कल लंच टाइम में अपने ऑफिस में लंच करते जूनियर्स को छेड़ते हुए मैंने पूछ लिया – क्या कोई जानता है, जर्मनी में एक व्यक्ति अपने बच्चे का नाम हिटलर रखना चाहे तो रख सकता है या नहीं? क्या यह लीगल है?
सबने पूछा – क्या यह सचमुच का प्रश्न है? क्या तुम्हें इसका उत्तर पता है?
मैंने कहा – नहीं. मुझे नहीं पता. मैंने सुना है यह गैरकानूनी है. सिर्फ जिज्ञासा है… अगर कोई एक प्रामाणिक उत्तर दे सकता है तो अच्छा होगा.
सभी गूगल करने लगे. उसमें से एक का बेस्ट फ्रेंड जर्मन था. उसने कहा, अभी पूछ कर बताता हूँ.
उसने टेक्स्ट किया, तुरंत जवाब आया – नहीं, शायद यह गैरकानूनी नहीं है. पर संभव भी नहीं है. संभावित जर्मन नामों की एक लंबी लिस्ट है जिसमें से कोई नाम चुनना होता है. अगर आपकी पसंद का नाम उस लिस्ट में नहीं है तो आपको अपने बच्चे का वह नाम रखने के लिए आपको किसी एजेंसी को आवेदन करना होता है और एक्सप्लेन करना होता है कि आप यही नाम क्यों रखना चाहते हैं. और हिटलर नाम रखने के लिए एक स्वीकार्य कारण देना संभव नहीं है.
तब मैंने बताया, मेरे देश में एक प्रसिद्ध सेलिब्रिटी कपल ने अपने बच्चे का नाम तैमूर रखा जो 14वीं सदी में भारत पर आक्रमण करने वाला एक क्रूर आक्रमणकारी था. उसने भारत में लाखों लोगों का क़त्ल करवाया, एक दिन में दिल्ली की सड़कों पर 3 लाख लोगों की हत्या कर दी.
अगर कोई कहे कि यह नाम चुनना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उसका अधिकार है तो क्या आप लोग उससे सहमत हो?
सभी को झटका लगा… सभी ने एक स्वर में पूछा – पर ऐसा गन्दा काम कोई क्यों करेगा?
मैंने कहा, रहने दो. यह समझाने के लिए मुझे तुम्हें भारत का इतिहास और एक सांस्कृतिक संघर्ष की पृष्ठभूमि समझानी पड़ेगी.
फिलहाल इतना ही, बस यह जानना चाहता था, दुनिया के अलग अलग हिस्सों के लोग इस बारे में क्या सोचते हैं?
कितने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का प्रश्न समझते हैं, कितने इसे जानबूझ कर उकसाने वाली घृणित मानसिकता का काम समझते हैं?
उस कमरे में एक वियतनामी, एक चीनी, एक स्कॉटिश और एक अफ्रीकी मूल की पुर्तगीज लड़की थी. शायद दुनिया के किसी भी कल्चर में ऐसा एक नाम स्वीकार्य नहीं होगा.
पर उस पुर्तगीज लड़की ने झकझोरने वाली एक बात कही – किसने कितने लोगों को मारा, कितने लोग मरे… यह संख्या का प्रश्न नहीं है. प्रश्न है, मरने वाला कौन है. एक अमेरिकन कहीं मरता है, दुनिया झकझोर दी जाती है. अफ्रीका या एशिया में कितने ही रोज मरते हैं…कौन देखता है? आपको क्या लगता है, होलोकॉस्ट पर इतनी फिल्में क्यों बनती हैं? लोगों को झकझोरे रखना है, जगाये रखना है… उन्हें उनका इतिहास याद दिलाते रहना है जिससे फिर कभी ऐसा दुबारा नहीं हो… यह आप पर निर्भर है, अपने ऊपर हुए एक अत्याचार को आप कितनी गंभीरता से लेते हो… आपकी जान की कीमत इससे तय होती है कि आप कौन हो, अपनी कीमत क्या लगाते हो…
तो हिंदुओं, दुनिया के एक दूर दराज के कोने में एक अनजान व्यक्ति द्वारा यह प्रश्न अनजाने में पूछा गया, जो हम सबको संबोधित है – हम कौन हैं? हमारी औकात क्या है? अपनी जान की, अपने पूर्वजों के जान की और अपने बच्चों के भविष्य की क्या कीमत लगाई है हमने?
एक सम्मानजनक उत्तर है हमारे पास?