आज से ठीक पांच साल पहले क्रिसमस के दिन अपने शहर के एक गिरिजाघर में मेरा वहां के फादर और उस चर्च के दूसरे अधिकारियों के साथ संवाद हुआ था. चर्च में घूमने आये लोगों को वो फ्री में न्यू-टेस्टामेंट बाँट रहे थे और ईसाईयत की ओर बुला रहे थे.
मैंने उनसे पूछा कि ये ईसाईयत प्रचार आप किसके आदेश से कर रहें हैं? क्या ईसा ने आपको इसकी अनुमति दी है. वो कहने लगे, बिलकुल दी है. मैंने पूछा तो अपने बाईबिल से दिखा दीजिये कि कहाँ आपको ये आदेश दिया गया है. वो कहने लगे, है, बिलकुल आदेश है, आपको जो हमने नया नियम दिया है उसे घर ले जाकर पढ़िए, उसमें सब लिखा है.
मैंने कहा, आप नहीं बताते तो मैं बता देता हूँ. आप अपने न्यू-टेस्टामेंट से गोस्पेल ऑफ़ मैथ्यू अगर पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि जीसस अपने बारह शिष्यों को जब प्रचार के लिये भेज रहे होते हैं तो उनसे कहते हैं कि तुम अन्य जातियों की ओर न जाना बल्कि सिर्फ इजरायल के अंदर ही प्रचार करना.
इजरायल की सीमा के अंदर ही प्रचार का ये आदेश प्रलय काल तक के लिये था. जीसस ने ये भी कहा था कि मैं सिर्फ इजरायल के घरानों की खोई हुई भेड़ों की तलाश में निकला हूँ.
एक सत्य ये भी है कि ईसा सिर्फ अपने यहूदी जाति को ही श्रेष्ठ समझते थे. इसका प्रमाण भी आपकी इसी किताब में हैं. एक बार जब एक कनानी महिला उनके पास अपने बेटी का दुष्टात्मा निकलवाने की विनती लेकर आई तो मसीह ने उसे ये कहते हुए झिड़क दिया कि कुत्तों के आगे मैं रोटी नहीं डालता.
ईसा एक यहूदी पैदा हुए और यहूदी रूप में ही उनका निधन हुआ. उनके जन्म से लेकर दफन तक के सारे संस्कार यहूदी रीति से संपन्न हुए. उनका संदेश, दर्शन और आदेश केवल और केवल यहूदियों लिये था तो आपने क्यों और कैसे उन के शिक्षाओं की अवमानना शुरू कर दी?
जब ईसा ने अपने चेलों को इजरायल की सीमा से बाहर जाने के लिये नहीं कहा था तो आप भारत और दुनिया भर में कैसे चर्च खड़े करने लग गये?
उनके आदेश की अवहेलना के साथ-साथ आप इस बात के लिये भी ईसा के अपराधी हैं क्योंकि आपने दुनिया भर में अपने साम्राज्य विस्तार के लिये सूलीकरण, पुनर्जीवन, सदेह स्वर्गारोहण और उनके ब्रह्मचर्य का झूठ फैला रखा है.
इसलिये आपको ये याद कराना जरूरी है कि ईसा ने कहा था, “और मैं तुमसे कहता हूँ कि जो-जो व्यर्थ बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन वो हरेक बात का लेखा देंगे. क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों के कारण ही दोषी ठहराया जायेगा”.
दुनिया को सबसे अधिक नुकसान आपके विस्तारवाद ने पहुँचाया है. आपने कई सभ्यताओं और संस्कृतियों को निगल लिया. पूतना की तरह आप पहले सेवा, दया और सहायता का ढोंग करते हैं और फिर उसकी कीमत किसी का मत बदल कर वसूलते हैं.
ईश्वर ने जिसे जिस मत-मजहब में पैदा किया उसकी किसी मजबूरी का फायदा उठाकर उसे उससे छीन लेने से बड़ा न तो कोई अपराध है, न ही उससे बड़ी कोई हिंसा है.
चर्च के सामने आज ये प्रश्न खड़ा हुआ है कि गोस्पेल ऑफ़ मैथ्यू में प्रभु ईसा ने जब ये कहा था कि : –
‘मेरे पिता से आशीष पाने वालों, आओ, उस राज के वारिस बन जाओ जो दुनिया की शुरूआत से तुम्हारे लिए तैयार किया गया है. इसलिए कि मैं भूखा था और तुमने मुझे खाने को दिया. मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया. मैं अजनबी था और तुमने मेरी मेहमाननवाज़ी की. मैं नंगा था, और तुमने मुझे कपड़े पहनाए. मैं बीमार पड़ा और तुमने मेरी देखभाल की. मैं जेल में था और तुम मुझसे मिलने आए।’
तब नेक जन उसे इन शब्दों में जवाब देंगे, ‘प्रभु, हमने कब तुझे भूखा देखा और खिलाया, या प्यासा देखा और तुझे पानी पिलाया? हमने कब तुझे एक अजनबी देखा और तेरी मेहमाननवाज़ी की, या नंगा देखकर तुझे कपड़े पहनाए? हमने कब तुझे बीमार या जेल में देखा और तुझसे मिलने आए?’
तब जवाब में राजा उनसे कहेगा, ‘मैं तुमसे सच कहता हूँ कि जितना भी तुमने मेरे इन छोटे-से-छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे साथ किया.’
तो क्या ये कहने के साथ ये भी कहा था कि ये सब तुम तभी करना जब वो ईसाई बनने को तैयार हो जाये? अपनी परम्पराओं को लात मार आये? अपने बाप-दादों को मूर्ख और जाहिल मानने लगे? अपने पूर्वजों से खुद को काट ले?
और अगर प्रभु ईसा ने ये नहीं कहा था तो फिर क्या चर्च को आत्ममंथन की आवश्यकता नहीं है? ईसा के आदेश से अलग जाकर दुनिया भर में ईसाईयत के विस्तार का पाप और उनके बारे में झूठ फैलाने का पाप क्या उन्हें ईसा का अवज्ञाकारी नहीं बनाता?
ईसा की करुणा तो उस स्त्री के लिये भी थी समाज जिसे वेश्या कहकर पत्थरवाह करना चाहता था, आपके चर्च ने तो अपने साम्राज्य विस्तार के लिये ननों को लगभग वही बना दिया.
इन प्रश्नों पर चर्च आत्ममंथन करे, क्रिसमस के इस अवसर पर उनके लिये और मानव जाति के लिये इससे बड़ी सद्कामना और क्या होगी. खैर…. मैरी क्रिसमस….