डी-मोनेटाइज़ेशन के साथ साथ विदेश में जमा काला धन भी एक बड़ा मुद्दा रहा है और विरोधी लोग अक्सर उलाहना देते हैं कि मोदी जी ने विदेश में बसे काले धन को भारत वापस लाने का वादा पूरा नहीं किया.
और ये बात सच है, मोदी जी विदेश में जमा काला धन भारत वापस नहीं ला पाए, और मुझे ऐसी कोई उम्मीद भी नहीं कि ये पैसा वापस आएगा.
लेकिन मोदी सरकार ने अपनी 56 इंच की छाती जरूर इस मुद्दे पर दिखाई है और कुछ पुख्ता काम किये हैं जो इन काले धन वालों पर बहुत बुरी मार है.
आज इसी पर मेरी कही
मॉरीशस में अच्छी खासी भारतीय आबादी रहती है. सन 1982 में इंदिरा गाँधी जी ने मॉरीशस के साथ एक टैक्स ट्रीटी साइन की थी.
सन 82 में ऐसे बहुत से भारतीय अफ्रीकन देशों के साथ कारोबार करते थे. भारत से माल लेते थे और अफ्रीकन देशों में बेचते थे.
इन व्यापारियों की कमाई पर भारत और मॉरीशस दोनों देशों में टैक्स लगता था. अपने मूल के लोगों के भले के लिए इंदिरा सरकार ने मॉरीशस के साथ एक टैक्स ट्रीटी की.
इस समझौते के मुताबिक मॉरीशस में रजिस्टर्ड कोई कंपनी अगर भारत में निवेश करती है, स्टॉक एक्सचेंज में पैसा लगाती है और कमाई करती है तो भारत उस पर टैक्स नहीं लगाएगा, ऐसी कमाई पर टैक्स लगाने का अधिकार सिर्फ मॉरीशस को रहेगा.
कोई भी देश इस तरह के समझौते नहीं करता. कोई देश इस तरह अपने हाथ नहीं कटा देता. एक तरह से इस ट्रीटी का मतलब था कि मॉरीशस टैक्स लगाएगा नहीं और भारत को लगाने नहीं देगा.
लेकिन फिर दानवीर कर्ण अकेले तो नहीं थे, उनसे बड़े दानवीर नेहरू और उनका खानदान रहा है. कर्ण ने तो अपनी संपत्ति दान में दी थी. नेहरू परिवार ने तो देश दान में दिए हैं.
इस ट्रीटी का असली असर सन 1991 में नरसिम्हा राव द्वारा इकोनॉमी को ओपन करने के बाद आया. जब नरसिम्हा राव ने FDI को आमंत्रित करना शुरू किया.
विदेशी निवेश के लिए भारत के दरवाजे खुलने शुरू हुए. तब तमाम विदेशी निवेशकों ने मॉरीशस की इस ट्रीटी का फायदा उठाना शुरू किया.
जब भारत ने अपनी इकॉनमी ओपन की ठीक उसी समय मॉरीशस ने सन 1991 में अपने को टैक्स हैवन में बदल लिया. मॉरीशस ने कैपिटल गेन की टैक्स दर 3% कर दी.
इसका फायदा न सिर्फ अमेरिका बेस्ड फॉरेन इन्वेस्टर्स ने उठाया बल्कि इसका असली फायदा भारत देश में उन लोगों ने उठाया जिनके पास काला धन था.
ऐसे लोगों ने अपने काले धन को हवाला के जरिये पहले किसी और देश में भेजा. फिर उन्होंने मॉरीशस की एक कंपनी खरीद ली. एक ऐसी कंपनी खरीदी जिसका असितत्व सिर्फ एक पोस्ट बॉक्स था.
मॉरीशस जब टैक्स हैवन बना तो उसने कंपनी खोलने के नियम भी बहुत आसान किये.
जहाँ किसी देश में कंपनी खोलने के लिए एक ऑफिस की जरूरत होती है, बैंक अकाउंट और तमाम कागजों की जरूरत होती है. मॉरीशस में सिर्फ एक पोस्ट बॉक्स नंबर और बैंक अकाउंट चाहिए होता था.
पोस्ट बॉक्स नंबर वो लोग लेते हैं जो अपना सही पता नहीं देना चाहते.
अब इन काले धन वाले लोगों ने मॉरीशस में कंपनी खरीदने के बाद उस कंपनी के जरिये अपना पैसा भारत में वापस लगाया. ऐसा अधिकतम पैसा शेयर मार्किट में लगा.
जो कमाई हुई वो मॉरीशस वापस पहुंची. भारत इस कमाई पर टैक्स लगा नहीं सकता था. मॉरीशस नाम मात्र को लगाता था.
लेकिन जो सबसे बड़ा फ़ायदा मिला वो ये था कि अब ये निवेश, और कमाई दोनों मॉरीशस में सफ़ेद धन था. मॉरीशस बाकायदा टैक्स रसीद देता था. इस धन को सफ़ेद घोषित करता था.
सोचिये जो धन भारत में काला धन था, मॉरीशस पहुंचकर सफ़ेद में बदल चुका होता था. बैंको में, प्रतिष्ठित विदेशी बैंको में सफ़ेद धन के नाम से जमा था.
सोचिये किस आधार पर कोई भी सरकार ये पैसा किसी बैंक से वापस मांग सकती है.
अपने देश में सरकार, टैक्स ऑफिशियल सभी जानते हैं कि ये काला धन है. लेकिन विदेश में बसे बैंको को आप कैसे सबूत देंगे कि ये काला धन है.
ऐसा नहीं है कि इसके खिलाफ आवाज नहीं उठी. सन 1994 में ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कई तथाकथित फॉरेन इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर को नोटिस जारी किये और सफाई मांगी. लेकिन इनकम टैक्स के इन नोटिसों को एक ट्रिब्यूनल ने रदद् कर दिया.
सन 2003 में आजादी बचाओ संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में मॉरीशस की इस ट्रीटी खिलाफ PIL डाली और इसे ख़ारिज करने को कहा. मुकद्दमा चला.
माननीय कोर्ट ने मॉरीशस सरकार, भारतीय सरकार, आजादी बचाओ के तर्क सुने और फिर ये कहते हुए ट्रीटी को रद्द करने से मना कर दिया कि दो सार्वभौम सरकारों ने अपना भला बुरा समझते हुए एक समझौता किया है.
UPA की सरकार के समय भी ये मांग उठी. तत्कालीन वित्त मंत्री चिदंबरम ने कहा कि इस ट्रीटी को रद्द करने से विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत से उठ जायेगा और स्टॉक मार्केट ढह जायेगा.
चिदंबरम ने ये बयान संसद में दिया है कि स्टॉक मार्केट को बचाने के लिए, विदेशी निवेशकों का भरोसा बरक़रार रखने के लिए, ये समझौता रद्द नहीं किया जा सकता.
खैर ये सच भी था. जब जब इस ट्रीटी पर संकट के बादल छितराते, भारत का शेयर मार्केट धड़ाम हो जाता. एक ही दिन में लाखो करोड़ रुपया ख़तम हो जाता. अगले दिन सरकार बयान देती कि भाई इस ट्रीटी पर कोई खतरा नहीं है.
इसका परिणाम ये हुआ कि आज तक के कुल विदेशी निवेश 278 बिलियन डॉलर का 33%, 98 बिलियन डॉलर सिर्फ मॉरीशस से आया है. अंदाज लगाइये कि इसमें कितना भारत का अपना काला पैसा है.
मॉरीशस की ट्रीटी के खिलाफ इन उठती आवाजों को दरकिनार कर 2006 में कांग्रेस सरकार ने सिंगापूर से फिर ऐसी ही एक ट्रीटी की.
इसमें ये तो ध्यान रखा गया कि जो कंपनी भारत में निवेश करे उसका सिंगापूर में कोई पता ठिकाना हो. लेकिन बड़ी चालाकी से इस ट्रीटी में एक शर्त जोड़ दी गयी.
शर्त ये कि सिंगापूर की ट्रीटी तब तक चलेगी जब तक मॉरीशस की टैक्स ट्रीटी चल रही है और उन्ही शर्तो पर चलेगी.
ईमानदार मनमोहन जी और उनके डिप्टी चिदंबरम साहब ने ढोल बजाया कि देश में विदेशी निवेश बढ़ रहा है, देश तरक्की कर रहा है. उसके अगले साल 18 बिलियन डॉलर विदेशी निवेश में 13 बिलियन डॉलर अकेले मॉरीशस और सिंगापूर से था.
आश्चर्यजनक रूप से किसी सरकार की इस ट्रीटी को छेड़ने की हिम्मत नहीं हुई. तमाम नौटंकी होती रही, धमकी जारी होती रही कि हम एक्शन लेंगे, लेकिन किसी सरकार ने कुछ नहीं किया.
फिर 2014 में मोदी सरकार आयी. उसने इस ट्रीटी की समीक्षा की. इसी बीच पूरे विश्व में ऐसे टैक्स हैवन के खिलाफ माहौल बन रहा था. G-20 देश GAAR के तहत ऐसे हैवन के खिलाफ एक्शन लेने की तयारी कर रहे थे.
मोदी सरकार ने काले धन के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए ये ट्रीटी कैंसल कर दी, और अगस्त 2016 में एक नयी ट्रीटी पर दोनों देशो ने साइन किये.
मॉरीशस में रजिस्टर्ड कोई भी कंपनी अब टैक्स छूट नहीं ले पायेगी. ये ट्रीटी अगले साल अप्रैल से लागू होगी.
इसके मुताबिक़ पहले दो साल 50% टैक्स छूट उन कंपनियों को मिलेगी जिनका मॉरीशस में एक प्रॉपर ऑफिस है, स्टाफ है. कम से कम 27 लाख का मॉरीशस में इन्वेस्टमेंट है. और ये छूट भी दो साल में ख़तम.
2019 से सभी कंपनियों को पूरा टैक्स देना होगा, भारत में की गयी कमाई पर भारत टैक्स लेगा और घरेलू टैक्स दरों से लेगा.
इस नयी ट्रीटी के बाद शेयर मार्केट में कोई भूचाल नहीं आया, कोई अर्थव्यवस्था नहीं ढही.
इसके बाद भारत सरकार ने 50 और ऐसे देशो से अपनी टैक्स अवॉयडेंस ट्रीटी को कैंसल किया जो भारत के हक़ में नहीं थीं.
हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने लगभग 88 देशो से ऐसी ट्रीटी कर रखी है जिसमें भारत के कानून विदेशी कम्पनियों पर लागू नहीं होते, भले भारत में उनके ऑफिस, फैक्ट्री कुछ भी हों.
किसी विवाद की सूरत में भारत के कोर्ट फैसला नहीं दे सकते. इंटरनेशनल कोर्ट का आर्बिट्रेटर फैसला देगा.
पहले की सरकारों ने अपने ही देश के हाथ पांव काट रखे थे. तमाम समझौते देश हित को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि विदेशी निवेशकों के हित को ध्यान में रखकर बनाये गए थे.
मोदी सरकार ने सारे समझौते कैंसिल किये हैं.
मोदी सरकार FDI लाना चाहती है. मोदी जी खुद इसके लिए विदेशो के दौरे करते हैं. कंपनियों के मालिको से मिलते हैं. लेकिन ये विदेशी निवेश भारत की शर्तो पर है, भारत के हित को सर्वोपरि रखकर है.
अब फर्जी निवेश भारत नहीं आ सकता. भारत का काला धन विदेश जाकर सफ़ेद नहीं हो सकता. मोदी सरकार ने वो रास्ते ही बंद कर दिए हैं.
लेकिन अफ़सोस मोदी सरकार विदेशों में जमा काला धन वापस नहीं ला पायेगी. हर भारतीय को 15 लाख नहीं दे पायेगी.
मोदी विरोधी इसका विलाप करते रहेंगे. रोते रहेंगे.
लेकिन मैं खुश हूँ. मुझे ऐसे 15 लाख नहीं चाहिए. मुझे ऐसी मोदी सरकार चाहिए.