बेटियाँ चावल उछाल
बिना पलटे,
महावर लगे कदमों से विदा हो जाती हैं.
छोड़ जाती है बुक शेल्फ में,
कवर पर अपना नाम लिखी किताबें,
दीवार पर टंगी खूबसूरत आइल पेंटिंग के एक कोने पर लिखा अपना नाम,
खामोशी से नर्म एहसासों की निशानियां,
छोड़ जाती है ……
बेटियाँ विदा हो जाती हैं.
सूने सूने कमरों में उनका स्पर्श,
पूजा घर की रंगोली में उंगलियों की महक,
बिरहन दीवारों पर बचपन की निशानियाँ,
घर आँगन पनीली आँखों में भर,
महावर लगे पैरों से दहलीज़ लांघ जाती है…
बेटियाँ चावल उछाल विदा हो जाती हैं.
एल्बम में अपनी मुस्कुराती तस्वीरें,
कुछ धूल लगे मैडल और कप,
आँगन में गेंदे की क्यारियाँ उसकी निशानी,
गुड़ियों को पहनाकर एक साड़ी पुरानी,
उदास खिलौने आले में औंधे मुँह लुढ़के,
घर भर में वीरानी घोल जाती हैं ….
बेटियाँ चावल उछाल विदा हो जाती हैं.
टी वी पर शादी की सीडी देखते देखते,
पापा हट जाते जब जब विदाई आती है.
सारा बचपन अपने तकिये के अंदर दबा,
जिम्मेदारी की चुनर ओढ़ चली जाती हैं.
बेटियाँ चावल उछाल बिना पलटे विदा हो जाती हैं.
– Drtt Prasad