क्या आपने अपने सांसदों से ऎसी सतत संपर्क और दबाव की व्यवस्था खड़ी की है?

हिंदुओं के लिए आज विकल्पहीनता की स्थिति है. ‘कोई झंडाबरदार नहीं तो फिर ठेकेदार ही सही’ वाली अवस्था है. उप्र के हिंदुओं को 2017 में भाजपा को ही वोट देना होगा, इससे मेरा मत अलग नहीं है, लेकिन यह मजबूरी सी है.

‘और किसको देंगे, है ही कौन?’ इस एक ही वाक्य को अलग-अलग सुर में उच्चारण कर के देखिये, एक में उत्साह भरा होगा, दूसरे में हताशा. एक में सीना तान के बात हो रही है, दूसरे में कंधे उचका कर.

ईमानदारी से बताइए, सीना तान के बात कर रहे हैं या कंधे उचका कर? एक तीसरा भी है जहां आप को एक आत्मसंतुष्ट दंभ से भरी मुस्कुराहट मिलेगी और आप मन ही मन में मुट्ठियाँ भींचते रह जाओगे.

फिर भी, हिंदुओं को निराश नहीं होना चाहिए. उप्र में भाजपा को जिताना अनिवार्य है क्योंकि 2019 में भी मोदी जी को दुबारा जिताना अनिवार्य है. मौजूदा विपक्ष कोई विकल्प नहीं है और फिर पर्याप्त समय भी नहीं है.

लेकिन विकल्पहीन ही न बने रहें. ठेकेदारी हमेशा शोषण को ही बढ़ावा देती है. भाजपा का पर्याय ढूँढना शायद अक्ल का काम नहीं होगा लेकिन भाजपा में ही प्रस्थापितों के पर्याय स्थापित करना व्यवहार्य हो सकता है. Occupy की बात पहले कर चुका हूँ, वही बात दोहरा रहा हूँ.

लेकिन occupy को outsource नहीं किया जाता. ‘आप बनाते रहिए प्रॉपर्टी, दस साल में सब हमारा ही होना है’ वाली बातें वल्गनाएँ (बकवास या डींग) नहीं होती. पुरानी कहावत है कि स्वर्ग देखने के लिए खुद मरना होता है.

अपने लोग होना ही काफी नहीं है, उनसे नित्य संपर्क से ही उनपर दबाव रह सकता है ताकि वे आप को दुतकारने न लगे. अगर आप कहें कि आप के पास समय नहीं है इस सब के लिए, तो इतना ही कहूँगा कि बेईमानी करने के लिए ध्यान हटना ही पर्याप्त होता है.

मुसलमान प्रतिनिधि का उसके मतदाताओं से संपर्क अनवरत रहता है, जिसके कारण उसपर दबाव भी बना रहता है. अगर किसी का ऐसा काम नहीं होता जो हो सकता था, तो वे अपनी नजदीकी मस्जिदों में बात उठाते हैं, बात आगे जाती है, प्रतिनिधि को जवाब देना होता है.

आप बताएं अपने भाजपा सांसदों के बारे में. क्या आप ने ऐसी नित्य संपर्क और दबाव की व्यवस्था खड़ी की है या आप के पास समय नहीं है?

और कभी गए तो क्या उनके पास आप के लिए समय था? आप ने भी यही बात मान ली होगी कि ये चुनाव के समय ही फिर से दर्शन देंगे.

वैसे समय का क्या है ना, कि वो जाता है तो फिर आता नहीं. और समय खत्म भी हो जाता है – सही अवसर का लाभ न उठाया तो दुबारा शायद ही मिले.

यह केवल व्यवसाय में ही लागू नहीं होता, जीवन के हर पहलू पर लागू होता है. जीवन वर्तमान में जिया जाता है, भविष्य के लिए. भूत को सुधार नहीं सकते, उससे बस सीख ले सकते हैं.

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