The Mask Man : सर्वहारा वर्ग में आसानी से घुल जाने वाला

उसने घर से निकलने से पहले नाश्ता किया. बीवी को दिन की विदा का चुम्बन दिया और ऑफिस निकलने को हुआ.

‘तुम कुछ भूल रहे हो प्रिय.’ नेपथ्य से आवाज़ आई.

‘क्या भूला?’ उसने अपने पॉकेट्स चेक किए. सारी ज़रूरी चीज़ें दुरुस्त थीं. पेन, वॉलेट, पॉकेट डायरी सब कुछ तो था साथ में. उसने पत्नी की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली.

‘अरे तुम भी न बहुत बुद्धू हो… ये मास्क तो ले लो.’

‘ओह! चूक हुई थी आज. अच्छा चलो अब चलता हूँ.’

उसने मास्क उठा कर चेहरे पर लगा लिया. शीशे में अपनी शक्ल देखी. अब वो खूबसूरत और भला आदमी दीखता था. भद्र और सुशील.

दिन भर वह ऑफिस में उसी मास्क का इस्तेमाल करता था. प्रसन्न चित्त और संतुष्ट से भाव उसके चेहरे पर रहा करते थे. उसके चेहरे की मुस्कराहट से लोग भी संतुष्ट रहते हालांकि यह कोई नहीं जानता था कि यह मुस्कराहट उसकी नहीं असल में एक मास्क की है.

ऑफिस से घर लौटने के बाद वह दूसरा मास्क धारण करता था. इस मास्क की खूबी यह थी कि इसे पहनने वाला सर्वहारा वर्ग में आसानी से घुल जाता था. यह ‘Guy Fawkes’ मास्क था. इसे पहन वह सत्ता, सरकार इत्यादि को गरीबों, मजलूमों के विरुद्ध कहा करता था.

शाम होते-होते वह थक कर निढाल हो जाता.

गुसलखाने से वापस आते हुए वह अपने सारे मास्क उतार चुका होता था. नैतिक, खूबसूरत, हँसमुख, विद्रोही सारे के सारे मास्क्स.

पत्नी से प्रेम के अंतरंग क्षणों में वह असली होता. पत्नी पूछती…

‘प्रिय! अब तुम वृद्ध हो गए हो…सारी शक्ति क्षीण हो चुकी है तुम्हारी परंतु फिर भी तुम इन मास्क्स के सहारे ये छल क्यों करते हो?’

वो एक शक्तिवर्धक दवा तपाक से लील लेता और नसों में रक्त के बढ़े वेग से कामातुर होता बोलता,

‘भ्रम ही सर्वशक्तिशाली है प्रिये! जिसने जितना भ्रम उत्पन्न किया वह उतना ही बड़ा बना…खुद ईश्वर को देखो! उसके द्वारा उत्पन्न किया भ्रम सबसे बड़ा है इसलिए लोग उससे डरते हैं…’

‘ओह! तो तुम्हें ईश्वर बनना है?’

‘नहीं! मुझे बस इस भ्रम की सहायता से खुद को मज़बूत करना है प्रिये! मज़बूत होना लाभदायक है और यही लाभ मुझे चाहिए…’

फिर वातावरण में हास-परिहास के स्वर घुल-मिल जाते.

एक दिन वह मर गया.

पत्नी उसकी मृत देह से लिपट कर रोने को हुई. उसने चाहा कि वह उसे एक आखिरी चुम्बन ले सके.

उसके मुँह के समीप पहुँचते ही उसे जान पड़ा कि उस मृत व्यक्ति का वह चेहरा जिसे वह इतने वर्षों तक वास्तविक समझती रही वह भी वास्तव में एक मास्क ही है.

प्रबल उत्कंठा में वह उस मास्क को निकाल बैठी.

नीचे का चेहरा भी एक मास्क था जो उसके भाई की शक्ल का था…..वह चकित हुई.

उसे हटाते ही नीचे का मास्क उसके पिता की शक्ल का था….

फिर उसे हटाने पर उसे उन साधु बाबा की शक्ल दिखी जो टीवी पर अच्छे-अच्छे प्रवचन देते थे.

उस स्तर के नीचे उसे तक़रीर देने वाले मौलवी जी दीख पड़े.

उनके नीचे के मास्क का चेहरा उसके यूनिवर्सिटी टीचर से काफी मिलता-जुलता था…

कहते हैं, वह आज तक उस मृत देह के चेहरे से मास्क हटा रही है लेकिन फिर भी सारे मास्क्स हट नहीं पाए.

उधर सर्वहारा वर्ग की सभा में गाय फॉक्स सी शख्सियत अभी भी विद्यमान है.

ऑफिस में वो मुस्कुराता आदमी अभी भी विद्यमान है.

– उजबक देहाती विकामी

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