हाल ही में अरुण जेटली ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि कैशलेस का अर्थ कैश इकॉनमी को सब्स्टिट्यूट करना नहीं है.
कैशलेस, कैश इकॉनमी के पैरेलल चलेगी. यही वजह है कि रिज़र्व बैंक लगातार नोट छापकर बैंको को सप्लाई कर रहा है.
सरकार कह रही है कि कैश का उपयोग कम किया जाए. सरकार का मुख्य उद्देश्य सरकारी कामकाज में कैशलेस को बढ़ाना है.
अब मेरे पास दो विकल्प हैं. मैं, कैश और कैशलेस यानी क्रेडिट/डेबिट कार्ड, और चेक का इस्तेमाल कर सकता हूँ.
काफी सालों से मैं क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल कर रहा हूँ. कई जगह क्रेडिट कार्ड पर अतिरिक्त शुल्क लगता है, बहुत सी जगह नहीं लगता.
जिन जगहों से मैं महीने का राशन लेता हूँ, वहां एक्स्ट्रा शुल्क नहीं है. मैं क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करता हूँ.
पेट्रोल भराने पर मुझे ढाई प्रतिशत की छूट मिलती है, कोई अतिरिक्त चार्ज नहीं लगता, मैं कार्ड इस्तेमाल करता हूँ.
जहाँ अतिरिक्त शुल्क है, पहले भी कैश इस्तेमाल करता था, आगे भी करूंगा. न सरकार, न बैंक मुझे इसके लिए रोक रहा है.
जहाँ नकदी का लेनदेन कम है, वहां शुल्क लगता है, जहाँ नकदी का लेनदेन दुकान में बहुत ज्यादा है, वो शॉप अतिरिक्त शुल्क नहीं लेती.
रोज-रोज कैश हैंडल करने की उनकी समस्या कैशलेस से ख़तम होती है. उस सुविधा का लाभ वो कार्ड कंपनी को छोटा मोटा शुल्क देकर उठा लेते हैं.
दरअसल कैशलेस सुविधा है, इसे सुविधा के नजरिये से देखने की जरूरत है. लेकिन लोग इसे दलाली समझते हैं. विरोध करते हैं.
बिजली बिल अगर मैं क्रेडिट कार्ड से देता हूँ तो डेढ़ परसेंट एक शुल्क है, लेकिन नेट बैंकिंग पर जीरो है.
अगर मैं लाइन में लगकर बिल जमा करूंगा तो ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी दूंगा. समय भी लगाऊंगा.
अब मुझे तय करना है की मेरे लिए क्या सही है. क्रेडिट कार्ड से पेमेंट या लाइन में लगकर पेमेंट.
इसी तरह मैं अतिरिक्त शुल्क देकर सब्जी भाजी, सिगरेट नहीं खरीदूंगा. कैश का उपयोग करूंगा. और सारी दुनिया यही करती है.
कैशलेस हमारे लिए सुविधा है. सरकार के लिए यही चीज ट्रांजेक्शन्स और मनी को ट्रेस करने का जरिया है. सरकार के अपने हित हैं.
बाकी विरोध करने का क्या है. करते रहेंगे लोग.
हर नीति के अपने फायदे और नुकसान होते हैं. कैशलेस के भी हैं. कैश इकॉनमी के आपने देखे ही. फैसला हरेक को करना है कि उसे किस पक्ष में खड़ा होना है, कैश या कैशलेस.
आपके पास दोनों विकल्प हैं. और कैशलेस का मतलब पेटीएम ही नहीं होता, बच्चे की फीस चेक से देना भी कैशलेस है.
नेटबैंकिंग भी कैशलेस है. और इसमें कोई अतिरिक्त शुल्क, कमीशन या दलाली नहीं है
अब यही बात है, मैं और आप दोनों ही सक्षम हैं कि हमारा फायदा किसमें है, किसमें नहीं. कहाँ डेबिट कार्ड यूज़ करना है कहां नेट बैंकिंग या चेक.
कुछ दिनों की दिक्कत है, फिर लगभग पहले जैसी स्थिति होगी. इसी का फायदा ये विरोधी लोग उठाकर दुष्प्रचार में लगे हुए हैं.
मेरे लिए नोटबंदी और कैशलेस सिस्टम को सपोर्ट करने का एक खास कारण और भी है.
इस देश की बड़ी समस्याओ में से एक है अन ऑर्गनाइज्ड लेबर सेक्टर. ये करीब 90% है और करीब 25 करोड़ मजदूर इसमें आते हैं.
इन्हें न्यूनतम मजदूरी से कम पैसा मिलता है. क्योंकि उन्हें मालिक लोग कैश में भुगतान करते हैं.
ये पे-रोल पर नहीं होते, इन्हें हमेशा टेम्परेरी रखा जाता है. परमामेंट एम्पलॉई होने का कोई लाभ इन्हें नहीं मिलता, जैसे एक ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में मिलता है.
नोटबंदी के साथ सरकार का एक नया फरमान भी आया था. सभी के बैंक अकाउंट खोलने का और इस माह की सैलरी चेक से देने का.
इसका अर्थ है कि अगर चेक से सैलरी दी जाने लगी तो फैक्ट्री मालिक किसी की एम्प्लॉयमेंट को छुपा नहीं पायेगा. तदर्थ से परमानेंट कुछ साल में करना होगा.
ऑर्गनाइज्ड सेक्टर का प्रतिशत बढ़ने लगेगा. मजदूरों को तमाम सुविधाएँ देने पर मालिक मजबूर होंगे.
रिजर्व बैंक ने बैंको को निर्देश दिए हैं कि वो वॉर फुटिंग पर कैंप लगाकर मजदूरों के खाते खोले.
मेरे लिए ये बड़ा कदम है मजदूरों को शोषण से मुक्ति दिलाने का. और इसीलिए मैं इस इकलौती वजह से भी सरकार के साथ खड़ा रहूँगा.
जिस 75 लाख करोड़ कि ये विरोधी चर्चा कर रहे हैं, अव्वल तो उसका लगभग 50% हिस्सा ही कैशलेस हो पायेगा वो भी सालों में जाकर.
उसमे भी एक बड़ा हिस्सा बैंको के डेबिट और क्रेडिट कार्ड का होगा. नेटबैंकिंग और चेक का होगा.
कुछेक परसेंट ई वालेट कंपनियों को जायेगा. और उसमें भी बहुत कंपीटिशन है. तमाम कम्पनियाँ हैं और सरकारी बैंक भी हैं.
किन-किन कंपनियों के पास कितना पैसा पहुंचेगा, उसमें भी कंपीटिशन प्राइस या कमीशन को कम करेगा. वोल्युम के साथ चार्जेज़ कम होंगे ही. जैसा टेलिकॉम में हुआ.
जैसे अन्य बिजनेस डेवलप हुए, ये ई वालेट भी होंगे. इसमें भी रोजगार आएगा. क्योंकि सारा पैसा प्योर प्रॉफिट नहीं है.
हर बड़े व्यापारी, जैसे पेट्रोल पम्प, डिपार्टमेंटल स्टोर को नगद रुपया बैंक तक पहुँचाने की समस्या रहती है.
कितनी खबरें आती हैं कि बैंक में पैसा जमा कराने जा रहे व्यापारी, या कर्मचारी से कैश लूट लिया गया.
कैशलेस, डेबिट-क्रेडिट कार्ड से पेमेंट, इस ट्रांसपोर्टेशन को कम करता है. खर्च बचता है. सिक्योरिटी का खर्च बचता है. इसी बचत का एक हिस्सा वो इन बैंको को देता है.
ये सुविधा है जो कई सालों से चली आ रही है. एक सिस्टम बना है जिसमें सभी को फायदा होता है. ग्राहक, व्यापारी, बैंक सभी को.
रेलवे रिजर्वेशन में स्पीड कम थी क्योंकि सर्वर कमजोर थे, एक रिजर्वेशन कराने में कई पेज क्लिक करने होते थे, पहले नाम दीजिये, फिर अगले पेज पर पेमेंट ऑप्शन, फिर अगले पेज पर रकम, फिर पासवर्ड, तब जाकर रिजर्वेशन होता था.
अब बताइये क्या अनुभव है? एक ही पेज पर सभी कुछ है, अगले पेज पर पासवर्ड. कितनी दिक्कत झेली आपने पिछले एक साल में?
पुरानी सरकार के अनुभव को इस सरकार के अनुभव से जोड़ा जा रहा है. क्या एयर इंडिया जेट की वजह से फेल हुई. 1998 के पहले क्या एयर इंडिया करोडो के मुनाफे में थी?
क्या सरकारी बैंक अभी भी पुराने जैसे हैं? क्या SBI, PNB क्रेडिट कार्ड नहीं देते, लोग इस्तेमाल नहीं करते? फिर ये दुष्प्रचार क्यों?
साइबर क्राइम, बैंक की गलती से नहीं, ग्राहक की गलती से होता है. जब आप अपना एटीएम पिन, इन्टरनेट बैंकिंग पासवर्ड किसी अनजान को देते हैं. ऐसी स्थिति में बैंक क्यों जिम्मेदार होगा और क्यों नुकसान की भरपाई करेगा?
बैंक के सर्वर में कहने का अर्थ यही है. फिजिकल बैंक में जाकर डकैती होती है , ऑनलाइन बैंक के सर्वर में सिस्टम में हैकिंग होती है.
हैकिंग कहाँ हो रही है, वो महत्वपूर्ण है. बैंक के सर्वर में या आपके सिस्टम या मोबाईल में.
बैंक के सॉफ्टवेयर की किसी कमी की वजह से हैकिंग संभव हुई है या आपकी लापरवाही से.
अगर मोबाईल में हैकिंग हो रही है, अगर कोई आपकी ईमेल आई डी हैक करके बैंक पासवर्ड और बाकी जानकारी ले रहा है तो जिम्मेदारी बैंक की नहीं है.
ऐसे में बैंक, क्रेडिट कार्ड उपभोक्ता को कहता है कि इंश्योरेंस करा कर रखिये. कोई नुकसान हो तो उसकी भरपाई हो सके.