इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के बीस पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल जब जनरल सेक्रेटरी परमानंद पांडेय और उपाध्यक्ष हेमंत तिवारी के नेतृत्व में कोलंबो के भंडारनायके मेमोरियल हाल में पहुंचा तो वहां भारतीय प्रतिनिधिमंडल का जिस पारंपरिक ढंग से सब को पान दे कर नृत्य और संगीत के साथ स्वागत किया गया वह बहुत ही आत्मीय और भावभीना था. मन हर लेने वाला.
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेन ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया. भारतीय पत्रकारों के प्रतिनिधिमंडल का भी उन्हों ने स्वागत किया और भारतीय पत्रकारों ने उन का अभिनंदन. इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट के महासचिव परमानंद पांडेय ने अपने भाषण में श्रीलंका प्रेस एसोशिएशन को उस की वर्षगांठ पर भावभीनी बधाई दी और राष्ट्रपति का भारत की तरफ से अभिनंदन किया. इस मौके पर श्रीलंका के कई बुजुर्ग पत्रकारों को सम्मानित भी किया गया.
कार्यक्रम में श्रीलंका के कई सारे राजनीतिज्ञ, मंत्री, मुख्य मंत्री और नेता प्रतिपक्ष भी उपस्थित थे. किसी भी राजनीतिज्ञ के साथ कोई फौज फाटा नहीं. कोई दिखावा नहीं. सब के साथ सारे राजनीतिज्ञ साधारण जन की तरह मिल रहे थे. सिर्फ़ एक राष्ट्रपति के साथ थोड़ा सा प्रोटोकाल और गिनती के चार-छह सुरक्षाकर्मी दिखे. बाक़ी किसी के साथ नहीं. रास्ते में भी कहीं कोई रोक-टोक नहीं हुई. कि राष्ट्रपति आ रहे हैं. कहीं कोई पेनिक नहीं. सारी जनता आसानी से आ जा रही थी. हमारे लिए यह आश्चर्य का विषय था.
आश्चर्य का विषय यह भी था हमारे लिए कि मय राष्ट्रपति के किसी भी को मंच पर नहीं बिठाया गया. मंच पर न कोई कुर्सी, न कोई मेज. बस माइक और उदघोषक. बारी-बारी लोग बुलाए जाते रहे और अपनी-अपनी बात कह कर मंच से उतर कर अपनी-अपनी जगह बैठ जाते रहे. न कोई वी आई पी, न कोई ख़ुदा. सभी के साथ एक जैसा सुलूक. राष्ट्रपति हों या नेता प्रतिपक्ष, कोई मुख्य मंत्री या मंत्री. या कोई पत्रकार. सब के लिए एक सुलूक.
बाद के दिनों में भी, श्रीलंका के बाक़ी शहरों में भी सरकारी और ग़ैर सरकारी कार्यक्रमों में भी यही परंपरा तारी थी कि स्टेज हर किसी आम और ख़ास का था. किसी खुदाई के लिए नहीं. श्रीलंका में प्रोटोकाल की सरलता का अंदाज़ा आप इस एक बात से भी लगा सकते हैं कि जिस भंडारनायके मेमोरियल हाल में श्रीलंका प्रेस एसोशिएशन की इकसठवीं वर्षगांठ का समारोह मनाया गया और राष्ट्रपति की गरिमामयी उपस्थिति थी उसी भंडारनायके मेमोरियल हाल में उसी समय किसी कालेज या विश्वविद्यालय का भी कार्यक्रम था. और साथ-साथ.
हम लोग जब भंडारनायके मेमोरियल हाल से विदा ले रहे थे, तब बच्चे जैसे अपनी डिग्री का जश्न मना रहे थे. श्रीलंका के राष्ट्रपति का उदबोधन भी सरल था. वह भारत के राजनीतिज्ञों की तरह किसी खुदाई में डूब कर नहीं बोल रहे थे. उन के बोलने और मिलने में सदाशयता और विनम्रता दोनों ही दिख रही थी. पत्रकारों को भौतिक चीजों के पीछे बहुत ज़्यादा न भागने की उन की सलाह थी. समाज कल्याण और अध्यात्म पर ज़ोर ज़्यादा था. वैसे भी राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेन एक समय खुद पत्रकार रहे थे.

कार्यक्रम के बाद शाम को ही सबरगमुवा प्रांत की राजधानी रतनपुर के लिए हम लोग रवाना हो गए. रास्ते भर जगमगाती सड़कें बता रही थीं कि यहां बिजली की स्थिति क्या है. गड्ढामुक्त सड़कें बता रही थीं कि वहां भ्रष्टाचार की स्थिति क्या है. लगभग ढाई-तीन सौ किलोमीटर का रास्ता किसी सुहाने सफ़र की तरह कटा. हिंदी फ़िल्मी गाने सुनते हुए. कोलंबो से रतनपुर तक न आबादी ख़त्म हुई न रौशनी. न सड़क पर कहीं कोई गड्ढा, न हचका, न ट्रैफिक जाम. अविसावेल, बलांगुड़ और वेलीहललायर जैसे शहर-दर-शहर हम ऐसे पार करते गए गोया हम सड़क से नहीं नदी से गुज़र रहे हों.

भारतीय पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल आई एफ डब्लू जे के बैनर के साथ.
रतनपुर में रत्नालोक होटल में हम सभी ठहरे. सुबह दस बजे सबरगमुवा प्रांत के मुख्य मंत्री महिपाल हेरा से मिलने का कार्यक्रम था. सबरगमुवा प्रांत के सचिवालय में भी पान भेंट कर संगीतमय स्वागत किया गया. मुख्य मंत्री ने भारतीय पत्रकारों का औपचारिक भी स्वागत किया. कुछ रत्न भेंट किए. स्कूली बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए. बाद में सबरगमुवा प्रांत के मुख्य मंत्री अपने कार्यालय में भी भारतीय पत्रकारों से मिले. जहां जनता भी अपने काम के लिए बैठी हुई थी. जल्दी ही हम लोग वहां से विदा हुए.