कहते हैं कि जब ईसा मसीह को यहूदी धर्मगुरुओं ने पिलातुस के सामने उपस्थित किया था, उसी दौरान उस रोमन गवर्नर को अपनी पत्नी का संदेश मिला जिसमें उसने कहा कि तुम इस धर्मी के मामले में हाथ मत डालना क्योंकि आज मैंने स्वप्न में उसके कारण बहुत दुःख उठाये हैं.
इस कारण से पिलातुस ईसा को सजा देने के पक्ष में नहीं था और हर संभव कोशिश कर रहा था कि किसी तरह उसे ईसा को सजा सुनाने का पाप न करना पड़े. परंतु यहूदी धर्मगुरुओं के आगे वह परास्त हो गया और ईसा को सलीब पर चढ़ाने का आदेश जारी करते हुए उसने पानी लेकर अपने हाथ धोये और कहा कि मैं इस धर्मी के लहू से पाक हूँ, आगे तुम समझो.
ईसा को शुक्रवार दोपहर में सूली पर चढ़ा दिया गया और तीसरे पहर में रोमन सैनिकों को लगा कि ईसा का निधन हो गया है.
इसी दौरान ईसा का एक छुपा हुआ शिष्य युसूफ जो अरिमितियाह का रहना वाले था रोमन गवर्नर के पास गया और उससे ईसा के शरीर को सूली से उतार लेने की आज्ञा माँगी.
आज्ञा प्राप्त कर उसने ईसा के शरीर को सलीब से उतारा और छिपाकर अपने एक निहायत व्यक्तिगत बाग़ में ले गया और वहां एक बड़े से हवादार गुफा में ईसा के शरीर को रखकर उसके मुंह पर एक बड़ा सा पत्थर रख दिया.
कहतें हैं कि ईसा को लेकर रोमन गवर्नर पिलातुस, मरियम मगदलीनी, अरिमितियाह के युसूफ और ईसा के कुछ दूसरे शिष्यों ने एक फूलप्रूफ योजना बनाई थी.
योजना ये थी कि शुक्रवार का दिन ईसा के मुक़दमे की सुनवाई के लिये रखा जाये ताकि अगर उन्हें सलीब पर चढ़ाने का फैसला सुनाना पड़े तो उसी दिन सूर्यास्त से पहले-पहले उन्हें सलीब से उतार लिया जायेगा.
क्योंकि शनिवार का दिन यहूदियों के लिये विश्राम दिवस होता है इसलिये शुक्रवार के दिन वो सूर्यास्त के बाद किसी अपराधी को सलीब पर नहीं रहने देते.
ईसा दोपहर में सलीब पर चढ़ाये गये फिर तीन घंटे बाद पीड़ा के कारण बेहोश हो गये और उनके बेहोश होते ही उनके शुभचिंतकों ने यह शोर बरपा कर दिया कि ये तो मर गया.
उधर पिलातुस ने ये जानते हुए भी कि तीन घंटे में किसी की भी सलीब पर मौत नहीं होती, युसूफ को ये आज्ञा दे दी कि वो ईसा के शरीर को उतार कर अपने व्यक्तिगत बाग़ में ले जाये.
युसूफ को पता था कि ईसा मरे नहीं हैं बल्कि पीड़ा की अधिकता से वो सिर्फ बेहोश हैं, उसने ईसा को मिट्टी के अंदर दफन नहीं किया बल्कि उनको एक बड़े से हवादार गुफा में रख दिया.
मरियम मगदलीनी और ईसा की माँ रविवार सुबह-सुबह मुंह अँधेरे ही कुछ औषधियों के साथ इस ख्याल से उस गुफा के पास आई कि घायल ईसा की चिकित्सा की जाये.
पर जब वो वहां आई तब तक प्राथमिक उपचार के बाद ईसा होश में आ चुके थे और यहूदियों के भय से वहां माली के भेष में छुपे हुए थे.
कहते हैं कि मरियम मगदलीनी की लाई औषधियों से उनके ज़ख्मों का इलाज किया गया और फिर वो चुपके से अपनी माँ और मरियम मगदलीनी के साथ वहां से निकल कर भारत आ गए और अपनी जिन्दगी के शेष दिन उन्होंने यहीं गुजारे.
ऊपर इतनी भूमिका लिखने की आवश्यकता इसलिये थी क्योंकि अरिमितियाह के युसूफ के जिस बाग़ में ईसा सलीब से उतारे जाने के बाद लाये गये थे वो तुलसी का बाग़ था.
यानि अरिमितियाह के युसूफ ने जानबुझकर ईसा के लिये उस बाग़ को चुना था जिसमें ‘औषधीय गुणों की रानी’ तुलसी के पौधे बहुतायत से थे.
आपने कभी गौर किया है कि पश्चिमी जगत तुलसी को Holy Basil या Sacred Basil क्यों कहता है?
उसका कारण यही है कि घायल ईसा की चिकित्सा इसी पवित्र पौधे के जरिये हुई थी.
आज भी ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च “पवित्र जीवन जल” में तुलसी मिलाते हैं और सलीब पर झूलते ईसा की मूर्ति के नीचे तुलसी वाले गमले रखते हैं.
हिन्दू धर्म में तो खैर तुलसी की महत्ता पर लिखना वक़्त ज़ाया करना है क्योंकि यहाँ तो उसे कहा ही गया है “विष्णुप्रिया” यही उसकी महत्ता बता देता है.
बाकी इस पवित्र पौधे की महत्ता इस्लाम धर्म में भी तस्लीम की गई है (विस्तार भय से यहाँ लिखना संभव नहीं).
क्रिसमस के अवसर पर किसी महत्वहीन से पौधे क्रिसमस ट्री के सामने बल्ब जलाकर मूर्ख बनने से बेहतर है कि पवित्र तुलसी के नीचे दीपक जलाकर और उसके गुणों की महत्ता स्वीकार कर वैज्ञानिक सोच वाला बना जाये.
बाकी तुलसी की धार्मिक महत्ता तो ईसाई धर्म में भी कम नहीं है. है कि नहीं?