स्मृतिपटल पर अंकित कुछ कहानियां

indian comics and historical stories making india

बचपन में पढ़ी हुई कोर्स की और कोर्स के बाहर की लगभग सभी कहानियाँ-दोहे मैं स्मृतिदोष के कारण भूल गया हूँ. उनमें से अधिकांश संभव है फूलदीदी (हमारी मंझली बहन) को अपनी प्रबल स्मरणशक्ति के कारण याद हों.

मुझे एक दोहे की एक पंक्ति ” घडी देख कर घोडा बोला गाडी आई लेट है” भर याद रह गयी है. नाव पर एक परिवार के नदी पार करने की कहानी और एक कोट के सहारे कही गई कपास की कहानी भी कुछ कुछ याद हैं.

कोर्स के बाहर की कहानियों में एकाध की ही स्मृति शेष है. शायद टूलू (हमारी छोटी बहन) को याद हो. एक थी ‘किस्सा तिलस्मी राजकुमार ‘. लम्बी वाली काॅपी के आकार की, एक दम रद्दी, मोटे कागज पर छपी. कहानी अरबियन नाइट्स उर्फ ‘किस्सा हजार रातों का’ और देवकीनंदन खत्री जी के चंद्रकांता के कथासूत्रों से उधार ले कर गढी हुई लगती थी जिसमें कि एक राजकुमार अपनी सौतेली माँ और बेइमान वजीर के षडयंत्रों और तरह तरह के जिन्नों, प्रेतों और तिलस्म की भवबाधाओं को पार कर अंततः राजकुमारी को हासिल करता है.

इस रोचक कहानी के अद्भुत संसार के प्रति पैदा हुए आकर्षण का बीज ही शायद कालांतर में सुरेंद्र मोहन पाठक, जेम्स हेडली चेज, पर्ल स्टेनली गार्डनर, अगाथा क्रिस्टी, ग्राहम ग्रीन, जान ल कार, राबर्ट लडलुम और फ्रेडरिक फोरसिथ आदि के प्रति खिंचाव का वृक्ष बना हो. हातिमताई, सिन्दबाद जहाजी की गाथाएं तथा राबिन हुड, फैंटम /मैंड्रेक्स और डोनाल्ड डक / मिकी माउस के कामिक्स भी अब धुंधले तौर पर ही याद हैं.

एक दूसरी कहानी थी ‘माया मच्छेन्दरनाथ’ की. इसका अधिकांश विस्मृत हो गया. बाद में हजारी प्रसाद द्विवेदी जी की संभवतः कबीर पर लिखी पुस्तक में मच्छेन्दरनाथ और उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ के बारे में पढा था. वह भी अब भूल गया हूँ. थोडा बहुत ही स्मृति में है. अभी जाना कि किसी जमाने में एक श्वेत श्याम फिल्म भी उनकी कहानी पर बनी थी, पर देखी नहीं है.

हाल में एक गुरुद्वारे के ज्ञानी से किसी समारोह के सिलसिले में भेंट हुई. मैने मौका ताड कर थोडी धर्मचर्चा भी कर ली. मैं गुरुगोबिंद सिंह विरचित दशम ग्रंथ के बारे में कुछ सुनने को उत्सुक था. इसी क्रम में उन्होंने बताया कि दशम ग्रंथ में गुरु ने भगवान् पार्श्वनाथ और गोरखनाथ के बीच विवेक और अविवेक पर एक बडे ही रोचक वार्तालाप का वर्णण किया है.

ज्ञानी जी की सिख धर्मग्रंथों के अतिरिक्त गोरखनाथ के वृतांत पर भी कुछ गति थी. इसके अलावा शेख बाबा सरहिंदी पर भी चर्चा कर रहे थे (उनका गुरुद्वारा सरहिंद तहसील में है). उनके साथ इस संक्षिप्त सत्संग में आनंद आ गया.

माया मच्छेन्दर और उनके पट्टशिष्य गुरु गोरखनाथ, बौद्ध धर्म की महायान धारा, कामरूप-बंगाल की तंत्र साधना, हठयोग, शैव धारा और शंकर -कुमारिल भट्ट के अद्वैत के बीच संगम करने के लिए ख्यात हैं. माया मच्छेन्दर अघोरियों के और गोरखनाथ कनफटे जोगियों के आदिगुरु माने जाते हैं. हिंदु ,बौद्ध और सिख – सभी परंपराओं में मच्छेन्दरनाथ के मिथक को कहीं न कहीं मछली के रूपक से जोडा गया है. अक्सर माना जाता है कि वे असम के एक मछुआरे के घर पैदा हुए थे यानी सहनी / मल्लाह थे. उनका मिथक समस्त पूर्वी भारत और नेपाल मे अत्यंत समादृत है.

कहते हैं कि गुरु गोरखनाथ ने इस्लामी सेनानायकों द्वारा व्यापक सांस्कृतिक विध्वंस और धर्मपरिवर्तन के प्रतिकार के लिए अपने जोगियों को बाजाब्ता एक लडाकू संप्रदाय का रूप भी दिया. उनका नाम (गोरक्षनाथ) भी संभवतः गोरक्षा के लिए हिंदु समाज के समकालीन संघर्ष का द्योतक है. नेपाल के एक जिले और नेपाल की प्रमुख प्रजा को उन्हीं के नाम पर गुरखा बुलाते हैं. कबीर के धर्मदर्शन पर भी गोरखनाथ की परंपरा का प्रभाव है. कभी गोरखपुर जाकर बाबा गोरखनाथ के दरबार में हाजिरी लगाने की इच्छा है.

बाबा शेख अहमद सरहिंदी अकबर और जहाँगीर के समकालीन थे. वे नक्शबंदी सूफी सिलसिले के एक प्रसिद्ध हस्ताक्षर माने जाते हैं. उन्हें सूफी परंपरा और इस्लाम की मुख्य शरीयत को मानने वाली धारा के बीच सामंजस्य के प्रयास का श्रेय दिया जाता है. इस चक्कर में उनपर सूफी परंपरा को कट्टरवादी रूप देने के भी आरोप हैं. इतना तो तय है कि जहाँगीर द्वारा गुरु अर्जनदेव को इस्लाम स्वीकार न करने पर मरवा देने के बाद सरहिंदी ने बादशाह के इस कृत्य की प्रशंसा करते हुए उन्हें चिट्ठी लिखी थी और उन्हें अपने पिता की भूलों ( धार्मिक उदारता) के प्रायश्चित के लिए धन्यवाद भी दिया था. हाँ एक बार वे स्वयं ” बा खुदा दीवाना बासो, बा मुहम्मद होशियार ” के चक्कर में आ गए थे याने ‘हकीकत-ए-काबा-ए-रब्बानी’ को ‘ हकीकत-ए-मुहम्मद’ से उपर बताने के कारण मुस्लिम समाज के कोप का शिकार हुए थे.

अगली दफा सरहिन्द जाउँगा तो उनकी मजार रौजे शरीफ के भी दर्शन कर आउँगा. कहते हैं वह गुरुद्वारा फतेहगढ साहब के बिल्कुल करीब है. पिछली बार पटियाले से लौटते हुए सरहिंद गया था तो मैंने न तो फतेहगढ साहब के अंदर प्रवेश किया और न पटियाले में दुखनिवारण साहब के, क्योंकि कहीं न कहीं सबसे पहले सपत्नीक हरमन्दर साहब में ही मत्था टेकने की तमन्ना थी. अब वह कौल पूरा हो गया है.

वैसे सरहिंद में बाबर और शाहजहाँ का बसाया आम-खास बाग भी है, प्रख्यात वास्तुविद सैयद खाँ और उनके शिष्य के मकबरे भी ( उस्ताद और शागिर्द के मकबरे), दीवान टोडरमल की जहाजी हवेली के खंडहर भी हैं और संत मीर-ए-मीरां का मकबरा भी – जो बहलोल लोदी के दामाद और सिकंदर लोदी के बहनोई भी थे. बगल में ही उनकी पत्नी के सम्मान में बनाया गया तालाब भी है – बीबी का सर (सरोवर).

– संजय कुमार

Comments

comments

LEAVE A REPLY