मुम्बई: अटल जी वैश्विक शख्शियत हैं. उनके बारे में बहुत कुछ कहा व लिखा जा चुका है और उनके बारे में बहुत सी बाते आम चर्चा की विषय भी बन चुकी हैं. फिर चाहे उनका कवि व्यक्तित्व हो, या अच्छे वक्ता का रूप या फिर हिन्दी प्रेमी व उच्च कोटि के राजनेता का सब एक से बढ़कर एक.
पर मैं एक दूसरे तरीके से अटल जी को याद करना चाहता हूँ. उनकी जन्म भूमि को लेकर. हमारी संस्कृति में संस्कृत भाषा में एक पद्य है, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसीअर्थात् जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं. इसीलिए मैं आज अटल जी की जन्मभूमि से कुछ बातें कहना चाहूँगा.
25 दिसंबर को हमारे देश की महान विभूति अटल बिहारी वाजपेयी जी की वर्षगांठ है. वे उस पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं जो 2 सांसदों की पार्टी से यात्रा प्रारम्भ करके आज एक लम्बे अर्से बाद इस देश में एक पूर्ण बहुमत की स्थाई सरकार बनाई है.
आज देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र जी हैं. इनका उत्थान अटल जी के ही समय में हुआ. एक तरह से वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी अटल जी के ही शिष्य हैं. और विकासोन्मुखी सोच रखते हैं. इसके लिए वे चर्चा में भी रहते हैं और इसी विषय को चुनाव में मुद्दा बनाकर वे सत्ता में आये भी हैं.
देश में विकास की एक नई उम्मीद जगी है. ऐसे में दशकों से उपेक्षित पड़े शांति काशी व सभी तीर्थो का भांजा के नाम से विख्यात महान तीर्थ भगवान शिव का स्थान और श्री अटल बिहारी वाजपेई का जन्म स्थान बटेश्वर का विकास भी होना चाहिए.
नरेन्द्र मोदी को अपने गुरु के जन्मस्थान [दक्षिणेश्वर] बटेश्वर के विकास का शंखनाद उनके जन्म दिन से करना चाहिए. नरेन्द्र मोदी के लिए ये एक स्वर्णिम अवसर है. वे मोक्ष काशी [बनारस ] के प्रतिनिधि हैं और अटल जी शांति काशी के. बिना शांति के मोक्ष संभव नहीं है. यह नरेन्द्र मोदी जी को समझना होगा.
गत 12 दिसंबर को मैं बटेश्वर गया था. वहां की दुर्दशा अकथनीय है. फिर भी मैं अपनी अल्प समझ से कुछ शब्दों के माध्यम से कहना चाहूँगा. 25 दिसंबर 1924 को ब्रम्ह्मुहूर्त में बटेश्वर के जिस घर में अटल जी का जन्म हुआ था आज वह स्थान जंगल का रूप ले चुका चुका है. आस -पास कटीले बबूल हैं. अटल जी व उनका परिवार जिस मोहल्ले में रहता था उसे वाजपेई मोहल्ला कहते थे. उस मोहल्ले में प्रवेश के लिए एक जमाने में एक शानदार प्रवेशद्वार [गेट ] हुआ करता था, आज वहां कूड़ा – कचरा है.
अटल जी के पूर्वज कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे. बटेश्वर आकर उन्होंने वाजपेय यज्ञ कराया. जिससे उनका उपनाम वाजपेयी पड़ गया और वे यहीं बस गये. वाजपेई मोहल्ला बेहद समृद्ध और कुलीन था. अगल – बगल के शानदार महलनुमा मकानों के अवशेषों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है.
यहीं अटल जी के पैत्रिक घर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर बनियों का बेहद समृद्ध मोहल्ला था जो व्यापार और समृद्धि के लिए पूरे भदौरिया स्टेट में प्रसिद्ध था. आज उसके वैभव की कहानी उसके आलीशान अवशेष खंडहर कह रहें हैं. उसी खानदान के एक सज्जन आज बटेश्वर नाथ महादेव तीर्थ के पास पार्किंग स्टैंड में टिकट काटतें हैं.
ये पूरा क्षेत्र भदौरिया स्टेट की शान था यहाँ के राजा भदावर सिंह भदौरिया थे. बटेश्वर में उनके अस्तबल का भव्य भग्नावशेष आज भी बरबस आकर्षित करता है. अटल जी के मित्र के छोटे भाई एवं सेवा निवृत अध्यापक डूरी लाल गोस्वामी जी हमें उस स्थान पर ले गये जहाँ अटल जी अपने बचपन व युवावस्था में नहाया करते थे.
ये स्थान है प्रसिद्ध गोपालेश्वर महादेव मंदिर का घाट, जहाँ अब घाट जैसा कुछ नहीं है. यह मंदिर भी यमुना जी के तट पर स्थित श्वेत रंग के 108 मंदिरों में से एक है. आस्था, पर्यटन और विरासत का प्राचीन केंद्र बटेश्वर आज बदहाल है. आज मंदिरों के मरम्मत की आवश्यकता है. वे पश्चिम की तरफ से टूट रहे हैं. वरना वे भी एक दिन अवशेष कहे जायेंगे.
मैं बटेश्वर महादेव के दर्शनकर यमुना जी के दर्शनार्थ उनके समीप गया तो देखा यमुना जी का पानी काला हो गया है. आप की हिम्मत स्नान करने की नहीं करेगी. मैंने अंजुली में पानी लिया तो ढेर सारा कचरा मेरी अंजुली में आ गया. इसी यमुना जी में अटल जी तैरा करते थे. अटल जी को तैराकी का शौक़ था.
मोदी जी ने विष्णु पत्नी गंगा जी की सफाई पर एक अलग मंत्रालय ही बना दिया है. फिर यमुना जी भी तो विष्णुप्रिया हैं. उनकी उपेक्षा क्यों? किंवदन्ती के अनुसार यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण के पितामह राजा शूरसेन की राजधानी थी. जो यहाँ से मात्र 3 किमी है. (शौरि कृष्ण का भी नाम है).
जरासंध ने जब मथुरा पर आक्रमण किया तो यह स्थान भी नष्ट-भ्रष्ट हो गया था. बटेश्वर-महात्म्य के अनुसार महाभारत युद्ध के समय बलभद्र विरक्त होकर इस स्थान पर तीर्थ यात्रा के लिए आए थे. यह भी लोकश्रुति है कि कंस का मृत शरीर बहते हुए बटेश्वर में आकर कंस किनारा नामक स्थान पर ठहर गया था. जो पास में ही है.
बटेश्वर को ब्रजभाषा का मूल उदगम और केन्द्र भी माना जाता है. जैनों के 22वें तीर्थकर स्वामी नेमिनाथ का जन्म स्थल शौरिपुर ही माना जाता है. जैनमुनि गर्भकल्याणक तथा जन्म-कल्याणक का इसी स्थान पर निर्वाण हुआ था, ऐसी जैन परम्परा भी यहाँ प्रचलित है. वास्तव में यहाँ पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं.
बटेश्वर घाट की अर्धचन्द्राकार 108 मंदिरों वाली लम्बी श्रेणी अविच्छिन्नरूप से दूर तक चली गई है. उनमें बनारस की भाँति बीच-बीच में रिक्तता नहीं दिखलाई पड़ती. बातचीत में पता चला कि भदोरिया वंश के पतन के पश्चात बटेश्वर में 17वीं शती में मराठों का आधिपत्य स्थापित हुआ.
इस काल में संस्कृत विद्या का यहाँ पर अधिक प्रचलन था. जिसके कारण बटेश्वर को छोटी काशी भी कहा जाता है. पानीपत के तृतीय युद्ध (1761 ई.) के पश्चात्त वीरगति पाने वाले मराठों को नारूशंकर नामक सरदार ने इसी स्थान पर श्रद्धांजलि दी थी और उनकी स्मृति में एक विशाल मन्दिर व 108 दीपों का स्तम्भ भी बनवाया जो बेहद प्रसिद्ध है. सरकार चाहे तो बटेश्वर पर्यटन का केंद्र बन सकता है.
स्थानीय निवासी सेवा निवृत्त अध्यापक डूरी लाल गोस्वामी जी ने बातचीत में बताया कि बीते जमाने में बटेश्वर की एक अलग ही आभा थी. पर सरकार व प्रशासन की अनदेखी की वज़ह से आज बटेश्वर की ये दुर्दशा है.
श्री बटेश्वर नाथ मेला पूरे देश में प्रसिद्ध था. पुष्कर के समान, यहाँ का मेला उच्च कोटि के ऊँटों के लिए विख्यात था, साथ ही यहाँ अच्छी नस्ल के घोड़े भी मिलते थे. पिछले वर्ष मेले में हंसिनी नाम की एक घोड़ी डेढ़ करोड़ में बिकी. जिसकी मीडिया में भी बड़ी चर्चा रही. यह घोड़ी आगरा पंचायत के अध्यक्ष गणेश यादव की थी.
कार्तिक शुक्ल पक्ष दूज से एक महीने चलने वाले इस मेले में चौदस के दिन विराट कवि सम्मलेन होता था. जिसमें अटल जी अपनी ओज पूर्ण कविताओं से समां बांध देते थे. अटल जी जब भी बटेश्वर आते धोती- कुर्ता पहने पैर में चप्पल तथा कन्धे पर झोला लटकाए आते. ये उनकी पहचान थी. सबसे सहजता से मिलते. उन्हें खिचड़ी बहुत पसंद थी. कभी – कभी भांग भी लेते थे. दिल के सच्चे, मिलनसार.
अटल जी की सोच बहुत बड़ी थी. जब वे प्रधानमंत्री बने तो बटेश्वर से हम मिलने गये. हमें उम्मीद थी कि अब बटेश्वर का विकास होगा. हमने उनसे बटेश्वर के लिए विकास के लिए कुछ करने का अनुरोध किया. अटल जी का जवाब था – बटेश्वर का ही क्यों? बाकी जगहों का भी विकास होना चाहिए मैं पूरे देश का प्रधानमंत्री हूँ. मेरे लिए सबका विकास ध्येय है. मेरे लिए सब बटेश्वर जितने ही महत्वपूर्ण हैं. मैं पक्षपात नहीं कर सकता. मेरी आत्मा मुझे इसकी इजाजत नहीं देती.
विकास का काम क्षेत्र के सांसद, विधायक व स्थानीय निकाय का है राज्य के मुख्यमंत्री को सोचना चाहिए ..हाँ वे मेरे पास कोई विकास की योजना लायें तो मैं अवश्य सहायता करूंगा. ऐसे निराले व बड़ी सोच वाले नेता थे अटल जी.
आज भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है. बटेश्वर वासियों को मोदी जी से बड़ी उम्मीदें हैं. अटल जी के जन्म स्थान बटेश्वर का समुचित विकास ही अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी. उनके जन्म दिन पर मोदी जी को बटेश्वर आना चाहिए. यही बटेश्वर के लोग चाहते हैं यहीं पास में मुख्यमंत्री अखिलेश ने विश्वस्तर सफारी बनवाया है. पिछले मेले में हेलीकॉप्टर से आये और उड़ गये.
यहाँ एक बालिका इंटर कालेज की महती आवश्यकता है. अटल जी की बहन ने अस्पताल के लिए अपनी जमीन दान कर दी. अस्पताल बना भी पर न तो चिकित्सक हैं नही दवाएं. खाली ईमारत से क्या होगा. बातें ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी, दोपहर से शाम हो गयी थी. थोड़ी -थोड़ी ठण्ड पड़ने लगी थी.
बटेश्वर पुनः आने का वादा कर हम गोस्वामी जी से विदा लिए और आगरा की तरफ चल पड़े. वास्तव में बटेश्वर का विकास ही अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.
लेखक – पवन तिवारी
(अटल जी की जन्मभूमि बटेश्वर से लौटकर आखों देखी वर्तमान स्थिति की विशेष रिपोर्टिंग)