और कहते हैं जिसको दूजा मुल्क उस पाकिस्तां में पहुंचे….

Kareen saif baby boy Taimur name ma jivan shaifaly making india

पिछले हफ्ते ईद की रात घर से निकलना हुआ. ठण्ड के कारण बच्चों को खांसी हो गयी थी. दोनों बच्चों को एक ख़ास आयुर्वेदिक दवाई (अडुल्सा)  ही देती हूँ, जो बड़े पंसारी की दुकान पर ही मिलती है. और बड़े पंसारी की दुकान होती है एक मुस्लिम क्षेत्र में.

तो ईद वाले दिन हम बाइक से दवाई लेने निकले. बाज़ार में बहुत भीड़… चारों तरफ पैदल चलते लोग, कोई सर पर टोपी पहने हुए, कोई नए स्टाइल से साफा बांधे हुए… रंग बिरंगी तितलियों सी महिलाएं… इत्र की खुशबू से सराबोर हवा… सबसे अच्छी बात वहां पर लोग तिरंगा भी लहरा रहे थे और देश भक्ति के गाने भी बज रहे थे…

यह सब देखकर मैं अपने बचपन में लौट गयी…. मेरे पापा ईद के दिन मुझे अपनी लूना पर बिठाकर इंदौर के जवाहर मार्ग  घुमाने ले जाते थे…. वहां से आगे हम लोग पैदल ही जाते थे… मुस्लिम क्षेत्र और उनका बाज़ार… तरह तरह की खाने की चीज़ें, तड़क झमक करती कपड़ों की दुकानें…

पापा ने कहा- जो पसंद हो खरीद लो… एक सूट खरीदा था मैंने क्रीम कलर का जरी वाला… काला सलवार… चमकदार दुपट्टा… घर लेकर आई तो काका की लड़कियों ने खूब मखौल उड़ाया था… इसे पहनकर तो तुम बिलकुल मुस्लिम लगोगी… मैं सुनकर बहुत खुश हुई थी… मेरे एक काका पता नहीं क्यों मुझे बचपन से ही “फातेमा बेग़म” कहते थे…

मुझे ये नाम बहुत अच्छा लगता था… लगता था सच में मेरा ही नाम है…. बचपन के बाद कभी उन्होंने मुझे इस नाम से नहीं पुकारा लेकिन वो नाम जैसे मेरी आत्मा के गहरे में बस गया .. लगता था हाँ मेरा नाम फ़ातेमा बेग़म ही है….

आज स्वामी ध्यान विनय और बच्चों को भुलाकर इस माहौल में मैं फिर से एक बार फ़ातेमा बेग़म हो गयी थी… ध्यान विनय ने कब गाड़ी पंसारी की दुकान पर लाकर खड़ी कर दी थी पता ही नहीं चला…. कहीं बहुत अंधेरी गुफा से एक आवाज़ आती सुनाई दी… “उतरो भी गाड़ी से जाओ दुकान से दवाई ले आओ”….

बड़ी मुश्किल से अपनी दुनिया में लौटी….. दवाई ली और पूरे रास्ते आँखें बंद किये उन सपनों को याद करने की कोशिश करती रही जो मुझे बचपन से दिखाई देते हैं… कभी कोई मंदिर दिखाई देता है कभी कोई मस्जिद….  कभी दोनों साथ में….

mannato vala beta jyotirmay ma jivan shaifaly

लगता है जैसे किसी जन्म में इस मज़हब की राह से गुज़रना हुआ है… वरना देश और देश के बाहर इस्लाम को लेकर इतना कुछ देखने सुनने के बाद भी मुझसे इस मज़हब की तहज़ीब, भाषा की नज़ाकत और सूफियाना अंदाज़ नज़रंदाज़ नहीं होता…

तभी शायद आज भी मैं इत्र ही लगाती हूँ, परफ्यूम नहीं…….

तभी आज भी बच्चों की नज़र उतरवाने पीर (डॉ अली ) के पास जाती हूँ…

तभी आज भी मेरे पास एक शीशी में गंगाजल रहता है तो दूसरी में आब-ए-ज़मज़म….

तभी शायद पिछले जन्म की यादों की  तरह ये जब तब मुझे अपनी बाहों में घेर लेता है…

तभी शायद पियूष मिश्रा की हुस्ना को पहली बार सुना था तो ध्यान विनय के कंधे को ज़ोर से भींचकर ज़ार ज़ार रो दी थी….

और उस दिन कम से कम बीस पच्चीस बार उस गीत को सुना और इस पंक्ति को सुनते सुनते ही न जाने कितनी बार उस सरहद को पार कर गयी थी …. और कहते हैं जिसको दूजा मुल्क उस पाकिस्तां में पहुंचे….

ज़मीन पर लकीर खींचकर एक देह के दो टुकड़े तो कर सकते हो.. लेकिन आत्मा तो आसमान की तरह होती है जिसे बांटा नहीं जा सका…

मैं शैफाली से कभी फ़ातेमा बेग़म तो कभी हुस्ना हो जाती हूँ…. एक नाम ही तो है… लेकिन सच कहूं इस नाम में बहुत कुछ रखा है….

जैसे एक नाम है “गीत” मुझे बहुत पसंद है… इस शब्द को सुनकर जो सबसे पहले मुझे याद आती है तो वो है करीना… हाँ वही करीना जिसको आख़िरी बार मैंने ‘जब वी मेट’ में देखा था.. निश्छल… बिना मेक अप का दुनिया का सबसे सुन्दर और भोला चेहरा….

पहले प्रेम की दुधिया चांदनी में नहा कर निकली मासूम सी परी.. जब हंसती तो पूरी झेलम झिलमिला उठती और रोती तो ठेठ पंजाबन मुटियार सी… अल्हड़ ऐसी कि उसके मुंह से गाली भी बड़ी मीठी लगे..

घर से भागी हुई लड़की जो कभी घर से भाग ही नहीं पाई… उसके घर की मिट्टी की खुशबू तक उसके बदन से आती हो जैसे… परदे पर उस खुशबू को वास्तव में महसूस करा देने वाली ‘जब वी मेट’ की “गीत” करीना.. शायद इसलिए ही मेरे छोटे बेटे का नाम भी “गीत” है….

हालाँकि उसके बाद भी करीना ने फिल्मे की… इधर उधर की कुछ झलकियाँ मैंने देखी भी लेकिन तब तक उसकी मासूमियत दुनियादारी में बदल चुकी थी.. बहुत कम समय में मैंने उसके चेहरे पर उम्र को दौड़ते हुए देखा… बहुत लम्बी छलांग लगा ली थी उसने… देह का अंकुर फूट कर सीधे हरा भरा वृक्ष हो गया था… लेकिन उस वृक्ष में कहीं भी वो जीवंतता अनुभव नहीं हो रही थी जो एक फलदायी वृक्ष में होना चाहिए…

कौन कहता है पहनावा, आपका खान पान, घर और संस्कृति का आपके स्वभाव पर असर नहीं डालता.. यकीनन डालता है…. मैं पिछले जन्म में चाहे जिस मज़हब की राह से गुज़री हूँ… इस जन्म में जो कुछ पाया अपने पिछले जन्म के कर्मफल के रूप में ही पाया और पा रही हूँ…

अपना मूल स्वरूप, जिस माटी पर ये बीज अंकुरित हुआ उस सनातन धर्म की स्मृतियाँ आत्मा में आज भी अंकित है.. तभी तो अब जब बीज बड़ा होकर वृक्ष बना है और फल और फूल देने का समय आया है तो अपनी माँ भारती के आँचल में डाल रही हूँ….

ma jivan shaifaly
Ma Jivan Shaifaly

जीवनचक्र एक कभी न थमने वाली प्रक्रिया है जब तक आप Escape Velocity को न पा लो… इस चक्र के केंद्र में क्या है ये बहुत मायने रखता है… तो मेरे इन सारे जीवन चक्रों के केंद्र में है वह वास्तविक सनातन धर्म जिसके कारण आज मुझे मेरा नया नाम मिला है….

एक ऐसा ही नया नाम धारण किया कपूर खानदान की मासूम कली ने और पंजाबी मुटियार हो गयी नवाब की बेग़म….

यूं तो रोज़ ही आपके अन्दर कुछ न कुछ परिवर्तन होता है… लेकिन करीना के अन्दर बदलाब करीने से हुआ नहीं लगता मुझे… उसके आभामंडल पर अब किसी और संस्कृति का प्रभाव है… संस्कृति कोई बुरी नहीं होती यदि उसका उद्देश्य सृजनात्मक हो…

यकीन मानों करीना मैं दिल से दुआ करती हूँ तुम्हारे लिए.. तुम सेफ (safe) रहो इस नई संस्कृति में भी.. झेलम सी झिलमिलाओ… अपनी वास्तविक हंसी को लौटा लाओ… तुम पर ये मुस्कान बड़ी झूठी-सी लगती है… मैं खुश होऊंगी तब भी जब तुम आकर मुझसे यही कह जाओगी… चल झूठी!!

करीना तुम्हारे लिए बस इतना ही कहूंगी – तुम्हें पुत्ररत्न (तैमूर) की प्राप्ति पर हम सब की दुआएं हैं…. तुम्हारा पुत्र यशस्वी हो… भारत का नाम ऊंचा करे… लेकिन इतना तो पता ही होगा ना… हमारे सनातन धर्म में आज भी हम किसी का नाम केकैयी नहीं रखते, विभीषण नहीं रखते… रावण नहीं रखते…

– माँ जीवन शैफाली

Comments

comments

1 COMMENT

LEAVE A REPLY