जगन्नाथ भगवान की मूर्ति बदलने के लिए कौन देता है रहस्यमय पेड़ का पता!

पिछले सौ सालों में मूर्ति के लिए पेड़ की लिस्ट और वह वृक्ष 2015 में जिससे मूर्ति बनाई गई थीं - making india
पिछले सौ सालों में मूर्ति के लिए पेड़ की लिस्ट और वह वृक्ष 2015 में जिससे मूर्ति बनाई गई थीं

पुराने ज़माने में शिक्षा पूरी करने का एक हिस्सा घूमना भी होता था. बिहार में कुछ समय पहले सरकारी विद्यालयों के छात्र-छात्रों को एक शैक्षणिक यात्रा पर ले जाने की भी शुरुआत हुई थी. उसके बाद से यहाँ पटना के चिड़ियाघर के बाहर कई बसें खड़ी दिखती हैं, स्कूल के बच्चों से भरी हुई. उसमें बच्चे कितना, क्या सीखते हैं ये विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन ना घूमने की वजह से भारतीय काफी कुछ नहीं सीखते ये तो पक्का है.

चलिए ये देखने के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल चलते हैं. वजह ये है कि बुड्ढे होने पर आपकी प्रश्न करने की क्षमता, शौक सब कम हो जाते हैं तो जवानी में जहाँ आप देखकर सीखेंगे, वहीँ बुढ़ापे में आप सिर्फ अपनी स्थापित धारणाओं को पुष्ट कर रहे हों, इसकी संभावना बढ़ जाती है. तो हम जरा जल्दी चले गए. लेकिन इस 2015 में क्यों, तो 2015 में एक ख़ास बात है.

दरअसल हिन्दुओं के कलैंडर यानि कि पञ्चांग में हर 14 से 19 साल में एक महीना जोड़ना पड़ता है. 2015 ऐसा ही एक साल था. इस साल पुरी के जग्गनाथ मंदिर में जो मूर्तियां रखी हैं उन्हें बदला जाता है. मंदिर प्रांगण में जिन मूर्तियों की पूजा होती है उन्हें लकड़ी से बनाया जाता है. मुख्यतः इसमें नीम की लकड़ी इस्तेमाल होती है.

इन चारों मूर्तियों में भगवान जगन्नाथ की मूर्ति 5 फुट 7 इंच की होती है और उनके फैले हुए हाथ 12 फुट का घेरा बनाते हैं. इनका वजन इतना ज्यादा होता है कि पांच-पांच लोग इनके एक एक हाथ पर, बीस लोग उन्हें पीठ की तरफ से उठाते हैं और करीब पचास लोग उन्हें आगे से खींचते हैं. बलभद्र की मूर्ति इस से कहीं हल्की होती है. उनकी मूर्ति 5 फुट 5 इंच ऊँची होती है और उनके हाथ भी 12 फुट का घेरा बनाते हैं. सुभद्रा की मूर्ति 5 फुट से थोड़ी सी कम होती है, वो भी वजन में हलकी होती है. सुदर्शन की मूर्ति में कोई नक्काशी इत्यादि नहीं होती. लेकिन इसकी ऊंचाई 5 फुट 10 इंच होती है.

समस्या है इसके लिए नीम का पेड़ ढूंढना. किसी भी पेड़ से मूर्ती नहीं बनाई जा सकती. भगवान जगन्नाथ सांवले हैं इसलिए उनकी मूर्ती जिस पेड़ से बनेगी उसे भी गहरे रंग का होना चाहिए. लेकिन उनके भाई और बहनों की मूर्तियों के लिए हलके रंग वाली लकड़ी ढूंढी जाती है. जिस पेड़ से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनेगी, उस पेड़ में चार मुख्य डाल होनी चाहिए, जो भगवान के चार हाथों का प्रतीक हैं. पेड़ को किसी श्मशान के पास होना चाहिए.

उसके पास कोई तालाब या जलाशय भी होना चाहिए. पेड़ या तो किसी तिराहे के पास हो, या वो तीन पहाड़ों से घिरा हुआ होना चाहिए. पेड़ पर कोई लताएँ चढ़ी हुई नहीं होनी चाहिए. उसके पास वरुण, सहदा और विल्व (बेल) के पेड़ भी होने चाहिए. इनके अलावा पेड़ के आस पास किसी साधु की कुटिया-आश्रम भी होनी चाहिए. कोई न कोई शिव मंदिर भी पास ही होना चाहिए.

इस पेड़ पर किसी चिड़िया का घोंसला नहीं होना चाहिए. ख़ास बात ये भी है कि पेड़ की जड़ में किसी सांप की बांबी हो और पास ही कहीं चीटियों का घोंसला भी जरुरी है. अब सबसे जरूरी चीज़ ! पेड़ के तने पर प्राकृतिक रूप से बने हुए शंख और चक्र के निशान होने चाहिए. इतनी शर्तें पूरी करने वाले पेड़ के तने से ही भगवान जगन्नाथ की मूर्ती बन सकती है.

आप अब कहेंगे कि इतनी शर्तों को पूरा करने वाला पेड़ मिलेगा कहाँ? तो हर बार ऐसा पेड़ मिला है. पिछले सौ साल का रिकॉर्ड आप कभी भी देख सकते हैं, लम्बा रिकॉर्ड देखना हो तो दो चार दिन का समय लगेगा.

ऐसे नियम कायदों के बारे में ना जानने वाले एक सज्जन थे भीमराव रामजी आंबेडकर जिन्होंने अपनी किसी किताब में लिखा कि मंदिर का पुजारी बनने के लिए कोई नियम कायदे नहीं हैं. अतः मंदिर के पुजारियों की नियुक्ति के नियम होने चाहिए. वो निस्संदेह पुरी के जगन्नाथ मंदिर नहीं गए होंगे. अगर गए होते तो उन्हें पता होता कि इन नियमों के श्लोक जैसे लिखे होते हैं. उन्हें याद भी करना होता है, साथ ही दर्जनों बार उनका अभ्यास भी करना होता है. मतलब जिसे minimum requirement कहते हैं वो करीब 12-15 साल की प्रैक्टिस के बाद आएगी. खैर बेचारे जा के देखते तो मुझे या मेरे जैसे अन्य लोगों को उनपर सवाल करने का मौका भी नहीं मिलता.

ओह याद आया, इस मंदिर में गैर हिन्दुओं को प्रवेश नहीं करने दिया जाता है. मगर जो विज्ञ जन ये जानते ही कहने वाले हैं कि इस मंदिर में दलितों को प्रवेश नहीं मिलता होगा इसलिए भीमराव रामजी आंबेडकर नहीं गए यहाँ, वो अपनी आपत्ति जरूर दर्ज़ कराएं! आपके ऐसा बोलते ही इस मंदिर के पुजारियों की भी बात होगी!

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