कभी इस शहर में 100% आयरिश और कैथोलिक ईसाई रहते थे… आज इस शहर में 80% मुस्लिम रहते है. अमेरिका के शहर हैमट्रेम्क (Hamtramck) में अरब, बोस्नियाई मुस्लिम, बंगलादेशी मुस्लिम आकर बसने लगे.
उन्होंने वहाँ के मेयर से नमाज के लिए एक मस्जिद की गुजारिश की. मेयर ने दया करके उनकी गुजारिश मान ली.
फिर जब बोस्निया और सर्बिया में लड़ाई छिड़ी तो हजारो बोस्नियाई मुस्लिम हैमट्रेम्क में बसने लगे. इन मुस्लिमो ने अपने दुकानों, फैक्ट्रियों, कारखानों आदि में सिर्फ मुस्लिमों को ही नौकरी पर रखने की कसम खाई.
इन मुस्लिमो ने हैमट्रेम्क शहर की सभ्यता के साथ जैसे बलात्कार करना शुरू कर दिया… गुंडागर्दी… और ईसाई लडकियों के साथ बलात्कर या उन्हें प्रेम जाल में फंसाकर निकाह करना.
धीरे धीरे इस शहर से ईसाई भागने लगे और अपना ही शहर छोडकर दूसरे शहर में चले गये… आज इस शहर में अस्सी-प्रतिशत मुस्लिम है… इस शहर का मेयर मुस्लिम है… इस शहर की काउंसिल में मुस्लिम ही बहुमत में है.
इस शहर में 12 बड़ी मस्जिदें बन चुकी है… और इस शहर से अमेरिकी या ईसाई कल्चर पूरी तरह से खत्म हो कर इस्लामिक कल्चर आ गया है…
डॉनल्ड ट्रम्प ने अपने चुनाव प्रचार में इस शहर का उदाहरण कई बार दिया… और अमेरिकियों को भी महसूस हुआ कि ये सच ही है कि मुस्लिम कभी दूसरे धर्मो के साथ मिलकर नहीं रह सकते…
अब उन्होने निराकरण ढूंढ लिया… अब डॉनल्ड ट्रम्प वहाँ के राष्ट्रपति हैं…!

बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, हर जगह ऐसे उदाहरण आपको देखने को मिलेंगे.
कभी कश्मीर ‘श्री-यन्त्र-तंत्र’ और कथा-साहित्य का इतना बड़ा केंद्र था. वहाँ का मानस अहं और कल्पनाओं में इतना डूब गया कि आज के दृश्य में पहुँच गया.
बंगालवासी भी समय को नहीं पहचान रहे हैं… और बार-बार भुगतते रहे हैं… वहां भी समुदाय विशेष को ढोंगी सेकुलर आवरण तले सरकारी संसाधनो से मजबूत कर दिया है… सुजलाम्-सुफलाम् खतरे में है ..बिलकुल ‘कश्मीर के स्वर्गिक घाटी’ के 1944-55 की तरह.
‘जय काली कलकत्ते वाली… तेरा वचन न जाए खाली… उछू’
लगभग 150 साल तक देश की राजधानी रही ‘कलकत्ता नगरी’ अपना श्री, शक्ति और वैभव कैसे खोती चली गई… किसी ने नहीं सोचा?
बंगाल जो तंत्र-जादू का गढ़ रहा है, अध्यात्म का गढ़ रहा है, सन्यासियों की बड़ी जमात यहीं से निकली, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, प्रणवानंद, अखंडानंद, गोपीनाथ कविराज, मास्टर मोशाय, योगानन्द परमहंस, जैसी महान विभूतियो ने इस पवित्र भूमि पर जन्म लिया, और सनातन सोच की पताका संपूर्ण जगत पर फहराई.
जहां से रेनेसॉ शुरू हुआ, हिन्दू धर्म-सुधार प्रारंभ हुआ, राजाराम मोहन राय हुए, केशव सेन, रवींद्रनाथ ठाकुर, सुभाषचंद्र बोस, खुदीराम बोस, जगदीश चंद्र बसु हुए…
आनंद मठ और वंदे-मातरम का उदघोष हुआ…. हजारों साहित्यिक-उपन्यासों-कथाओं, किताबो की रचना हुई…. जो जगदीशचंद्र बसु और विशुद्धानन्द जी के सूर्य-विज्ञान को प्रमाणित करने वाली भूमि रही है.
वह भूमि आज खतरे में है. हर जिले में एक तनाव है, लोग बंगाल छोड़ रहे हैं. सुरक्षित विकल्प की तरफ भाग रहे हैं.
बौध्दिक, ओपिनियन वर्ग ने विचित्र मनोदशा में खड़ा कर दिया है बंगालियों को. इन 30 सालों की परिस्थितियों में उन्होंने सेकुलरिज्म-सेकुलरिज्म चिल्लाते-चिल्लाते ‘दारुल-इस्लाम’ के हाथ उसे सौंप दिया है.
हावड़ा जिले धुलागढ़ में 60 दलित हिन्दु परिवार मारे गए हैं… पिछले कई दिन तक दंगे हुये. पश्चिम बंगाल में दंगे हो रहे है!
हिन्दुओं के घर दूकान जलाए जाते है. नोटबंदी में इन दंगा पीड़ितों की सहायता कोई करने को तैयार नहीं.
कुछ दिनो पहले वहाँ कई शहरो मे शांतिदूतों के प्रदर्शन हुये थे. उनमें भी दुकाने आदि जलाई गई थी… बड़ी संख्या में सामाजिक-व्यक्तिगत गाड़ियों को आग आदि लगाई गई थी..
बंगाल को देख लो… प्रत्यक्ष बेधड़क-बेख़ौफ़ हिंदुओं को मार काट रहे हैं, घर जला रहे हैं, दुकानें जला कर राख कर दी हैं.
मालदह, मुर्शिदाबाद, दीनाजपुर, हुगली, सभी जगह लोग दबाव मेँ हैं. कई जगहों से सूचनाएं हैं… सारी धन संपत्ति छीन कर उन्हें भागने पर विवश कर रहे हैं.
वे पहले हिदुओं मेँ फूट डालते है… दलित-सवर्ण आदि बातें करके घुसपैठ करेंगे… फिर… पहले सवर्ण निपटाया जाता है फिर दलित.
वोट-बैंक की राजनीति के तले ममता बनर्जी शासन में पिछले कई साल से चल रहे वीभत्स खेल में दलित-हिंदुओं पर क्या-क्या बीत रही है, क्या-क्या हुआ है उनके परिवार का… जानेंगे तो आंखे फट जाएंगी. नेट पर सर्च करें, जिला-वार, सब पता लग जाएगा॥
उनका पुराना स्वभाव है, वे सब कुछ खो कर ही जागते हैं. जरा एक नजर बंगाल के इतिहास पर डालें… यह कोई नया स्वभाव-प्रकृति नहीं है…युगों मे विकसित हुआ है…
मौर्यो, सातवाहन, गुप्त, मौखरियों, प्रतिहारों आदि-आदि के केंद्रीय शासन के बाद, दूरदराज के काश्मीर तक का शासन, बंगाल पर रहा.
फिर सातवीं शती में एक ऐसा समय आ गया जब वहां पूर्ण-अराजकता व्याप्त हो गयी. तारानाथ जो उस समय के तिब्बती यात्री थे उन्होंने उस काल को ‘मत्स्य–न्याय काल’ लिखा है.
मतलब राजा ही नहीं था. जो जबर सो पकड़! उड़ीसा, बंगाल में हर चार गाँव पर मजबूत लाठी वाला खुद को राजा कहने लगा.
कई मुखियाओं ने मिलकर एक ‘मजबूत’ गड़रिये ‘गोपाल’ को राजा बना लिया. उसकी एकमात्र योग्यता थी कि वह एक साधारण सैनिक योद्धा ‘दयित-विष्णु’ का पौत्र, वैय्यट नामक सैनिक का बेटा था.
वह सफल राजा बना. उसने बंगाल और उड़ीसा तथा मिथिला के क्षेत्रों का संगठन किया. अशांति दूर की और पाल वंश की शासन-व्यवस्था स्थापित की. यह वही गोपाल है जिसने विश्वप्रसिद्ध नालंदा विहार और एक विश्वविद्यालय बनवाया था.
अगले 450 सालों तक अधिकाँश बंगाल इसी पालवंश के शासन में फला-फूला. दसवीं शताब्दी में चालुक्यों का पालों पर आक्रमण हुआ.
पूर्वी बंगाल जिसे अब बांग्ला-देश कहते हैं, चालुक्यों के एक क्षत्रप सामन्त सेन ने उस हिस्से को स्वत्रंत घोषित कर दिया. काशीपुरी को राजधानी बनाकर सेन वंश स्थापित हुआ. नालन्दा और बिहार राज्य का बड़ा हिस्सा इनके राज्य में था.
उस वंश के विजय सेन, बल्लाल सेन, लक्ष्मण सेन उस वंश के प्रसिद्द राजा थे. माधव सेन वह राजा था जो बख्तियार खिलजी का नाम सुनकर भाग गया था.
पालों-सेनों का संघर्ष सौ सालों तक चलता रहा. इन बेवकूफी भरे युद्धों पर कई कहानियां हैं. वे कैसे लड़ते थे, पता है?
‘दोनों सेनाएं सम्मुख खड़े होकर जोर-जोर से गालियां बकती थीं…. जो थक कर सो गया वह हार जाता था… इलाका जीते हुए का हो जाता.’
‘या फिर कबड्डी के खेल से फैसला होता… कई जगह तो कहानियां सुनाने का युद्ध सुनने में आया है.’
जब मैंने पहली बार पढ़ा तो हंसते-हंसते लोट-पोट हो गया.
ई. 1161 में मदन पाल के मरने के बाद पाल वंश कई हिस्से में बिखर गया. कुछ दिनो बाद वहाँ खिलजियों ने कब्जा करके सब जला दिया, नालंदा विश्वविद्यालय, लाइब्रेरी, पुराने मंदिर, पुराने अधिकारियों को मार दिया.
उसने ई. 1299 में नालंदा विश्वविद्यालय में ही आग लगवा दी. वहां इतनी पुस्तकें थीं कि आग लगाईं गई तो तीन माह तक पुस्तकें जलती रहीं. उसने हजारों धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षु मार डाले.
कई जगह उल्लेख है कि इलाज करवाने नालंदा विश्वविद्यालय गये बख्तियार खिलजी ने स्वस्थ होने के बाद 17 दोस्तों के साथ पूरा बंगाल जीत लिया था.
चार बड़ी सेनाएं नाम मुस्लिम आक्रांता सुनकऱ भाग खड़ी हुई थीं. सेन वंश की एक-लाख से अधिक सजी-प्रशिक्षित सेना हथियार लेकर भाग खड़ी हुई. ‘तुरक आए – तुरक आए’ कहकर… 17 लोगो के सामने… बिना लड़े…
हो सकता है यह गप्प हो, लेकिन कई मुस्लिम इतिहासकारो ने ये लिखा है…
खून-ख़च्चर, लड़ना, जान लेना, बच्चों को गुलाम बनाना, औरतों से रेप करने वाला युद्ध कॉन्सेप्ट बंगालियों के लिए नया था न!!
हथियार डाल दिए फिर भी यह सब हुआ…
फिलहाल पालों ने भी उसके सामने हथियार डाल दिये… कमोबेश सभी ने ऐसा ही किया. बख्तियार जीतता और पीछे का सब कुछ जला देता… उनकी सेनाओ को अपने दोस्तो के अधीन करता चलता.
2000 से अधिक ऐसे उदाहरण हैं…ऐसे ही घूमते-टहलते हुए जीतने के… उसने पालों-सेनों से धीरे-धीरे करके पूरा बंगाल-बिहार-उड़ीसा का सीमावर्ती हिस्सा कब्जा लिया.
उसके बाद से मुर्शिदाबाद को केंद्र बनाकर मुस्लिम-सुलतान का गवर्नर (सामंत-सूबेदार)शासन रहा. 17वी शताब्दी तक ऐसे ही चला. एक केंद्र लखनौती भी बन गया.
कुछ साल का केंद्रीय-शासन फिर इलियास वंश, बायजिद वंश, इलियास वंश, हाबसि वंश, हुसेन वंश का सूबेदारी शासन…
इसी समय ज़ोर-जबर्दस्ती के सहारे धर्मांतरण हुआ… उन्होंने पूरब के बड़े हिस्से को मुस्लिम बाहुल्य कर लिया. तब भी 1905 मे पूरे बंगाल मे 24 प्रतिशत नहीं हो पाये थे….
मुगलों के सूबेदार मुर्शिद कुली खान ने स्वतंत्र होके अपने वंश को स्थापित कर लिया… सिराजुद्दौला उसी वंश मेँ हुआ… जिस पर बंगाल की आबो-हवा ने प्रभाव डाला और वह प्लासी मेँ हार गया.
235 गौरांग देवता अंग्रेज (नाम रजिस्टर्ड है, ईस्ट इंडिया कंपनी डाटा, लंदन) बंगाल के रास्ते पूरे देश को कब्जा बैठे… ई. 1757 प्लासी का युद्ध, ‘हे भगवान! तुम्हारी लीला-अपरंपार!’
अंग्रेजों ने बंगाल गजेटियर में ‘बंगाली हिन्दुओं’ के बारे में लिखा है, ‘वह एक अच्छे किस्म के “बाबू” होते हैं, इससे ज्यादा काम उनसे न लिया जाये.’
(हाँ मुस्लिमो के बारे जो लिखा है वह ज्यादा खतरनाक है)
बिहार की तरफ के कुछ गाँवो में कहावत है ’27 गांवो के बंगाली मिलकर भी एक पूरी मूली नही उखाड़ सकते.’
उधर के लोग कहते हैं ‘जोर जोर से बोलने और तरह-तरह की कविताएं रचने के अलावा उन्हें कुछ नही आता.’ वर्णन करने में माहिर होते हैं. इसीलिए वहां साहित्य वगैरह ज्यादा रचे जाते है.
इन परिस्थितियों से आप बंगाल की प्रकृति समझ सकते हैं. वह जीवन मेँ बड़ा अनुशासित-आध्यात्मिक-बौद्धिक-पलायनवादी होता है. बंगाल का पंथ उसी डर में से उपजा है… जो सनातन को समापन की तरफ ले जा रहा है.
सौ-साल पहले जहाँ (पूर्ण बंगाल) 78 प्रतिशत हिन्दू था. बंग-भंग,1905… जिसने सम्पूर्ण हिंदूस्तान राष्ट्र को जगा दिया, उसी में एक दारुले-इस्लाम भी सोया पड़ा था. उस बंगाल को काट कर बनाए गए एक हिस्से, जो अब बांग्ला-देश है, उसका हाल देखिये जो फैब्रिकेटेड होने के बावजूद आपके सामने है.
दैनिक ट्रिब्यून की रिपोर्ट में प्रोफेसर बरकत के हवाले से कहा गया है कि, पिछले 49 वर्ष में पलायन का जिस तरह का पैटर्न रहा है वो उसी दिशा की ओर बढ़ रहा है. अगले तीन दशक में बांग्लादेश में एक भी हिंदू नहीं बचेगा.
बरकत ने अपनी किताब ‘Political economy of reforming agriculture-land-water bodies in Bangladesh’ में ये बात कही है. ये किताब 19 नवंबर को प्रकाशित होकर आई है.
ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अजय रॉय ने कहा कि, बांग्लादेश बनने से पहले पाकिस्तान के शासन वाले दिनों में सरकार ने अनामी प्रॉपर्टी का नाम देकर हिंदुओं की संपत्ति को जब्त कर लिया. स्वतंत्रता मिलने के बाद भी निहित संपत्ति के तौर पर सरकार ने कब्जा जमाए रखा. इसी वजह से लगभग 60 प्रतिशत हिंदू भूमिहीन हो गए.
रिटायर्ड जस्टिस काजी इबादुल हक ने इस समय कहा कि, अल्पसंख्यकों और गरीबों को उनके भूमि के अधिकार से वंचित कर दिया गया.
प्रोफेसर बरकत ने अपनी किताब को बचपन के उन दोस्तों को समर्पित किया है जो ‘बुनो’ समुदाय से थे और अब उनका नामलेवा भी बांग्लादेश में नहीं बचा है.
“आमार सोनार बांग्ला’!!
धीरे-धीरे ‘सोनार देश’ का बड़ा हिस्सा पहले ‘दारुल-ए-इस्लाम’ बनकर बांग्लादेश के रूप में कट गया. ध्यान देने लायक तथ्य है बांग्ला देश से आने वाले शरणार्थी हिन्दुओं की बड़ी संख्या प. बंगाल में न रुककर देश के अन्य हिन्दू-बाहुल्य हिस्से में गई.
पहले 1947 से 71 के बीच बड़ी हिन्दू संख्या धकेल कर भगा दिया. तब भी बांग्ला देश में 1971 में घोषित 28 प्रतिशत हिन्दू थे. 1971 से मार-मार भगाते भगाते अब 7.9 प्रतिशत ही हिन्दू-दलित जातियां बची हैं.
उन्हें भी……
बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि जो काम अंगरेजों और मुस्लिमों के शासन में नही हुआ, वह इधर के चालीस साल में हो गया!!
मुझे नही मालूम की ‘ममता’ की सच्चाई क्या है, परंतु ममता बनर्जी का मुस्लिम पक्षपाती रवैया जगत-जाहिर है. वाम-पंथी शासन की तुलना में उनके शासन काल में उत्पात और जनसांख्यिक असंतुलन तेजी से बिगड़ा है.
शायद वोटों के लालच में उनकी समझने की क्षमता खो गयी हैं. उन्होने अपने शासन-काल मे बंगाल को ऐतिहासिक पतन के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है.
शेष बचे हुए (पश्चिम बंगाल) में अब घुसपैठ, दंगे, बड़े हुजूमी-प्रदर्शनों और ‘वोट की खातिर सरकारी गुंडई के’ सहारे वहां आतंक का माहौल बनाया जा रहा है. वे हमेशा से ही इस तरह के माहौल से हिन्दुओं को दहशत में डालने के आदी रहे हैं.
हिन्दू खुद ही दूसरे हिस्सों की तरफ भागना शुरू कर देता है या फिर घुसपैठ-अपराध जैसे मुद्दों की तरफ देखना बन्द कर देता है. अब बचे हुए बंगाल के 11 जिले भी खतरे के कगार पर है… बड़ी तेजी से वे मुस्लिम बाहुल्य हो रहे. बिलकुल सधी और पुरानी रणनीति के सहारे.
कहते हैं बंगाली, भावना से सोचता हैं, उन्होंने खूब सारा भावुक साहित्य लिखा है… शुरुआती दशक मे बंगला में इस विशिष्ट तरह के लेखन का साहित्य (लेख, कहानी, और उपन्यास) मिलेगा जिसे आज पूरा सोनार-बांग्लादेश भुगत रहा है.
यही सब पढ़-पढ़ के हर तरफ से बेफिक्र हो गए 1905 में 78 प्रतिशत हिन्दू… 1948 में 48 प्रतिशत बचे, जो 1971 में 28 प्रतिशत से होते हुए, 2013 में 8 प्रतिशत हो गए…
अब उल्टा देखिये… बांग्ला मुस्लिम (बंगाल और बांग्लादेश तो छोड़िए असम में भी) 5 प्रतिशत से बढ़ते हुए कुल 30 प्रतिशत पार कर रहा है…. बांग्लादेश जहां 1905 में केवल 7 प्रतिशत मुस्लिम था, इसी भावुकता से 92 प्रतिशत पर पहुंच गया!!!
सबसे मजेदार बात हिन्दुओं में जो भी “गरीब” (वे कभी-कभी कहते हैं… कौन और कैसे धर्मांतरित हुये, सच सभी जानते हैं) धर्मान्तरित होकर वहां गए… ‘जनन वाले’ में तब्दील हो गए…
हम पांच, हमारे 25 की दर ने गरीबी के मामले में दूनी रफ्तार पकड़ ली. इसको भी हमें यानी हम-दो हमारे दो वाले हिन्दूस्थान को ही ढोना पड़ता है.
किसी मूर्ख या विद्वान् लेखक को यह ‘टॉपिक’ नही दीखता??? कोई फिल्मकार, साहित्यकार, कलाकार, जनवादी इस ‘भद्दे प्लाट’ को डेवलप-कर अपनी रचनाधर्मिता नहीं दिखाता… यहाँ उसका जनवाद मर जाता है…. यह जनवादी उनकी सेना की ताकत जानता है न.
‘एक तो केंचुआ ऊपर से चिकनी मिट्टी मिली’ ….लंबे समय के वामी शासन ने बंगाल पर अपना कुप्रभाव तो छोड़ा ही है.
सनातनियों का शांतिकाल मेँ ‘अपना महान संत’ दिखने की कोशिश मे ‘बंगाल-बंगलादेश’ से हिन्दुओ को ‘लगभग ख़त्म’ में बदल दिया गया है.
वहां के लेखकों, मीडियाबाजों, थॉट लीडर्स ने अपने एस्केपिज्म को सेकुलरिज्म के लिबास में सनातन समाज को छला है. वरना यह कौन सी धारणा है कि सनातन बंग घटता जा रहा है और दारुल-ए-इस्लाम उसे ढंकता जा रहा??
कमोबेश यही स्थिति कभी पंजाब, सिंध, अफगान, ईरान और बलूचिस्तान में भी रही है. वहां भी कुछ भड़ासबाज अपनी महानता पेलने के लिए कूड़ा-मगज लेकर आ ही गये… सनातन खत्म हो गया.
बंगाल काश्मीर बनने की तरफ बढ़ रहा है बड़ी ही रणनीति से, पूरी योजना से सधे-कदम से उसे भारत वर्ष से काटने की कोशिश हो रही है.
शब्दों का क्या? कई बार शब्द और साहित्य अहंकार-पुष्टि में लग कर असल जिम्मेदारियों से बहुत दूर कर देता है. कारण की ईमानदार विवेचना होनी चाहिए न कि भड़ास पूर्ण महानता बोध कराने वाली.
वैसे ‘आशावादी आध्यात्मिक बंगाली दोस्त’ हंसी करते हैं कि बंगाल न होता तो देश कभी आजाद भी न होता. ‘600 सालों की अराजकता, लूटपाट, असुरक्षा के बाद देश को आजादी दिलाने के लिए बंगालियों ने अंग्रेज कंपनी से 200 सौ सालों के कानून व्यवस्था के शासन का लीज-समझौता किया था, नहीं तो शायद हम कभी आजाद न होते.’
जादू-तंत्र की रुपहली दुनिया!
तो हम सब जानते हैं बंगाल का जादू महज रोचक-कहानियां थीं. उस क्ल्पनालोक, दिवास्वप्न, कथा-कहानियों से बाहर आओ नहीं तो दुनियाँ बहुत कठोर है….. राष्ट्र नायको की भूमि खो जायेगी.
कुरुक्षेत्र भी धर्मक्षेत्र और युद्ध धर्मयुद्ध कहलाया…. अपने को बचाना है तो उत्तिष्ठ: जागृत!!