बंपर फसल आएगी, कभी एक-एक दाने को तरस जाएगा किसान.

एक बार हमने प्याज लगाए. इतने छोटे-छोटे प्याज हुए कि मुफ्त में भी कोई न ले. और एक बार उसी खेत में इतनी फसल हुई कि रखने की जगह न बची.

और ये तकरीबन हर फसल में होता है. और मंडी में दाम तो भैया सीधे सीधे demand and supply (मांग और आपूर्ति) पर निर्भर करते हैं.

मुझे वो दिन भी याद है जब 1990 में पटियाला के बाज़ार में अंगूर 2 रूपए किलो बिका था. कारण ये था कि बगल के जिले संगरूर के अंगूर किसानों के पास बंपर फसल हुई थी.

खेती किसानी में भाव का ऊपर नीचे होना आम बात है. किसी भी किसान से बात करके देखिये…

किसान कभी बंपर फसल की कामना नहीं करता. दाम हमेशा moderate yield (मध्यम उपज) में ही मिलता है.

मैंने वो दिन भी देखे हैं, जब आज से 3 या 4 साल पहले लखनऊ की सड़कों पर ए ग्रेड दशहरी आम 6 रूपए किलो बिका था.

आज देश में कुछ मंडियों में अगर टमाटर सड़कों पर फेंका जा रहा है तो उसमें नोटबंदी का कोई रोल नहीं. मीडिया हरमज़दगी कर रहा है.

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