चमत्कारिक फल देने वाला सिद्धकुंजिका स्तोत्र

सिद्धकुंजिका स्तोत्र और बीसा यंत्र का अनुष्ठान चमत्कारिक फल देने वाला है. इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता है. इससे न सिर्फ अनुष्ठान करने वाले बल्कि कई अन्य लोगों का भी भला होता है. शर्त सिर्फ इतनी है कि अनुष्ठान करने वाले का मन शुद्ध हो और उसमें जनकल्याण की भावना निहित हो.

दरअसल संपूर्ण दुर्गा सप्तशती ही एक महान मांत्रिक-तांत्रिक ग्रंथ है. उसमें भी सिद्ध कुंजिका स्तोत्र और बीसा यंत्र अनुष्ठान सर्वाधिक प्रभावशाली अनुष्ठानों में से है. इस अनुष्ठान को पूर्ण करने पर साधक कई विद्याओं का पारंगत होने के साथ ही धन का अभाव, ग्रह अरिष्ट, भूमि-मकान की हीनता, मुकदमे के संकट, विवाह में रुकावट, तलाक समस्या, घरेलु अशांति, पुत्र का अभाव, रोजगार की कमी, दरिद्रता, कारोबार में अवनति आदि दूर होकर पूर्ण अनुकूल फल मिलता है.

आर्थिक दृष्टि से आने वाली कठिनाइयां तो इसे प्रारंभ करते ही समाप्त हो जाती हैं. चंद्रग्रहण, सूर्य ग्रहण, दीपावली के तीन दिन (धनतेरस, चौदह, अमावस), रवि-पुष्य-योग, रवि-मूल-योग तथा महा-नवमी के दिन रजत-यंत्र  की प्राण-प्रतिष्ठा, पूजादि विधान करें. इनमें से जो समय आपको मिले, साधना प्रारंभ करें.

41 दिन तक विधि-पूर्वक पूजादि करने से सिद्धि होती है. 42 दिन नहा-धोकर अष्ट-गंध से स्वच्छ भोज-पत्र पर 41 यंत्र बनाएं. पहला यंत्र अपने गले में धारण करें. बाकी दीन-दुखी, दरिद्रों की सेवा में आवश्यकतानुसार बांट दें.

प्राण-प्रतिष्ठा विधि

सर्वप्रथम किसी स्वर्णकार से पंद्रह ग्राम का तीन इंच चौकोर चांदी का पत्र (यंत्र) बनवाएं. अनुष्ठान प्रारंभ करने के दिन ब्राह्म-मुहुर्त में उठकर स्नान करके सफेद धोती-कुर्ता पहनें.

कुशा का आसन बिछाकर उस पर मृग-छाला बिछाएं. मृग-छाला न मिले तो कंबल बिछाएं. उसके ऊपर पूर्व को मुख कर बैठ जाएं.अपने सामने लकड़ी का एक पाटा रखें. पाटे पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर एक थाली (स्टील की नहीं) रखें.

थाली में पहले से बनवाए हुए चौकोर रजत-पत्र को रखें. रजत-पत्र पर अष्ट-गंध से यंत्र लिखें. चंदन, अगर, केसर, कुंकुम, गोरोचन, शिला-रस, जटामासी, कपूर——- इन आठों को अष्ट-गंध कहते हैं. इन्हें पीस कर स्याही बना लें और अनार या बिल्व या बिल्व वृक्ष की टहनी की लेखनी बना लें.

पहले यंत्र की रेखाएं बनाएं. रेखाएं बनाकर बीच में ऊं लिखें. फिर मध्य में (सारे अंक हिंदी में) ७, तब २, फिर ३, तब ८ लिखें. इसके बाद पहले खाने में १, दूसरे में ९ तीसरे में १०, चौथे में १४, छठे में ६ सातवें में ५, आठवें में ११ और नवें में ४ लिखें. फिर यंत्र के ऊपरी भाग में- ऊं ऐं ऊं –लिखें. यंत्र के निचली तरफ- ऊं क्लीं ऊं –लिखें. यंत्र के उत्तर की तरफ-  ऊं श्रीं ऊं  -लिखें. यंत्र के दक्षिण की तरफ-  ऊं क्लीं ऊं –लिखें.

प्राण प्रतिष्ठा

अब यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करें. यथा- बायां हाथ हृदय पर रखें और दाएं हाथ में पुष्प लेकर उससे यंत्र को छुएं और निम्न प्राण-प्रतिष्ठा मंत्र को पढ़ें—ऊं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सो-हं मम प्राणः इह प्राणाः, ऊं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोहं मम सर्व-इन्द्रियाणि इह-सर्व इन्द्रयाणि, ओं आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हं हंसः सोहं मम वां-म्नश्चक्षु-श्रोत्र-जिह्वा-घ्राण-प्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा.

यंत्र का पूजन

इसके बाद रजय यंत्र के नीचे थाली पर एक पुष्प आसन के रूप में रखकर यंत्र को साक्षात भगवती चण्डी-स्वरूप मानकर पाद्यादि उपचारों से उनकी पूजा करें. प्रत्येक उपचार के साथ – समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः – वाक्य का उच्चारण करें.

यथा—१-पाद्यं (जल) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

२-अर्घ्यं (जल) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

३-आचमनं (जल) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

४-गंगा-जलं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

५-दुग्धं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

६-घृतं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

७-तरु पुष्पं (शहद) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

८-इक्षु-क्षारं (चीनी) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

९-पंचामृतं (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१०-गंधम् (चंदन) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

११-अक्षतान समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१२- पुष्प-मालां समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१३-मिष्ठान्न-द्रव्यं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१४-धूपं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१५-दीपं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१६-पूगी-फंल (सुपारी) समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१७-फलं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१८-दक्षिणां समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

१९-आरतीं समर्पयामि चण्डी-यंत्रे नमो नमः.

तदंतर यंत्र पर पुष्प चढ़ाकर निम्न मंत्र बोलें——–पुष्पे देवा प्रसीदन्ति, पुष्पे देवाश्च संस्थिताः.
अब सिद्ध-कुंजिका-स्तेत्र का पाठ कर यंत्र को जागृत करें.

सिद्ध-कुंजिका-स्तेत्र का पाठ

शिव उवाच-श्रृणु देवि! प्रवक्ष्यामि, कुंजिका-स्तोत्रमुत्तमम्. येन मंत्र-प्रभावेण, चंडी-जापः शुभो भवेत्. न कवचं नार्गला-स्तोत्रं, कीलकं न रहस्यकम्. न सूक्तं नापि ध्यानं चं, न न्यासों न च वार्चनम्..कुंजिका-पाठ-मात्रेण, दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्. अति-गुह्यतरं देवि! देवनामपि दुर्लभम्. मारणं मोहनं वश्यं, स्तंभनोच्चाटनादिकम्. पाठ-मात्रेण संसिद्ध्येत कुंजिका-स्तोत्रमुत्तमम्..

मंत्र———ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे. ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा.
नमस्ते रुद्र-रुपिण्यै, नमस्ते मधु-मर्दिनि. नमः कैटभ-हारिण्यै, नमस्ते महिषार्दिनि.नमस्ते शुंभ-हंत्र्यै च निशुभांसुर-घातिनी. जाग्रतं हि महादेवी! जपं सिद्धिं कुरुष्व में. ऐंकारी सृष्टृरूपायै, ह्रींकारी प्रतिपालिका. क्लीकारी काल-रूपिन्यै, बीज-रूपे नमोस्तुते. चामुंडा चंडघाती च, यैकारी वर-दायिनी. विच्चै चाभयदा नित्यं, नमस्ते मंत्र-रूपिणि. धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी, वां वीं वागधीश्वरी तथा. क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवी शां शीं शूं मे शुभं कुरु. हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी. भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे! भवान्यै ते नमो नमः. अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तंं कुरु-कुरु स्वाहा. पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा. सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व में.

फल श्रुति

इदं तु कुंजिका-स्तोत्रं मंत्र-जागर्ति-हेतवे. अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति. यस्तु कुंजिकया देवि! हीनां सप्तशतीं पठेत्. न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा.

फिर यंत्र की तीन बार प्रदक्षिणा करते हुए यह मंत्र बोलें———-यानि कानि च पापानि, जन्मान्तर-कृतानि च. तानि तानि प्रणश्यन्तिस प्रदक्षिणं पदे पदे.प्रदक्षिणा करने के बाद यंत्र को पुनः नमस्कार करते हुए यह मंत्र पढ़ें——एतस्यास्त्वं प्रसादन, सर्व-मान्यो भविष्यसि. सर्व-रूप-मयी देवी, सर्व-देवी-मयं जगत्.अतो-हं विश्व-रूपां तां, नमामि परमेश्वरीम्.

अंत में हाथ जोड़कर प्रार्थना करें. यथा—-अपराध-सहस्राणि, क्रियन्ते-हर्निशं मया. दासो-यमिति मां मत्वा, क्षमस्व परमेश्वरि.आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम्. पूजां चैव न जानामि, क्षम्यतां परमेश्वरि.मंत्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वरि. यत्-पूजितं मया देवि! परिपूर्णं तदस्तु मे.आपराध-शतं कृत्वा, जगदम्बेति चोच्चरेत्. या गतिः समवाप्नोति, न तां ब्रह्मादयः सुराः.सापराधो-स्मि शरणं, प्राप्यस्त्वां जगदम्बिके. इदानीमनुकम्प्यो-हं, यथेच्छसि तथा कुरु.अज्ञानाद् विस्मृतेर्भ्रान्त्या, यन्न्यूनमधिकं कृतम्. तत् सर्वं क्षम्यतां देवि! प्रसीद परमेश्वरि.कामेश्वरि जगन्मातऋ, सच्चिदानंद-विग्रहे! गृहाणार्चामिमां प्रीत्या, प्रसीद परमेश्वरि.गुह्याति-गुह्य-गोप्त्री त्वं, गृहाणास्मत्-कृतं जपम्. सिद्धिर्भवतु में देवि! त्वत् प्रसादात् सुरेश्वरि.

विशेष

उक्त प्रकार से 41 दिन तक यंत्र का पूजन कर सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें और विधिवत नमस्कार करें. 42वें दिन जन-कल्याण हेतु रोग, शोकादि से पीड़ित दुखियों का कष्ट दूर करने के लिए ह इस यंत्र का प्रयोग करें. यदि निर्लोभ भाव से पूजन और प्रतिष्ठा की जाएगी, तो सभी प्रकार की सफलता मिलेगी ही, साथ ही मां की कृपा भी प्रयोग-कर्ता पर बनी रहेगी.

Comments

comments

2 COMMENTS

LEAVE A REPLY