अक्सर ही लोग ये समझने की गलती कर बैठते हैं कि इमोशनल होना एक बीमारी है. हाँ, अगर आप लंबे समय तक भावुक बने रहते हैं तो आप मानसिक बीमारियों को न्योता दे रहे हैं.
हमारी बोलचाल की भाषा में ” इमोशनली फ़ूल “शब्द कुछ इस तरह रच बस गए हैं कि अगर इन्हें हिन्दी अर्थ में हम बोलें तो ख़ुद ही फूल नजर आयेंगे. जो लोग अति भावुकतावश होकर काम करते हैं उन्हें लोग इसी नाम से बुलाते हैं .
संवेदनशीलता परिस्थितियाँ, समय और महत्वाकांक्षाओं के कारण अलग अलग होती है. हर आदमी के पास अपने अपने कारण हैं, संवेदनशीलता का कोई माप-दण्ड नहीं होता. इसके लिये सबसे जरुरी है कि आप अपने इमोशनल स्वभाव और उस दौरान होने वाले व्यवहार को जाँचें और परखें.
हम भावनात्मक तभी होते हैं जब हम अपनी बातों को सकारात्मक रूप से लोगों के सामने नहीं रख पाते.
इमोशनल होने के साइड इफेक्ट्स:-
* जरूरत से ज्यादा गुस्सा, द्वेष, अहंकार, चिंता, दुःख, डर और यहाँ तक कि प्रेम और विश्वास भी सिर्फ व्यक्ति विशेष को ही नहीं बल्कि अपने आस पास के लोगों को भी मुश्किल में डाल देती है.
* अतिभावुकता से व्यक्ति डिप्रेशन का भी शिकार हो सकता है.
* ऐसे व्यक्ति आगे चलकर शक्की भी हो जाते हैं.
इससे बचने के लिये सकारात्मक सोच, ध्यान, व्यायाम, योग, नृत्य, जॉगिंग, पौधों और प्रकृति से प्यार, संगीत सुनना इत्यादि करें.
मन की हर अवस्था प्रेरणात्मक नहीं हो सकती, परन्तु इसके लिए पछतावा करना उचित नहीं कहा जा सकता. मन की अंतरंगता भावनाओं से जुड़ी है, भावुकता का समावेश अगर भावनाओं में ज्यादा होता है, तो मन में कमजोरी का आना लाजिमी है, और यही वो तत्व है, जो हमारी कामयाबी और नाकामी को परिणाम देते हैं. हमें अपनी हर असफलता को कभी भी इतनी वजह नहीं देनी चाहिए कि मन दूसरे प्रयास के चिंतन की हिम्मत छोड़ दे. आखिर, हमारा संबल हमारा अपना मन ही है.
हर आदमी का चिंतन ही उसके व्यक्तित्व का धरातल है. जितनी मजबूत मन की नींव उतना ही मजबूत उसका व्यक्तित्व हो सकता है.
बिना भाव के जीवन तो रसहीन कहलायेगा. समाज का एक उच्च वर्ग जिसमें कवि और लेखक भी आते हैं, ये लोग अपनी संवेदनाओं को सृजनात्मकता में ढालने की कला बखूबी जानते हैं. समाज का यह वर्ग ख़ुद को fulfillment (भरपूरता) का अहसास देते हुए, हम सब के जीवन में मिठास घोल देता है. अगर संगीत न होता तो जिन्दगी मशीनी न हो जाती?
बहुत बहुत ख़ूब रश्मि