मोदी, डोभाल और बिपिन रावत… ऊपर से धस्माना! खुद समझिये माजरा

पता नहीं क्यों कांग्रेस, मोदी सरकार द्वारा की जा रही नियुक्तियों पर सवाल उठा रही है. इतनी सुगठित टीम का भला कोई भी आखिर विरोध क्यों करेगा?

आपको ध्यान होगा कि भारत ने हाल ही में पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (POK) में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की और 50 से भी अधिक आतंकियों और पाकिस्तानी सैनिकों को मार डाला.

आपको शायद पता ना हो कि इस सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे किसका दिमाग था और सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले जवानों को दिशा निर्देश किसने दिए थे.

जी हाँ, इस सर्जिकल स्ट्राइक की रणनीति बिपिन रावत ने ही बनायी थी और सफलतापूर्वक काम को अंजाम दिया था.

इससे पहले म्यांमार में भी इन्हीं की सलाह पर सर्जिकल स्ट्राइक की गयी थी और सफलतापूर्वक 30 से भी अधिक नगा आतंकियों को मारकर सेना के जवान वापस लौट आये थे.

इन दोनों सर्जिकल स्ट्राइक से बिपिन रावत ने प्रधानमंत्री मोदी का दिल जीत लिया था, मोदी को ऐसे ही अफसर चाहिए जो ऑपरेशन करने में उस्ताद हों.

मोदी खुद ऑपरेशन करके बीमारियाँ दूर करने में यकीन रखते हैं, ऑपरेशन में रिस्क तो होता है लेकिन सफलता जरूर मिलती है. इसलिए वे ऑपरेशन करने वाले अफसरों को अपनी टीम में रखते हैं.

जानिये बिपिन रावत के बारे में

चीन, पाकिस्तान सीमा के अलावा रावत को पूर्वोत्तर में घुसपैठ रोधी अभियानों में दस साल तक कार्य करने का अनुभव है.

म्यांमार ने सफलतापूर्वक सर्जिकल स्ट्राइक करवाया, POK में सफलतापूर्वक सर्जिकल स्ट्राइक करवाया, पाकिस्तान के साथ चीन बॉर्डर की भी समझ.

रावत 1978 में भारतीय सेना में शामिल हुए थे, 38 वर्ष का अनुभव है उन्हें. पाकिस्तान सीमा के साथ-साथ चीन सीमा पर भी लंबे समय तक कार्य किया है.

वे नियंत्रण रेखा की चुनौतियों की गहरी समझ रखते हैं. चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा के हर खतरे से भी वे वाकिफ हैं.

कैसे हुई नियुक्ति

रक्षा मंत्रालय ने सेनाध्यक्ष की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नियुक्ति समिति को तीन नाम भेजे थे.

इन नामों में लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बख्शी के बाद दूसरा नाम लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत का था जबकि तीसरा नाम लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अली हरीज का था.

तीनों नामों में से प्रधानमंत्री मोदी को किसी एक का चुनाव करना था, उन्होंने बिपिन रावत के नाम पर अपनी मुहर लगा दी.

इसलिए हुई नियुक्ति

1. लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को ऊंची चोटियों की लड़ाई में महारत हासिल है. वे कश्मीर घाटी के मामलों पर अच्छी पकड़ रखते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल रावत को काउंटर इंसर्जेंसी का विशेषज्ञ माना जाता है. कश्मीर घाटी में राष्ट्रीय राइफल्स और इंफैंट्री डिवीजन के वे कमांडिंग ऑफिसर रह चुके हैं.

2. लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत 2008 में कांगों में यूएन के शांति मिशन को कमान संभाल चुके हैं. इस दौरान उनके द्वारा किए गए काम काफी सराहनीय रहे. यूनाइटेड नेशंस के साथ काम करते हुए भी उनको दो बार फोर्स कमांडर कमेंडेशन का अवार्ड दिया गया.

3. लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत ने मिलिट्री मीडिया स्ट्रेटजी स्टडीज़ में रिसर्च की जिसके लिए 2011 में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी ने उनको पीएचडी की उपाधि दी.

4. अपने समकक्षों में से लेफ्टिनेंट जनरल रावत को उत्तर में पुनर्गठित सैन्य बल, लगातार आतंकवाद एवं पश्चिम से छद्म युद्ध एवं पूर्वोत्तर में हालात समेत उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए सर्वाधिक उचित पाया गया.

5. लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद हैं. दरसअल, पिछले साल म्यांमार में नगा आतंकियों के खिलाफ की गई सफल सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से ही वे पीएम की निगाहों में आ गए थे. पाक अधिकृत कश्मीर में की गई सर्जिकल स्टाइक में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है.

विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस के विरोध के बाद, खास बात यह है कि रिटायर्ड सैनिक सरकार के बचाव में आ गए हैं.

रिटायर्ड सैनिकों का मानना है कि नियुक्ति में सिर्फ वरिष्ठता का पहलू नहीं देखा जा सकता है.

मेजर जनरल (रिटायर्ड) गगनदीप बख्शी का मानना है कि बिपिन रावत को जम्मू-कश्मीर का कॉम्बैट एक्सपीरियंस है, इसलिए उन्हें तरजीह दी गई.

जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने भी कहा है कि मिलिट्री, जुडिशरी और ब्यूरोक्रेसी के प्रमोशन में मेरिट ही देखा जाना चाहिए.

गौरव आर्य ने कहा है कि वरिष्ठता कोई पॉलिसी नहीं है और बॉस होने के नाते पीएम को अधिकार है.

के. खुराना का कहना है कि क्या कांग्रेस ने कभी जवाब दिया कि उसकी सरकार ने अस्सी के दशक में ले. जनरल एस.के सिन्हा के मामले में वरिष्ठता को क्यों नजरअंदाज किया?

वैसे इस नियुक्ति में कोई विवाद नहीं होना चाहिये क्योंकि प्रधानमंत्री को अपना सेनानायक चुनने का अधिकार होना चाहिए लेकिन कांग्रेस इस नियुक्ति पर विवाद कर रही है.

खैर विवाद करने वालों को कोई कैसे रोक सकता है लेकिन इतना तो तय है कि अब देश में तीन दबंग एक साथ मिलाकर खूब रंग जमाने वाले हैं.

पहले हैं मोदी, दूसरे हैं डोभाल और तीसरे हैं बिपिन रावत. तीनों ऑपरेशन करने में उस्ताद हैं.

ऊपर से नए रॉ चीफ की नियुक्ति से तो देशद्रोहियों में खलबली मच गई है…. जबर्दस्त घबराहट है.

दुश्मन देशों की आंखों मे बंगलादेश वाला हश्र कौंध उठता है…. लो अब गया बलुचिस्तान जी….

अब अनिल धस्माना रॉ के नए चीफ हों गए हैं. धस्माना को अजीत डोभाल का करीबी बताया जाता है. इसी के साथ धस्माना को आतंक पर जीरो टॉलरेंट के लिए जाना जाता है.

यही नहीं धस्माना को बलूचिस्तान मूवमेंट का एक्सपर्ट कहा जाता है. इसी से पाकिस्तान में जबरदस्त ख़ौफ़ पैदा हो गया है.

अब पाकिस्तान को लग रहा है कि धस्माना की नियुक्ति पाकिस्तान को तोड़ने के लिए ही की गई है….

अब तो समझ ही गए होंगे कि क्यों विरोध करने वाले विरोध कर रहे हैं…. क्यों सारे शांतिदूत सोशल मीडिया पर त्राहि-त्राहि कर रहे हैं.

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