मोहभंग नहीं, अब तो मुंह बंद कीजिये जनाब, बहुत बदबू आने लगी है

अभी अभी नोट बंदी के विरोधियों की तिलमिलाहट भरी (उनके हिसाब से दुखभरी) कहानी पढ़ी … किन किन लोगों का वर्तमान सरकार की विमुद्रीकरण योजना के कारण मोदीजी से मोहभंग हुआ, इस बाबत. कहीं कोई आंकड़े नहीं, कोई नाम नहीं.. बस कुछ काल्पनिक कहानियां…

कहानी कुछ यूं कि गाँव से पढ़ने/रहने आयी भतीजी को 9 नवम्बर को इमरजेंसी की हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया….. और अगले ही दिन से अस्पताल वालों ने पुराने नोट लेने से बंद कर दिया… यही नहीं खचाखच भरे रहने वाले वार्ड खाली हो गए…

बेचारी आंटी न जाने कहाँ कहाँ भटकती रही बिलकुल निरूपा रॉय स्टाइल में पैसों के जुगाड़ में… सब दोस्तों और रिश्तेदारों ने बहाने से टाल दिया… सोचिये आंटीजी का स्वभाव कैसा होगा जो ऐसी मुसीबत में भी लोगों ने उनकी मदद के लिए मना कर दिया… बेचारी इतनी गरीब कि हाथ में बड़े बड़े नोट है खाली …. छोटे मोटे नोट तो रखती ही ना थी…

मेरे तो आँखों देखे किस्से है कैसे लोग बैंक की लाइन में खड़े खड़े भी एक दूसरे से अनजान लोग मदद कर रहे थे…

चलिए फिर उस आंटीजी की मदद की भी तो किसने, फेरी लगानेवाले, बांग्लादेशी मूल के लड़के और वो रिक्शे पर सूट शाल बेचने वाले कश्मीरी लड़के… वो बेचारे लड़के अपनी दुकान उजाड़कर बेचारी आंटी की मदद करते रहे…

तो भैया पहचान कैसे हुई उन लड़कों से आप साड़ी सूट खरीदते होंगे उनसे तभी ना…. मतलब इतनी गरीब भी नहीं, हाथ में छोटे नोट नहीं तो बैंक में मोटे पैसे तो होंगे ही… तो चेक से दे देती अस्पताल का खर्चा…

पर नहीं, फिर ये दुःख भरी कहानी कैसे बनती…

तो भैया देश के लिए ये सहज, संवेदनशील और करुणामयी आंटियां तकलीफ सहन करने को तैयार नहीं, लेकिन वो फेरी लगाने वाला तैयार है….

हम भी तो यही कह रहे हैं ये जो मोदीजी के भाषण में हज़ारों की भीड़ देखते हैं ना आप, ये वही छोटे लोग हैं जिनका काम आज भी छोटे नोटों से चल रहा है…

जब उनके हाथ में पैसा ही नहीं है तो नोट हज़ार के बंद हो रहे हैं या पांच सौ के उनको क्या फर्क पड़ना है… फर्क उनको पड़ रहा है जो अपने पर्स में हज़ार, पांच सौ से कम के नोट ही नहीं रखते थे… इसलिए इस आंटी को तकलीफ हुई…

इसलिए तो ये कैशलेस भारत की योजना शुरू हुई ताकि आगे से आपकी भतीजी आपात स्थिति में भर्ती हो तो बेचारी को बिना इलाज के ही अस्पताल वाले भगा न दे…

छोड़ो जी इस कहानी में ही बहुत लोचा है…

नोट बंदी के बाद आम जनता सामान्य हो गयी है… सबका जीवन सामान्य हो गया है… लेकिन इन वामपंथियों का हाजमा अभी तक इसलिए खराब है कि इतनी आसानी से कैसे सबकुछ सहज हो गया… वेनेजुएला जैसा काण्ड अपने यहाँ क्यों नहीं हुआ??

अब इस बदहजमी से इनकी मनगढ़ंत कहानियों से भी बदबू आने लगी है… या तो अब मुंह चलाना बंद कीजिये या फिर हाजमा दुरुस्त कीजिये…

ये भारत की राष्ट्रवादी जनता है जब ये पूरी आस्था से गणेश जी को दूध पिलाने में जुट जाती है… तो वो पत्थर की मूर्ति भी जादू दिखाने लगती है… और दूध पीने लगती है… ये तो सिर्फ एक नोटबंदी का छोटा से फैसला था… छोड़िये आपके साथ तो मज़ाक में भी मज़ाक नहीं कर सकते…

अब भी समय है बड़े नोट, छोटे नोट का चक्कर छोड़िये, आंटीजी को बताइये कार्ड से पेमेंट का तरीका… वरना बाज़ार में अभी 100, 50, 20 और 10 के बहुत नोट है … अपना काम तो इसी से चल रहा है… बड़े खर्चे के लिए चेक बुक, डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और भी न जाने कौन कौन से कार्ड और नेट बैंकिंग है ही…

तो दुःख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे, रंग जीवन में नया लायो रे…

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