8 नवंबर को जब मुझे नोटबंदी की खबर मिली थी तो पहले विश्वास नहीं हुआ. फिर हैरानी हुई! फिर थोड़ी ख़ुशी और बहुत सारी उत्सुकता. एकदम नया कुछ हुआ था.
मेरे पास 500 के 7 नोट थे तब, हॉस्टल के पैसे थे. मेरे दोस्त के पास तीन लोगों के पैसे थे 15000 के आसपास.
हमें पता था, अकाउंट में डाल के एटीएम से निकालना सम्भव नहीं था. घोषणा के अनुसार 4000 के हिसाब से दो लोगों को 3-4 दिन लाइन में लगना होता. 9 नवंबर को बैंक बंद थे.
10 तारीख को सुबह 9 बजे ही बैंक गया, दो बैंको में एक्सचेंज नहीं हो रहा था. तीसरे बैंक में आधे घंटे बाद 100 रुपए के 40 नोट मेरे पास थे.
पांच दिन बाद जब लिमिट बढ़ के 4500 हो गई थी तो हम दो लोगों ने 15-20 मिनट लाइन में लगकर 8500 रूपए निकाल लिए. हमारी परीक्षाएं भी चल रहीं थी इस दौरान, ये भी देखना था.
आखिरी 8 हज़ार बचे थे अब, अब लिमिट भी घटकर 2000 रूपए की थी. 4 लोग डेढ़ घंटे लाइन में लगे. हमारा पैसा बदल चुका था!
इन 14 दिनों में जिसे भी हमने अपनी समस्या बताई थी, वो बाद में दे देने की कह के मान गया था. इसके बाद मैंने एक दिन कैश पॉइंट पर कार्ड स्वाइप कर 2000 रुपए और निकाले.
नोटबंदी ने मुझे बिलकुल परेशान नहीं किया पहले महीने में, मेरे जैसे छोटी रकम वाले और लोगों को भी नहीं किया होगा, औरों के पास तो चेक और विदड्रॉल स्लिप की फैसिलिटी भी रही होगी, उस से काम और आसान हुआ होगा.
हमारा अकाउंट गाँव का है और यहाँ चेक न होने के कारण हमें ये फायदा नहीं था. लाखों-करोड़ो वाले परेशान हुए या नहीं मुझे नहीं पता.
कम्युनिस्ट जिसे सर्वहारा कहते हैं वो लाइन में लगकर भी खुश था. हमें बस उसके ख़ुशी से ही मतलब थी!
इस महीने रविवारके बाद ईद-उल-मिलाद की छुट्टी थी. पिछले दो दिन कैश पॉइंट पर भीड़ ज्यादा थी, बैंक बंद होने के कारण ये स्वाभाविक था.
आज फिर भीड़ अधिक थी. आज कारण अलग था, दो जगहों पर सर्वर डाउन था. किसी को उसे ठीक करने में रूचि नहीं थी. लोग बढते जा रहे थे.
एक कैश पॉइंट पर ऑपरेटर ढंग का नहीं था और ठीक से काम नहीं कर पा रहा था. HDFC के एक एटीएम में पैसे थे लेकिन 4 घंटे से सर्वर डाउन था, उसे भी ठीक करने वाला कोई नहीं था.
एक जगह एटीएम में बिजली नहीं थी. एक बैंक, दूसरे ब्रांच का चेक नहीं ले रहा था. आज पहली बार कई जगह पैसे मिलने के संभावनाओं के बावजूद खाली वापस लौटा था.
इस दौरान रह-रह के यही सवाल था कि आखिर वो कौन लोग हैं जो चाहते हैं कि नोटबंदी असफल हो जाए और इसे लागू करने वाले जनता की नजरों में विलेन बन जाएं?
इन सब के बीच मैंने एक चीज और देखी, जब हम HDFC एटीएम के सामने खड़े थे तो वहां एक चैनल का एक रिपोर्टर आया था.
वो लोगों से कह रहा था कि आप कहिए हमे नोटबंदी से परेशानी है. बताइए आपको कौन परेशान कर रहा है?
जो लोग मेरे साथ 2 घण्टे से खड़े थे, हताश थे, उन्हीं ने कहा, आप जाइए. हमें कोई परेशानी नहीं है. लोग चिल्ला रहे थे, ‘हम मोदी जी के साथ हैं.’ मैं बस मुस्कुरा रहा था.
इसके बाद मैं बैंक ऑफ़ इंडिया के ब्रांच भी गया. मैंने मैनेजर से पूछा, ‘सर दूसरे ब्रांच के चेक से विदड्रॉल हो जाएगा.
उन्होंने कहा, ‘हाँ हो जाएगा.’
लेकिन वहां कैश नहीं था. अगले दिन मेरी परीक्षा भी थी तो मैंने कहा, ‘सर, मैं परसों आता हूँ.’
उनका जवाब था, ‘सर आधे घंटे रुक जाइए, कैश आ रहा है, पैसे लेकर जाइए!’
अब मेरे निगाह में दो तरह के लोग थे. पहले, एटीएम के लाइन में लगे ‘मोदी-मोदी’ चिल्लाते वो लोग, बैंक का वो मैनेजर! और दूसरे…