हाथी साइकिल पर चढ़ जाए और हाथी पर बैठें राहुल, तो ही रुकेगी भाजपा

मैं जब भी उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव का विश्लेषण करता हूँ तो कहता हूँ भारतीय जनता पार्टी क्लीन स्वीप करेगी. यदि कोई महागठबंधन न हुआ… ऐसा ठगबंधन जिसमें हाथी साइकिल पर चढ़ जाए और उस हाथी पर राहुल बाबा बैठे हों… यदि ऐसा हो तभी भाजपा रुकेगी वरना यूपी में माया मुलायम का सूपड़ा साफ़ है.

मेरे मित्र पूछते हैं कि मेरे इस आशावाद का कारण क्या है? दो कारण हैं – पहला जातीय समीकरण… यूपी में कोई व्यक्ति किसी पार्टी को वोट नहीं देता.

जातियों के समूह किसी पार्टी को वोट करते हैं. व्यक्तिगत वोट मायने नहीं रखता. वो नगण्य होता है. चुनाव से पहले ये पता चल जाता है कि कौन सी जाति किस क्षेत्र में किसे वोट कर रही है.

2017 की विशेषता ये है कि भाजपा ने ये जातीय समीकरण साध लिए है. सवर्ण और गैर यादव ओबीसी भाजपा खेमे में आ गए हैं. इसके अलावा दलितों में भी गैर चमार जाटव दलित वोट बैंक में भाजपा ने बहुत बड़ी सेंध लगाई है.

अब बचे यादव और चमार जाटव… तो पूर्वी यूपी की ये दशा है कि 20 से 30% यादव, चमार भी भाजपा को भोट देने का मन बना चुके हैं.

भाजपा ने 2014 की तुलना में अपना जातीय जनाधार बढ़ाया है. इसके अलावा floating वोट का भी एक बहुत बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी के बाद भाजपा के पक्ष में आया है.

सवाल उठता है कि नोटबंदी से उपजी परिस्थितियाँ और उस से उत्पन्न मंदी कितना असर डालती है. वैसे यदि चंडीगढ़ के हालिया चुनावों का रुझान देखा जाए तो नोटबंदी से भाजपा को लाभ हुआ है.

पंजाब की सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया जबकि केजरीवाल ने बेहद शातिराना चाल चलते हुए चुनाव से कदम खींचकर कांग्रेस के लिए मैदान साफ़ कर दिया था जिससे कि भाजपा विरोधी वोट न बंट कर सारे कांग्रेस को मिले.

इसके बावजूद चंडीगढ़ में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया. इससे पता चलता है कि नोटबंदी से भाजपा को फायदा है, नुकसान नहीं.

अब मेरे आशावाद का दूसरा कारण है समाजवादी कुनबे की कलह.

नोटबंदी के बाद अचानक यादव कुनबे से कलह के समाचार आने बंद हो गए. पर कल अखिलेश यादव ने फिर एटा में ताल ठोक दी.

उन्होंने अपने खेमे के 70 युवा विधायकों से कहा… टिकट की चिंता मत करो… जाओ… अपने-अपने क्षेत्र में जाओ और सरकार के कामकाज का प्रचार-प्रसार करो…

ये समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और चचा शिवपाल यादव को खुली धमकी है. माना जा रहा है कि ये भतीजे की ओर से बगावत का बिगुल है.

ऐसे कयास लग रहे हैं कि अगर टिकट वितरण में अखिलेश की न चली तो सपा के कम से कम 200 बागी खड़े होंगे और जहां बागी नहीं भी होंगे वहाँ चाचा भतीजा भितरघात कर एक दूसरे के प्रत्याशियों को हरवायेंगे.

इसमें पेंच ये है कि सपा के गैर मुस्लिम वोटर की पहली स्वाभाविक गैरसपा पसंद भाजपा है, न कि बसपा. इस भितरघात से सपा वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा भाजपा में जा सकता है.

इसके अलावा नोटबंदी के बाद से देश में जो माहौल है और सरकारी एजेंसियां जैसे बेरहमी से ताबड़तोड़ छापेमार कार्यवाही कर रही हैं, उससे यादव कुनबे में खलबली है… मोदिया कब घुस आयेगा घर में क्या पता?

ऐसे में सपा समर्थक एक बहुत बड़ी पूंजीपति लॉबी तटस्थ हो गयी है. कयास तो यहाँ तक हैं कि अमित शाह का प्रेमपत्र पहुँच चुका है.

भोजपुरी में कहावत है… आन्ही आवै बइठ गंवावे…

मने जब जोर की आंधी आये तो कुछ सर सामान बटोरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए… जो उड़ता है उड़ जाने दो… कहीं किसी कोने में दुबक के पहले जान बचाओ…

जान बची रही तो फिर देखेंगे खोजेंगे…. क्या गया… क्या बचा…

यूपी में आंधी चल रही है… सब उड़ा ले जायेगी…

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