बहुत परेशान करता हूँ ना मैं???
वहाँ कॉलेज से लौट कर भागता हुआ आया, काम अधूरा छोड़ कर…. गया ही इस शर्त पर था कि आँधी आए या तूफान, 1 बजे घर पर होना है मुझे.
क्यों गया था??
उस काम से जिसके लिए लोग आज भी याद करते हैं इस मूर्ख को. कम्प्यूटर्स में प्रॉब्लम थी, कम्पनी के technicians ने अपनी रिपोर्ट दे दी कि ये-ये और ये खराब है और बदलना पड़ेगा.
Expert’s opinion ली तो expert ने कहा कोई ज़रुरत नहीं, ठीक हो जाएगा पर 3-4 घंटे लगेंगे.
अब कह दिया तो बात गले पड़ गई, करना भी expert को ही पड़ेगा. भागते हुए Sunday का time दिया.
जब आप “मैं जाऊँ” “मैं जाऊँ” की रट लगाए हुए थीं, उस वक़्त वो मुझे पैसे थमाने की कोशिश कर रहे थे, असफल कोशिश…
बहुत बड़े हैं वो, कॉलेज के डायरेक्टर, उम्र में…. और कुछ तो नहीं कह सका, पर सिर्फ इतना कहा कि “सर, आपका काम नहीं कर सकूँगा”.
बस क्या था ढीले पड़ गए, बोले ‘अच्छा कुछ गिफ्ट कर दूँगा’, मैंने कहा ‘जो ज़रुरत होगी कह दूँगा पर तब तक कुछ करने की ज़रुरत नहीं’.
हूँ ना मूर्ख? पर अब आप क्या कर सकती हैं, ऐसा ही हूँ.
ना तो आप से बात करने पर concentrate कर पा रहा था, ना उन पर.
ख़ैर, ये अभी यहीं थे कि दो लोग और आ गए, नगर निगम के. उन्हें कुछ काम है भोपाल से… “ठीक है हो जाएगा, बैठिए, भई चाय बनाइए, मैं दो मिनिट में आया”.
भागकर फिर से कंप्यूटर वाले रूम में, आपका जवाब पढ़ा, अपना जवाब दिया, उधर से आवाज़ आई, “ज़रा फोन पर बात कर लेते तो तसल्ली हो जाती”.
ठीक है भई करवाओ… की…. लो चाय आ गई. शरीर चाय पी रहा है और आत्मा….
लगा, नहीं… शरीर को भी वहीं ले जाना पड़ेगा, आगंतुकों को विदा करने की टोन में कहा, “…तो ठीक है फिर”,
“नहीं भैया, एक बात और थी वो commissioner साहब…..”
‘अरे मर गया वो और तू भी यहीं मर जा, मेरी तो जान छोड़’, ऐसा सिर्फ सोचा, “हाँ हाँ, एक मिनिट में आया”, फिर यहाँ.
आखिर वो गए… और आप भी…… कैसे उस बुज़ुर्ग के सामने बाय बोलता… जैसे मुझे बोलना था… जो आखिरकार बोला… कभी मैसेंजर खोलो तो मिल जाएगा..
अब फिर जाना है बीवी को लेकर घर! कल राखी है, कल भी जाएगी, कोई रस्म होती है मरने के बाद वाली, ये जाएंगी, अपने भाइयों को राखी बाँधेंगी.
कौन मर गया? मेरे ससुर….
कब? जिस रोज़ आपका पहला ख़त आया उसके अगले रोज़ यानि 19 जुलाई.
ब्लॉग में पहली पोस्ट उनके उपर ही लिखना चाहता था. उनके जीवन के आखिरी 3 घंटों पर. मेरे सामने ही दुनिया से गए, अब उस घर में कोई नहीं बचा जिससे मैं बात कर सकूँ.
हैरत होगी जान कर हम दोनों ने साथ बैठकर शराब पी, कई बार. जितनी नफरत करते थे मुझसे, उतना ही प्यार भी. राजनीति को लेकर अक्सर हम लड़ पड़ते थे. छोड़ो, कभी अगर लिखा तो पढ़ लेना.
कभी ख़याल नहीं आया कि ये आदमी करता क्या है?
एक दिन इंग्लिश पढ़ाने के बारे में बताया था, सच कहा.
एक दिन बातों बातों में बताया था, पता नहीं आपका ध्यान गया कि नहीं कि जब कभी समाचार कम पड़ जाया करते थे तो webdunia से उठा लिया करता था.
कम्प्यूटर्स के बारे में पहले भी बताया था, आज भी बताया कि कभी करता था और क्या खूब करता था.
एक काम की झलक उस ब्लॉग “क़ीमत” में मिली होगी और आज बताया नगर निगम वाला, यानि आधी-आधी रात को उठ कर घर से दौड़ लगाने वाला.
किसी को बताते मुझे अच्छा नहीं लगता पर आप “किसी” तो नहीं. ये सारे तमगे जो लटकाए घूमता रहता हूँ, सब इसी की देन है, “भैया, दादा, गुरुदेव, सर” और जिसको जो अच्छा लगे वो बोल देता है.
संपर्क ज़्यादा किसी से नहीं रखता. जान पहचान सिर्फ़ कुछ ही लोगों से है, जैसे शहर के काफ़ी सारे भिखारी, रिक्शा वाले (both manual and auto rickshaw), slums में रहने वाले, सड़कों पे घूम-घूम कर सामान बेचने वाले, कुछ कम्प्यूटर्स वाले, कुछ doctors और lawyers, थोड़े से पुलिस वाले और ज़रा से anti-social elements & politicians.
रोज़ किसी न किसी के यहाँ कुछ न कुछ लगा ही रहता है. बहुतों की दूसरी और तीसरी पीढी से मित्रता है.
‘Case genuine है और काम नहीं हो रहा है’ किस्म के ढेरों लोग आते हैं, सारे शहर में एक ही तो मूर्ख है, जो बिना पैसे के काम कर या करवा सकता है.
पहले तो पैसे बाँटता था, फिर समझ आया कि 5000 साल की गरीबी और भूख यूँ ही नहीं मिटेगी. नादान हूँ, भले ही आप न माने. सो, ये रास्ता अख़्तियार किया देश को संवारने का.
बीवी कहती है सब स्वार्थी है कोई तुम्हारे काम नहीं आएगा और मेरा कहना होता है कि, इस लोभ से तो मैं कर ही नहीं रहा.
नायिका, इतने सारे लोगों की इतनी कहानियाँ है मेरे सीने में कि अगर सुनाने बैठूँ तो मुझे नहीं लगता कि सब सुना सकूँगा.
Impress करने के लिए लिख रहा हूँ? ना, मैं क्या तुम्हें जानता नहीं??
सिर्फ़ इसलिए कि, कल को अगर कभी कोई वादा, net या personally मिलने का निभा न सकूँ तो ये सोच लेना कि कहीं किसी ज़िंदगी का सवाल आ गया होगा.
Blood group क्या है? अगर इन्दौर में किसी को ज़रुरत पड़ गई तो काम आएगा. मेरा A+ है, साल में कम से कम 2 बार तो दे ही देता हूँ.
कभी किसी से लड़ा नहीं, आज तक की ज़िंदगी में सिर्फ़ 4 लोगों को मारा है, वो भी इस तरह कि अगर लोगों ने बीच-बचाव न किया होता तो आज जेल में होता. पुलिस से 2 बार पिटा हूँ. ये पिटने और पीटने वाली बात पापा को भी नहीं मालूम.
पापा, मेरे role model है. Businessman और politicians का nexus क्या होता है, ये मुझसे बेहतर कौन बता सकता है. इसमें समाज सेवा भी शामिल हो जाए तो कहना ही क्या?
पापा एक बार मुझे भोपाल airport receive करने आए तो उस flight में एक ex-chief minister भी थे. Lounge में बाप की आँखें अपने जिगर के टुकड़े को तलाश कर रही थी और महोदय बोले, ‘नायक साहब नमस्कार’, तब पता चली मुझे अपने बाप की कुव्वत!
But a self made man, very impressive and terrifying personality. Man of resources and connections पर इकलौते बेटे के सामने लाचार. मुझे उनके दोस्तों और working style से चिढ़, उन्हें मेरे जीने के तरीके से.
दोस्तों से याद आया, मेरा कोई दोस्त नहीं इस शहर में, सिवाय एक लड़की के, जो संयोग से मेरी सबसे छोटी बहन भी होती है. ऐसे भाई-बहन आपने देखे-सुने न होंगे, न फिल्म में, न किताबों में.
ज़िंदगी ने इजाज़त दी तो मेरे इन दो किरदारों से ज़रूर मिलवाऊँगा तुम्हें- मेरे पापा और मेरी रचना. रचना नाम तो है ही और मेरी रचना का अर्थ अपनापन तो है ही, पर साथ ही इसका शाब्दिक अर्थ भी उतना ही सत्य है, she is my creation although daughter of my parents.
उसे मैंने गढ़ा है, अम्मा तो इतना चिढ़ती थी कि ये दूसरी विनय, कैसे पराये घर जा कर रह पाएगी.
तुमने बच्चों के बारे में पूछा था – “तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है जहां मिल गया” – ये इसलिए लिखा क्योंकि इस सवाल का जवाब तो रचना को भी नहीं बताया है जो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है.
कुछ ऐसे राज़ सीने में दफन किए हुए हूँ कि यदि गलती से भी मुँह से निकल गए तो न घर बचेगा न गृहस्थी और तुम तो मुझे जानती ही हो, मैं अपनी लड़ाइयाँ ख़ुद लड़ता हूँ, इसमें न समाज का कोई दखल होता है ना किसी कानूनी व्यवस्था का….
“इस माहौल ने उसे कर दिया ख़ानाबदोश
खानदानी तौर पर शख़्स बंजारा न था”
क्या नाम दूँ इसे – उनकी दुनिया??
Luv u Naayika
Vighn

सूत्रधार- दुनिया में न जाने कितने लोग रोज़ एक दूसरे के आगे अपने प्यार का इज़हार करते होंगे… इसमें कौन सी नई बात है यदि हमारे नायक ने भी अंतत: अपनी नायिका को लव यू कह दिया?
ख़ास बात है, वो ये कि अपनी पूरी ज़िंदगी में नायक ने पहली बार खुद पहल करते हुए किसी लड़की को Luv u कहा है… और हमारी नायिका ने अपने जीवन में पहली बार किसी से Luv u सुना है…. इसके पीछे जो अनकहा छोड़ रहा हूँ उसे आप खुद समझ जाइये… इसलिए ये Luv u इन दोनों ही के लिए बहुत महत्वपूर्ण है… और हम सब के लिए भी ये उतना ही महत्वपूर्ण होने जा रहा है क्योंकि इस अद्भुत प्रेम कहानी के हम गवाह बनने जा रहे हैं….
इसलिए मैं इस कहानी का सूत्रधार सभी पाठकों की तरफ से दोनों को कहता हूँ Luv u both.
(नोट : ये काल्पनिक नहीं वास्तविक प्रेम कहानी है, और ये संवाद 2008 में नायक और नायिका के बीच हुए ईमेल के आदान प्रदान से लिए गए हैं)
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