Cannibalism (नरभक्षण) – वैसे तो तकनीकी परिभाषा (जीव विज्ञान) में cannibalism का अर्थ एक प्रजाति का स्वयं की प्रजाति को खाने को कहते हैं. लेकिन आम बोलचाल में cannibalism का अर्थ नरभक्षण या एक मानव द्वारा दूसरे मानव के मांस के सेवन को कहा जाता है.
17वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न जनजातियों द्वारा नरभक्षण के उदारहण मिलते हैं. सोलोमन द्वीप, फिजी द्वीप, अफ्रीका, मलेनेसिया आदि में नरभक्षण के उदाहरण मिलते हैं.
नरभक्षण के सबसे ज्यादा चर्चित दो उदाहरणों को देखते हैं-
1) Uruguay Air Force Flight 571- 13 दिसम्बर 1972 Uruguay की रग्बी यूनियन टीम अपने मित्रों, रिश्तेदारों सहित 45 लोग इस हवाई जहाज से यात्रा कर सैंटियागो मैच खेलने जा रहे थे. तभी Andes नामक स्थान के पास एक पर्वत पर जहाज क्रैश हो गया.
यह स्थान समुद्री तल से 13.800 फ़ीट ऊपर है, बहुत ही ठंडा बर्फीला स्थान. 45 लोगों में से 27 लोग ही जीवित बच पाए. बचाव कर्मी (rescue team) भी 8 दिनों तक जहाज नही ढूंढ पाई. कुछ दिन बाद 8 व्यक्तियों की और मृत्यु हो गयी.
आखिर 16 लोगों को 23 दिसम्बर 1972 को बचाया जा सका. ये 16 व्यक्ति रोमन कैथोलिक थे. पहले पहल धर्म का हवाला देते हुए कइयों ने मना किया पर हार कर जीवित रहने के लिए उन्हें अपने साथियों का मांस खाना ही पड़ा. इस घटना पर कई पुस्तकें भी लिखी गईं.
2) Hamilton Howard ‘Albert’ Fish (1870-1936) –
यह व्यक्ति अमेरिका का सीरियल हत्यारा था. अल्बर्ट कई नामों से जाना जाता था जैसे Moon Maniac, The Brooklyn Vampire, Gray man आदि. कहा जाता है इसने 9 हत्याएं की, परंतु स्वीकारी मात्र 3 हत्याएं.
यह बच्चे, बच्चियों को बहलाता, फिर उनका बलात्कार करके, उन्हें मारता और उनके अंग खाता था. अल्बर्ट का पिता उसकी माँ से 43 वर्ष बड़ा था और उसके जन्म के समय 75 वर्ष का था. फिर उसे अनाथाश्रम भेज दिया गया जहाँ उसने अपना ज्यादातर बचपन गुजारा. 12 वर्ष की आयु में उसकी माँ उसे अनाथाश्रम से ले गयी.
कुछ समय बाद इसका विवाह कराया गया. लेकिन अजीब बर्ताव के कारण पत्नी छोड़ कर चली गयी, जिससे अल्बर्ट के 6 संतानें थीं. अल्बर्ट भी रोमन कैथोलिक था.
1910 में थॉमस केडेन नामक बालक से मिला. उसे किसी वीरान जगह पर बंद करके कुछ दिन प्रताड़ित किया और उसका अंग काटकर खाया. फिर यह सिलसिला चलता गया जब तक 1935 में वह पकड़ा नहीं गया और 1936 में उसको बिजली की कुर्सी से मृत्यु दंड दिया गया.
अपनी गवाही में वह कहता था कि मैं तो “John the apostle” के निर्देशों को मान रहा था और God उससे ये सब करवाता था.
जहाँ उरुग्वे दुर्घटना में बचे लोगों की पूरी दुनिया प्रशंसा कर रही थी, वहीँ अल्बर्ट को मृत्यु दंड मिला. दोनों ही प्रकरणों में नरभक्षण किया गया था. एक ओर जहाँ आत्म रक्षा थी, दूसरी ओर हिंसा, विभत्स्य कार्य. धर्म और अधर्म, मानवता और पशुता, नैतिकता और अनैतिकता में अंतर की रेखा बारीक़ होती है इसे समझना आवश्यक है.
अब एक अलग परिस्तिथि को देखिये, तिब्बत में कम्युनिस्ट चीन द्वारा शांतिप्रिय बौद्ध भिक्षुयों की हत्याएं करवाई गयीं. भारत का भाग तिब्बत जो भारत में ही रहना भी चाहता था, भारत से ताकत के दम पर छीन लिया गया. बौद्ध कुछ नहीं कर पाए.
वहीँ म्यांमार में रोहंगिया मुस्लिमों ने बौद्ध भिक्षुओं को मारना प्रारम्भ किया. उनके देश पर एक प्रकार का कब्ज़ा जमा लिया. तब बौद्ध गुरु अशीन विराथु ने अपने राष्ट्र और राष्ट्रीयता को बचाने का संकल्प लिया और 696 संगठन की स्थापना की और रोहंगिया मुस्लिमों को म्यांमार से भगा कर अपने राष्ट्र की रक्षा भी की.
गांधी के विचारों का selective हवाला देने वाले मानसिक विक्षिप्त वामपंथी यह नहीं बताते कि उन्होंने यह भी कहा है कि अन्याय को सहना, अन्याय करने से भी बड़ा अपराध है.
एक ओर जहाँ तिब्बत बौद्ध भिक्षुओं ने शांति-शांति का अलाप राग गाकर अपनी जनता से अन्याय कर दिया और समाज में नपुंसकता हावी कर दी. वहीँ म्यांमार के बौद्ध ने अपने राष्ट्र की रक्षा करके, हिंसा/अहिंसा और आत्मरक्षा का अंतर स्पष्ट किया.
यही कहानी भारत की है, कल कश्मीर से भगाए गये, फिर असम में लतियाये गये, आज बंगाल जल रहा है, कल हैदराबाद और केरल से भी विस्थापित होंगे. जब माँ बहन के साथ अन्याय होगा तब गांधी का धरना धरा रह जायेगा.
भेड़ियों से भेड़ों वाला व्यवहार करोगे तो भोजन बन जाओगे. जागों और मानवता की आड़ में अपनी नपुंसकता छिपाना बंद करो.
जिसको अपने मिटने का एहसास नहीं होता, उसका अपना कोई इतिहास नहीं होता….