याद नहीं कब… पर कभी एक कहानी पढ़ी थी….
किसी गाँव के नजदीक एक साधु आये…. लोगों ने सुना कि अगर वो नाचने लगें तो पानी बरस जाता है….
उस इलाके में सूखा पड़ा हुआ था…. गांव वाले साधु के पास गुहार लगाने गये.
साधु ने नाचना शुरू किया…. एक घन्टे नाचे, कुछ नहीं हुआ…. दूसरा घन्टा बीत गया कुछ नहीं हुआ…. तीसरे घँटे बाद भी एक बूंद तक ना गिरी…..
पर साधु दुनियादारी से बेखबर, बेफिक्र, बेपरवाह नाचता रहा…. चौथे घन्टे घटाएं घिरने लगीं…. पांचवे घन्टे बूंदाबांदी शुरू हो गयी….
और पानी बरसना शुरू हुआ… साधु और झूमकर नाचा… पानी और झूमकर बरसा… गांव वाले जय जयकार कर उठे…
अगली बार फिर जब सूखा पड़ा तो गांव के एक युवक ने सोचा कि अगर साधु के नाचने पर बारिश हो सकती है तो मेरे नाचने पर क्यों नहीं?
उसने नाचना शुरू किया… एक घन्टे नाचकर रुका और देखा बारिश का कहीं कोई नामोनिशान नहीं…
दूसरे घन्टे नाचा, फिर रुककर देखा सूरज उतनी ही प्रचण्डता से चमक रहा था… वो कुछ निराश हुआ….
हिम्मत करके फिर नाचना शुरू किया… लेकिन बारिश के कहीं कोई आसार नहीं…. निराश होकर बैठ गया…
उसे विश्वास हो गया कि साधु जैसी चमत्कारिक शक्ति के बिना कितना भी नाच लो कुछ नहीं होने वाला….
वो साधु को खोजता उनके पास गया. उन्हें अपनी व्यथा सुनाई…. गुहार लगाई कि साधु वो सिद्धि उसे भी सिखा दें…..
साधु ने हंसकर जवाब दिया ऐसी कोई सिद्धि उनके पास नहीं…. युवक को विश्वास ना हुआ.
इस पर साधु ने कहा…. तुम्हारे और मेरे नाचने में फर्क ये है कि तुममें विश्वास नहीं…. तुम्हारे मन में फ़िक्र लगी रहती है कि तुम्हारे नाचने से कुछ असर हो रहा या नहीं.
साधू ने कहा, पर जब मैं नाचता हूँ तो इस अटल विश्वास के साथ कि बारिश होगी कैसे नहीं? मैं बेफिक्र होकर, बगैर परिणाम की परवाह किये नाचता चला जाता हूँ और तब तक नाचता हूँ जब तक परिणाम मेरे क़दमों में ना आ गिरे….
कैशलेस लेनदेन के बारे में एक सज्जन की प्रतिक्रिया थी कि ये भारत में सम्भव नहीं… वो अनपढ़ जाहिल किसान जिसे अपना नाम तक लिखना नहीं आता और ऐसे किसानों की बहुसंख्यक आबादी वाले देश में हम कैशलेस लेनदेन के बारे में कैसे कल्पना कर सकते है?
हम जानते हैं कैशलेश लेनदेन स्वच्छ अर्थव्यवस्था के लिये अनिवार्य है…. ये जानने के बावजूद हम कैशलेस सिस्टम कैसे असफल हों इसके सौ कारण खोज सकते हैं…. लेकिन कैशलेस सिस्टम कैसे सफल हो, वो एक तरीका जानने की कोशिश भी नहीं करते….
माना मुश्किल है लेकिन असम्भव तो नहीं… समस्या देखने दिखाने, गिनने गिनाने में लोग जितनी मेहनत कर रहे हैं, अगर उतनी समाधान खोजने में कंरने लगें तो क्या वाकई ये उतना मुश्किल है?
आखिर आज तमाम बूढ़े बुजुर्ग, रिक्शेवाले, सब्जी वाले मोबाइल का उपयोग सीख गये या नहीं?
किसान अनपढ़ है लेकिन उसका बेटा भी अनपढ़ ही हो, कया ये जरूरी है?
क्या ये जरूरी है कि आज कैशलेस सिस्टम इस्तेमाल करना कुछ लोगो के लिये भले कठिन हो लेकिन आगे बढ़ते प्रयोग की वजह से इसके सरलीकरण के उपाय नहीं किये जायेंगे?
किसे नहीं आता जरूरी नहीं…. आपने कितनों को सिखाया, कितनों को सिखा सकते हैं, सिखा ना सकें फिर भी कोशिश कितनी कर रहे हैं… ये जरूरी है….
सोचिये अगर इस देश के पढ़े लिखे लोगों में 50% भी दिल से ऐसी कोशिश शुरू कर दें तो क्या ये ऐसा भी असम्भव है? यही क्या… कुछ भी असम्भव है?
चमत्कार-वमत्कार कुछ नहीं होता… अरे झूमकर नाचो तो सही पानी बरसेगा कैसे नहीं…