आज से कोई 20 साल पुरानी सत्य घटना सुना रहा हूँ. बात कश्मीर की है, तब की जब कश्मीरी पंडित घाटी से भगाए जा चुके थे.
वी पी सिंह प्रधानमन्त्री थे और जगमोहन थे गवर्नर (शायद).
कोई एक घटना हुई थी. देश में ये टीवी पत्रकारिता का कोढ़ अभी बस फैलना शुरू ही हुआ था.
किसी घटना को कवर करने पत्रकार बंधु पहुंचे हुए थे. घटनास्थल को आर्मी ने barricade किया हुआ था, पर उत्साही पत्रकार बाज नहीं आ रहे थे.
मौके पर मौजूद एक मेजर साहब ने पत्रकार महोदय को 4-6 बार समझाया… और जब नहीं माने तो 4 हाथ धर दिए….
ऐसे में सब पत्रकार हत्थे से उखड़ गए और लगे फोटो खींचने और वीडियो बनाने…. और सब इकट्ठे हो के लगे कांव-कांव करने….
हे साला, तुम पत्रकार पे हाथ उठाता है…. हाम तुमको साला नेशनल मीडिया में expose कोरेगा….
मेजर साहब ने अपने फौजियों को कहा…. अबे आतंकियों को छोडो …. पहले इन सालों को ठीक करो…. उनको फिर कभी देखेंगे….
और भैया…. फिर फौजियों ने उन सबको जो कायदे से धुना वहीं पे…. मने सड़क पे घसीट घसीट के मारा…. कैमरा सैमरा तोड़ा सो अलग….
और फिर फौजी गाड़ी में लाद के रवाना कर दिया…. और फरमान सुना दिया कि आज के बाद घाटी में पत्रकार अगर लौक गया तो अइसहीं तोड़ा जाएगा….
तब अपने ये अरुण शौरी जी…. शायद इंडियन एक्सप्रेस में हुआ करते थे…. इन्ने बहुत बवाल काटा कई दिन इंडियन एक्सप्रेस में….
जगमोहन और फ़ौज की तानाशाही पे लेख लिखे गए देश भर के अखबारों में…. प्रेस ने कश्मीर का बहिष्कार कर दिया…. फौजियों पे जांच बैठी जिसे COI मने Court Of Inquiry कहते हैं.
जिन पत्रकारों की कुटम्मस हुई थी उनको बुलाया गया गवाही देने श्रीनगर…. कोई नहीं गया…. मारे डर के हलक में जान जो अटकी पड़ी थी….
किसी ने समझा दिया कि अबे जाओगे तो वहीं बैरेक में ठहराएंगे…. और गवाही चलेगी बेटा, 15 दिन…. और बेटा वो हाल करेंगे कि तुम भी याद रखोगे…. पतलून में सांप बिच्छू सब छोड़ देंगे….
मामला रफा दफा हो गया….
जैसी पिटाई तब हुई थी ठीक वैसी एक बार और माँगता है…. खबिसवा की…. इसकी एक बार फौजी बैरेक में कम्बल परेड होनी चाहिए. ये ऐसे नहीं सुधरेगा.