नोट बंदी की तैयारी तो शायद कुछ महीने पहले हुई थी परन्तु इसके कारणों का इतिहास जानने के लिए लगभग 20 साल के आर्थिक इतिहास पर नज़र डालनी पड़ेगी.
आइये पहले आपको पहले 14 नवम्बर 2016 को The Economic Times समाचार पत्र में छपे एक समाचार के बारे में बता दूं.
इस समाचार के अनुसार India’s counterfiet capital अर्थात भारत के जाली नोटों की राजधानी मालदा जिले में जीवन ठप्प हो चुका है.
इसके अनुसार इस प्रति वर्ष लगभग 2 करोड़ की जाली मुद्रा यहाँ पकड़ी जाती रही है. देश में आने वाली 80% जाली मुद्रा इसी रास्ते से आती है. देश में जाली मुद्रा आने के 4 प्रमुख रास्ते हैं – पंजाब, कश्मीर, नेपाल और बंगला देश.
इनमें से पंजाब, कश्मीर को काफी हद तक काबू में कर लिया गया है परन्तु मालदा जिले के कालियाचक इलाके में कुछ अधिक नही किया जा सकता क्योंकि यह बंगला देश के पास है और जो लोग पकड़े भी जाते वह मात्र सामान लाने वाले हैं जिन्हें 35% से 50% तक कमीशन मिलता है.
इस कारण से वहां के लोग कुछ काम नहीं करते. दूसरा वहां पर अफीम की खेती धड़ल्ले से की जाती है. 2011 की जनसँख्या के बाद मुर्शिदाबाद और मालदा को हिन्दू अल्पसंख्यक जिले के रूप में घोषित किया जा चुका है. अब ये मुस्लिम बहुल जिले हैं.
अब एक बात पर आप गौर करें कि नोट बंदी का सबसे ज्यादा विरोध पश्चिम बंगाल से हो रहा है और मालदा संसदीय क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर 1961, 1971 और 1977 के चुनावों के अतिरिक्त हमेशा कांग्रेस का संसदीय राज रहा है.
इन्हीं जाली नोटों के कारण देश में आतंकवाद इत्यादि घटनाओं को अंजाम दिया जाता है. पुस्तक The Seige, जो 26 नवम्बर के मुंबई हमले पर लिखी गयी है, के अनुसार 164 लोगों की हत्या हुई और देश को लगभग 120 करोड़ डॉलर यानी 7000 करोड़ रुपये का कुल नुकसान हुआ और इस काम के लिए आतंकवादियों का खर्चा हुआ 25 लाख रुपये.
आप अंदाजा लगा सकते है कि जाली नोटों की मात्र संख्या महत्वपूर्ण नहीं है पर उससे अधिक महत्वपूर्ण है नकारात्मक प्रभाव देश पर… भारत पर खतरा…
अब इस नोट बंदी के प्रभाव को देखें. जैसे ही इसकी घोषणा हुई, कश्मीर में आतंकवादियों ने लोगों को धमकाया कि कोई भी अपने नोट नहीं बदलेगा… पर लोग गए. आज कश्मीर में नोटों की कोई किल्लत नहीं है. स्कूल खुल गए… सेना पर पत्थरबाजी ख़त्म हो गयी है.
यही नहीं आपने कश्मीर मे बैंक डकैती की घटना भी सुनी होगी. पहले यह नहीं थी क्योंकि जाली नोटों के चलते कश्मीर में आतंकवाद सुचारु रूप से चल रहा था. हाँ नोटबंदी के चलते हमारे पडोसी ने सीमा पार से हताशा में कुछ करना शुरू किया परन्तु आतंरिक रूप से कश्मीर कुछ समय के लिए शांत हो गया है.
हमारा पड़ोसी देश इसी प्रकार से हम से परोक्ष युद्ध करता रहता है. पकिस्तान के पास अपनी आवशयकता के नोट से 150% अधिक छपाई की व्यवस्था है और इसका उपयोग वह भारतीय मुद्रा छापने में करता है.
अब एक और बात पर ध्यान दें कि नक्सलियों के पास भारत का असली पैसा या मुद्रा रहती है क्योंकि वह पैसा, डरा धमका कर, हफ्ता इत्यादि ले कर इकठ्ठा करते हैं. उनका कोई बैंक खाता न है, न ही हो सकता है.
ऐसा माना जाता है कि उनके पास लगभग 5000 से 6000 करोड़ के आसपास यह पैसा होगा. यह 6000 करोड़ शायद बड़ा आंकड़ा नहीं है परन्तु यही धन सैकड़ों लोगों की हत्या कर सकता है. तीन-चार जिलों के विकास को रोक सकता है. यह है इस धन का नकारात्मक प्रभाव.
अब इसी कारण से नक्सलवाद की घटनाएं आजकल कम हो गयी है. उपरोक्त बताये गए कारणों से भारत की अर्थव्यवस्था, भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ती है और मात्र इसी नोट बंदी के कारण इसमें सुधार आया है. दुर्भाग्य, किसी भी अखबार या मीडिया में इसकी चर्चा नहीं है, कहीं भी इस पर सम्पादकीय नहीं लिखे जा रहे.
…. जारी