इस देश ने साफ़ राजनीतिक और वैचारिक समर्पण के भाव से भरे हुए बौद्धिक असहिष्णुता की पहली आहट, मोदी राज से पहले ही सुन ली थी जब तथाकथित साहित्यकार, चुनावी राजनीति में सक्रिय, चुनाव लड़ और हार चुके…. सिनेमा के स से भी वास्ता न रखने के बाद भी FTTI के दो बार चेयरमैन रहे… स्व. यू आर अनंतमूर्ति ने ऐलान किया : “मोदी यदि देश के प्रधानमंत्री बनते हैं तो मैं यह देश छोड़ दूंगा”.
इस प्रकार स्व. अनंतमूर्ति, देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और भारतीय मतदाताओं के आ सकने वाले जनमत के खिलाफ बेहद असहनशीलता दिखाते हुए, वर्तमान दौर में फैशनी जुमले “असहिष्णुता” के पहले पहचाने गए व्यक्ति हुए.
एक विशेष वैचारिक स्कूल के दार्शनिक छात्र स्व. श्री अनंतमूर्ति जी एक और फैशनी जुमले “देश छोड़ दूंगा” के साथ तीसरे जुमले “पाकिस्तान जाओ” के भी प्रेरणास्रोत रहे.
आज बिना किसी वजह के अपनी मौत के लगभग ढाई सालों बाद, हालिया दौर में देश की सहिष्णुता तौलने के शिखर नारेबाज… स्व. अनंतमूर्ति की याद नहीं आ गयी. वजह है…
आज… हैदराबाद के दिलसुख नगर में 21 फरवरी 2013 को किये धमाके के मामले में फैसला आया है.
18 लोगों की जान लेने और 150 से ऊपर को घायल करने वाली इस आतंकी घटना के लिए…. इंडियन मुजाहिदीन के तथाकथित सह संस्थापक यासीन भटकल समेंत उत्तर प्रदेश के असदुल्ला अख्तर, पाकिस्तान के जिया-उर-रहमान उर्फ वकास, बिहार के तहसीन अख्तर और महाराष्ट्र के एजाज शेख को दोषी ठहराया गया. सभी 5 आरोपियों को एनआईए कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है.
कथित मुख्य षड्यंत्रकारी रियाज भटकल अब भी फरार है. ऐसा माना जाता है कि वह कराची से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा है.
एनआईए जांच दल ने शानदार जांच की जिसमें सभी सबूतों का गहनता से परीक्षण किया गया. इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों की पहली बार दोष सिद्धि हुई है. पहली बार इंडियन मुजाहिदीन के किसी भी आतंकी को फांसी की सजा सुनाई गई है.
अपने आरोप पत्र में एनआईए ने दावा किया था कि इंडियन मुजाहिदीन ने भारत के खिलाफ जंग छेड़ने की साजिश रची थी और लोगों के मन में डर पैदा करने और संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए हैदराबाद में बम विस्फोट किए थे.
लोकतांत्रिक मान्यताओं, जनमत के प्रति बेहद असहिष्णु और सत्ताई मानसिकता से लबालब आप जब यह कहते हैं कि.. साहेब देश में सहिष्णुता इन ढाई सालों में पनप आई है, तो देश आपकी बात समझ नहीं पाता.
उसे यह बात खुद पर गाली सी लगती है. उसे अजीब लगता है कि खुद के जन्माए और गढ़े गए जुमलों के आधार पर चंद जमातें पूरे देश और समूचे समाज के मुँह पर कैसे थूक सकती हैं ?
क्योकि : भारत की बर्बादी, भारत के सौ टुकड़े, भारत से जंग चलेगी के साथ इंशाअल्लाह के लगते नारे और उन नारों-नारेबाजों को कैंपसों से लगायत गिरोहों के बीच…. मिलते राजनैतिक-वैचारिक-दार्शनिक समर्थनों की याद हर आती-जाती सांस के साथ…. बखूबी याद है इस देश को.
भारत के खिलाफ, भारत में रहते हुए जंग छेड़ने की इजाजत अब यह देश नहीं दे सकता : इन इरादों को असल पहचान तब मिलेगी… जब भटकल जैसों को देश की जमीन पर खींच, उसके गुनाहों की सजा के तौर पर फांसी पर लटकाया जाएगा.
ऐसी जेहनियतों को फांसी की सजाओं से बचाने खातिर… आधी रातों तक कोर्टों को खुलवाने और मुहब्बतें बाँटते रहने के इतिहासधारी… गिरोहबाजों! बहुत पुराना माल बेचते रहे हो, फर्क महज इतना है कि दुकानें और मेले बदल जाया करते हैं.
लेकिन देश अब नुमाइशें पहचानने लगा है : वो हर माल चार आने के भाव.. अब नहीं खरीदता. 16 आने के भाव से खरी-खरी सहिष्णुता और असहिष्णुता खुद तौलता है.