उस नरक से आ रही सुकून देती एक आवाज़

भारत की आज़ादी का वक़्त करीब था पर कुछ लोग थे जिन्हें काफिर हिन्दूओं की बहुतायत वाला ये मुल्क रास नहीं आ रहा था. ऊपर से अब अंग्रेजों के बाद ये मुल्क भी फिर से दारुल-हर्ब श्रेणी में चला गया था इसलिये उन्हें अपने लिये एक पाक मुल्क की जरूरत महसूस हुई और पाकिस्तान का ख्वाब आँखों में पलने लगा.

ये ख्वाब देखने वालों में हरेक को मालूम था कि इस चाहत का परिणाम दोनों तरफ के लोगों के लिये कितना वीभत्स होने वाला है पर फिर भी उन्हें इसकी कोई परवाह न थी. जो कट्टरपंथी चेहरों के रूप में मशहूर थे उनकी बात नहीं करता पर इस खूनी ख्वाब देखने वालों में वो लोग भी शामिल थे जो शांति और सबके लिये मुहब्बत का तराना गाते थे.

जी, मैं बात कर रहा हूँ भारत के कादियान से जन्में इस्लामी पंथ अहमदियों की. ये वो तंजीम थी जो पाकिस्तान निर्माण के पक्ष में सबसे अधिक सक्रिय थी. कायदे-आज़म जिन्ना के एक नुमाइंदे सरदार शौकत हयात साहब कादियान जा-जाकर पाकिस्तान के हक में तत्कालीन अहमदिया खलीफा मिर्ज़ा बशीरउद्दीन महमूद अहमद खान साहब से चर्चा करते थे.

मिर्ज़ा बशीरउद्दीन महमूद अहमद ने सरदार शौकत हयात साहब से कहलवाया कि आप जाकर कायदे-आज़म साहब से कह दें कि जमात-अहमदिया का बच्चा-बच्चा पाकिस्तान के हक में खड़ा होगा, यहाँ तक कि आपके मुस्लिम लीग के उम्मीदवार के खिलाफ कोई अहमदी भी खड़ा हुआ तो हम उसे वोट नहीं देंगे.

और ऐसा हुआ भी, सियालकोट में जमात अहमदिया का एक शख्स चुनाव में लीग के उम्मीदवार के खिलाफ खड़ा हुआ, पर मिर्ज़ा बशीरउद्दीन महमूद अहमद की अपील पर अहमदियों ने उसे वोट न देकर कायदे-आज़म के उम्मीदवार को वोट दिया.

खैर, भारत विभाजन हुआ. दोनों तरफ के लाखों लोग मारे गये, महिलायें विधवा हुईं, उनकी अस्मतें लूटी गई, बाप के सामने बेटी का बलात्कार हुआ तो कहीं मासूम अनाथ हो गये.

अहमदियत जिस पंजाब सूबे में पनपी थी, जिन पंजाबी हिन्दू-सिखों के साथ उन अहमदियों ने अपना बचपन, जवानी और बुढ़ापा गुजारा था वो सबके सब विभाजन के अभिशाप का शिकार बने पर अहमदियों की आँखों में आंसू का एक कतरा भी न आया.

अपनी शांति और सहिष्णुता की पताका उन्होंने बिस्तर के नीचे मोड़ कर रख ली. पाकिस्तान का स्वप्न अहमदियों के कारण साकार हुआ था इसलिये जमात-अहमदिया के इन्ही एहसानों के कारण जिन्ना ने पाकिस्तान बनने के बाद अहमदियों को बड़े-बड़े पदों पर बिठाया.

पाकिस्तान में जो हिन्दू-सिख बचे रह गये थे उन पर वहां फिर से जुल्म शुरू हुआ तो पाकिस्तान सरकार में बड़े-बड़े ओहदों पर बैठे अहमदियों ने जो शांति का झंडाबदार बनते थे फिर मौन साध लिया. पूरे पाकिस्तान में हिन्दू-सिख काटे जाते रहे, हिन्दू लड़कियां धर्मांतरण का जुल्म सहतीं रहीं पर ये सब अहमदी मौन रहे.

प्रकृति कई बार बड़े सलीके से अपना काम कर देती है, यही हुआ. कुछ ही साल बाद पाकिस्तान में मुसलमानों के अंदर से ही एंटी-अहमदिया आन्दोलन उठ खड़ा हुआ और इस्लाम के तमाम फिरकों को मानने वालों ने मिलकर खुद को “ट्रू-इस्लाम” वाला बताने वाले अहमदियों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया.

पुरुषों की हत्या, महिलाओं के साथ बलात्कार, घर-दुकान लूट लिये जाने का अभिशाप अब अहमदियों के उपर भी आ गया. हिन्दू-सिखों के ऊपर हो रहे जुल्मों पर अहमदिया चुप थे तो अब अहमदियों के ऊपर हो रहे जुल्मों पर शियाओं ने मौन साध लिया.

प्रकृति ने फिर अपना काम किया. अब वहां शिया निशाने पर थे. ‘शिया गैर-मुस्लिम हैं और उनको जिंदा रहने का हक़ नहीं’ इस फतवे पर अमल हो इसके लिये लश्करे-झांगवी जैसे कई आतंकी संगठन वजूद में आ गये और शियाओं पर वहां जुल्मों की इंतेहा कर दी गई.

पर अफ़सोस इस बार सूफी और बरेलवी चुप थे. इसलिये प्रकृति ने इनको भी अब कुर्बानगाह में खड़ा किया हुआ है. और ये सिलसिला आगे भी थमने वाला नहीं है.

नीम का पेड़ बो कर कोई आम खाने की कामना नहीं कर सकता और किसी के दुर्भाग्य पर आपका मौन आपको भी सौभाग्यशाली नहीं रहने देता, ये बात मैंने तीन साल पहले ही अपनी एक पोस्ट में कही थी, आज सौभाग्य से यही आवाज़ पाकिस्तान से भी उठ रही है.

कुछ लोग खड़े हो रहें हैं वहां जिन्हें ये एहसास हो रहा है कि मजहब कभी एकता का आधार नहीं हो सकता और दूसरों के ऊपर हो रहे जुल्मों पर आनंद लेने की प्रवृति खुद को भी उन्हीं जुल्मों का शिकार बनाकर छोड़ती है.

कुछ नेट डाटा खर्च होगा पर इस लिंक पर जाकर पाकिस्तानी युवक की यह वीडियो जरूर देखिये. उस नरक से आ रही ऐसी आवाजें दुर्लभ तो है पर कुछ सुकून जरूर देती है.

लिंक है –
https://www.facebook.com/RoshniPakistan4/videos/761289083962711/

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