शिवाजी महाराज को राजघराना छोड़ पढ़ाई करने के लिए समर्थ गुरु राम दास जी के गुरुकुल भेज दिया गया था.
वहां, वे कठिन से कठिन व्यवहारिक परीक्षाओं में पास होते गए. शिक्षा पूर्ण होने पर माँ जीजाबाई उन्हें गुरुकुल से लाने गईं.
शिवा, आशीर्वाद लेने गुरु जी की कुटिया मे पहुंचे.
गुरुजी ने शिवा से कहा – ‘मेरे पेट में दर्द है और तुम जा रहे हो राजघराने.’
‘आदेश करें गुरुवर’, शिवा, गुरु जी के चरणों के समीप बैठते हुए बोले.
‘जाओ.. सभी शिष्यों को यहां एकत्रित करो.’
शिवा सभी को बुला लाए… पेट दर्द की सूचना पाकर सभी आश्चर्य मे थे.
‘आपके पेट दर्द की कोई दवा हो गुरु जी, तो आदेश कीजिये’, सभी शिष्य बारी-बारी कहने लगे.
गुरु जी ने सभी शिष्यों से कहा- ‘एक ही दवा है जिससे मुझे उदर पीड़ा से छुटकारा मिल सकता है. लेकिन उसे लाना जीवन का सबसे कठिन काज है.’
‘वो क्या, गुरुदेव?’ सभी शिष्य एक स्वर मे बोले.
‘शेरनी का दूध….’
ऐसा दुर्लभ काम सुन कर सभी ने गर्दन झुका ली…
तभी शिवा आगे बढ़ कर बोले.. ‘गुरुदेव मैं लाऊंगा शेरनी का दूध.’
और उसी पल शिवाजी गहरे जंगल में निकल गए. शेरों के झुण्ड के बीच एक शेरनी अपने बच्चों को दूध पिला रही थी.
शिवा आगे बढ़े… लेकिन तभी एक शेर ने हमला कर दिया…
शिवा ने शेर का जबड़ा अपने मजबूत हाथों से पकड़ लिया.
बहुत देर तक, जब शेर उनका कुछ ना बिगाड़ पाया तो उसने शिवा को छोड़ने में ही भलाई समझी.
शिवा… शेरनी की तरफ बढे… शेरनी शांत थी… शायद शिवा का रौद्र रूप देख कर उसने विरोध करने की चेष्टा ना की.
शिवा ने शेरनी का दूध निकाला और लौट चले… आश्रम की ओर…
दूध का पात्र लेकर जब आश्रम पहुंचे तो समर्थ गुरु आश्रम के द्वार पर ही खड़े थे.
शिवा बोले… ‘लीजिये गुरुवर, मैं शेरनी का दूध ले आया… ये आप पी लीजिये.’
समर्थ गुरु बोले… ‘शिबू… मुझे कोई उदर पीड़ा नहीं है. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था. मै वहीं था जंगल में… एक वृक्ष की ओट से देख रहा था तुम्हे! मैं देखना चाहता था कि तुम कितने निडर हो.. लेकिन मै गर्व से कह सकता हूं कि वर्तमान में इस पृथ्वी पर तुमसे ज्यादा निडर कोई नहीं. साहस और निडरता की अंतिम परीक्षा में भी तुम उत्तीर्ण हुए. मराठा साम्राज्य तुम्हारे मजबूत हाथों मे सुरक्षित है.’
कल जब मोदी जी, जब शिवाजी महाराज की प्रतिमा का जलपूजन करने पहुंचे तो मुझे ये कथा याद आ गई… शायद तीसरी या चौथी कक्षा में पढ़ी थी.