कब तलक अपने देश की बेटी, सड़कों पर लूटती रहेगी.
कब तलक भारत की बेटी, घर – बाहर प्रताड़ित होती रहेगी..
भेद – भाव शिक्षा, बचपन में कब तक बहनें सहती रहेंगी.
सभ्य-समाज के सपनों में, कब तक माताएं घर में रहेंगी..
उस पिता के हृदय से तो पूछो, जो बेटी खातिर रात दिन ही तपता है
बेटी शिक्षा से सुयश बनायें, इस सपने में रात – दिन यूँ बितता है
उस भाई की हालत जानो जो सहमा – सहमा रहता है
दूरभाष पर बाते करके हाल-चाल लेता रहता है….
मूल्य-विहीन समाज का वंशज जब नजदीक थिरकता है
बन रावण वो इज्जत – मानवीयता की खूनी होली खेलता है
कानून – प्रशानन प्रत्यक्ष आपसी दोषारोपण ही करते हैं
कठपुतली बनकर ये सब सोयें, वीआईपी के खातिर बैठे हैं……
वारदात के बाद वो सब, कागज के शेर दौड़ाते हैं
मीडिया वाले दो दिन तक पूरा अपडेट बताते हैं
तब तक कोई नयी खबर टीआरपी वाले आते है
न्याय – व्यवस्था में कागज के शेर फाईलों में दब जाते हैं…
घरवाले फिर क्या असहाय हुये, खूब हलाहल होते हैं
कर्म – किस्मत की बातो से वे रोते – सोते जगते हैं…..
घटनाओं ने कानून – प्रशानन का नंगा – नाच दिखाया है
हर चौराहे पर दरिंदो ने अपना जाल बिछाया है
बड़ी हिम्मत से बहनों ने कदम बाहर ला पायें हैं
दरिंदों ने उनके पैर एक बार फिर डगमगाएं हैं…..
कहने को नेता जी हैं बस, राजनीतिक रोटियां सेंक रहे
इज्जत को पैसो से वो, सरेआम मंन्डी तौल रहे
फिर एक बार नेता जी हमको अपना असली चेहरा दिखा गए.
कहने को क्या था, मीडिया में खड़े-खड़े घडियाली आसूं बहा गए….
जब शासन-प्रशासन में लक्ष्मीबाई, न्याय-तलवार की थामेंगी
दरिंदों को उनके चौराहे पर ही, मौत की नींद सुला देंगी
अब – जब राखी के मूल्यों को लेकर, हम हूमायूं बन जायेंगे
पापी दरिन्दे तब ही केवल, चौराहे से बिलों में घुस जायेंगे….
गौरवशाली भारत माता के देश में, फिर माताएं जीजाबाई बन जाएँ
मन चाहता हैं देश में हर भाई, फिर वीर शिवाजी कहलायें..
मानवता और परिवार का मंत्र ही हर होठों पर राग बनाएं
मेरे पवित्र समाज में दरिन्दे दूर – दूर तक नजर न आएं….
दंड व्यवस्था से उनके वंशज भी स्वतः विलुप्त हो जाए.
मेरी न्याय – व्यवस्था उनको जल्दी ही कुछ सीख सिखाएं..
गौरवशाली भारत माता के देश में, फिर माताएं जीजाबाई बन जाएँ.
मन वागीश चाहता हैं देश में हर भाई, फिर वीर शिवाजी कहलायें..
—— वागीश मिश्र